- बिहार-गुजरात के बीच आंदोलन के विकसित हो रहे नए सूत्र.
पटना 26 जुलाई, ऊना आंदोलन के एक साल बाद दलितों के राष्ट्रीय औसत से आधी आबादी वाले राज्य गुजरात में दलितों ने अपने मान-सम्मान, जमीन के अधिकार के साथ-साथ देश भर में हो रहे अल्पसंख्यको-दलितों पर हमले के खिलाफ 12 जुलाई से लेकर 18 जुलाई तक आजादी कूच यात्रा का आयोजन किया. इसमें बिहार से भाकपा-माले, आइसा व इनौस के नेता शामिल हुए. दिल्ली, यूपी, और अन्य प्रदेशों से भी माले-आइसा-के नेताओं ने आजादी कूच में शामिल होकर अपनी एकजुटता जाहिर की. बिहार से इंकलाबी मुस्लिम कांफ्रेस के संयोजक अनवर हुसैन, आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष मोख्तार व राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन शामिल थे. यात्रा की शुरुआत 11 जुलाई को अहमदाबाद के अम्बेडकर भवन में कॉन्फ्रेंस के साथ हुई, जिसमें गुजरात के जाने-माने आंदोलनकारी जिग्नेश मेवाणी सहित देश स्तर के कई आंदोलनकारियों ने हिस्सा लिया. पहले तो राज्य प्रशासन ने यात्रा की अनुमति ही नहीं दे रही थी, लेकिन इसके बावजूद 12 जुलाई को यात्रा निकली. अनुमति रद्द होने के बावजूद यात्रा मेहसाना जिला से निकली लेकिन प्रशासन ने शहर से बाहर हाईवे पर यात्रा में शामिल लोगों को गिरफ्तार किया. लगभग 5 घंटे गिरफ्तार रखने के बाद आंदोलन की व्यापकता को देखते हुए प्रशासान को सभी लोगो को छोड़ना पड़ा। यात्रा मेहसाना, बनासकाठा जिला के लगभग 15 गांव गई जहां आजादी कूच यात्रा का संदेश लोगो के बीच पहुंचा. प्रत्येक गांव में लोगो के बीच यात्रा को लेकर भारी उत्साह था. प्रत्येक बैठक में लगभग 400 से 500 की संख्या जुट रही थी.
यात्रा का समापन 18 जुलाई को बनासकाठा जिला के धनेरा तहसील में हुई, जहां 5000 लोगो की विशाल जनसभा आयोजित की गई। गुजरात मे दलितों को आज से 40 साल पहले ळनरतंज ंहतपबनसजनतम संदक मिमसपदह ंबज के जरिये 1,63,808 एकड़ जमीन का पर्चा दलितों को मिला लेकिन आजतक जमीन पर वास्तविक कब्जा दलितों को नही मिल पाया आजादी कूच यात्रा के अंतिम दिन बनासकाठा जिला के लवारा गांव में 12 एकड़ जमीन पर कब्जा किया गया, जिस जमीन का पर्चा 4 परिवारों के पास था। कांतिभाई नाम के एक दलित परिवार को जिनके पास जमीन का पर्चा था उन्हें पहले से कब्जाधारी कालूसिंह वाघेला ने धमकी दी कि बाद में तुम्हे ये जमीन छोड़नी पड़ेगी । जब ये बात पता चला तो सभा के माध्यम से पुलिस को ये चेतावनी दी गई कि धमकी देने वाले व्यक्ति पर अविलंब थ्प्त् करे पुलिस और साथ ही साथ पर्चाधारी लोगो को पूरी सुरक्षा के साथ जमीन पर खेती करवाये प्रशासन, आंदोलन के दबाव में प्रशाषन ने तुरंत थ्प्त् किया और इस बात का लिखित आश्वाशन दिया कि पुलिस पर्चा धारी परिवारों को पूरी सुरक्षा देगी. हमने बिहार में भाकपा-माले के नेतृत्व में चल रहे आंदोलनों की चर्चा की. बिहार में भी भूमि के सवाल पर हाल के दिनों में जबरदस्त आंदोलन चला है. बिहार में जो आंदोलन 70 के दशक से चल रहा है, उसकी सरगर्मी अब गुजरात पहंुचने लगी है. आने वाले दिनों में गुजरात व बिहार में आंदोलन की ताकतों के बीच एक नई एकता विकसित होने की संभावना है.
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