बिहार : आखिरकार इस तरह की अंधेरी रात की सुबह कब होगी? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

बिहार : आखिरकार इस तरह की अंधेरी रात की सुबह कब होगी?

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दानापुर.कई समस्याओं से जूझ रहे हैं महादलित मुसहर. जर्जर घर में रहते हैं.महादलित जन प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण मतदान करके संसद,विधान सभा और निकाय में भेजते हैं. परंतु दलितों के कान करने के बदले एयर कंडिशन की हवा खाने लगते हैं.जो वोटरों से वादा करते हैं,उसे निभाते नहीं हैं. बहरहाल वार्ड नम्बर-33 है नगर  परिषद दानापुर निजामत में. आजादी के पूर्व 2 साल और आजादी के बाद 70 साल यानी 72 साल में नासरीगंज मुसहरी में 1 लोग भी मैट्रिक पास नहीं हो सके हैं. इस ओर गणप्रतिनिधियों में सासंद, विधायक और वार्ड पार्षदों ने ध्यान दिया ही नहीं है. वहीं सरकार एवं.गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा भी अनदेखी की गयी. गैर सरकारी संस्था द्वारा स्वंम सहायता समूह बनवाया गया.संस्था के कर्ताधर्ता ने महादलित महिलाओं को बीच मझधार में छोड़ कूच कर गये.परिणाम बैंक में जमा राशि फ्रीज है.  जी हां, 10 कट्टे जमीन में पसरी है नासरीगंज मुसहरी.यहां  पर 30 घर है. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि घर के अंदर घर और घर के बाहर घर हैं. कुल मिलाकर 50 घर से कम नहीं है. लड्डू मांझी कहते हैं कि करीब 1945 से रहते हैं. झोपड़ी में रहते थे. राजधानी में 1975 में आयी बाढ़ से घर-द्वार ढह गया. इसके बाद टेंट में रहे. यह नामालूम है कि किसके द्वारा 30 घर बनाया गया.जनसंख्या बढ़ने से मिट्टी का घर बनाया गया. अस्वस्थकर परिवेश में 250 से अधिक की संख्या में लोग आमने-सामने घरों में रहते हैं.घर ठेकेदारों द्वारा निर्माण किया गया,जो 42 साल में पूर्ण जर्जर हो चला है. मजे की बात है कि नगर परिषद दानापुर निजामत क्षेत्र में अनेक मुसहरी है.रामजीचक नहर, रामजीचक,नाच बगीचा, गाभतल, सिकंदपुर,जमसौता, नरगद्दा,कौथवां, जलालपुर,चुल्हाईचक आदि मुसहरी है. जहां पर महादलित झोपड़ी में अथवा जर्जर घरों में रहते हैं. ग्राउंड जीरों से जानकारी मिली, महादलित किसानों से 10 हजार रू.कर्ज लेते हैं और उनके पास काम करते हैं. कर्ज लेने के बाद शख्स की असामयिक मौत होने पर कर्ज चुकाने अथवा किसान के पास जाकर कार्य करने का प्रावधान नहीं हैं. बोले तो कोई परिजन बंधुआ मजदूर नहीं बनते हैं. जमीन पर बैठी भतिया देवी,सीता सुन्दर देवी,लक्ष्मण मांझी, गोरख मांझी ने कहा कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन का पात्रता होने के बावजूद भी लाभ से महरूम हैं.सवाल उठाती है कि आखिर इस तरह की अंधेरी रात की सुबह कब होगी?

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