- बिहारशरीफ के गगनदीवान की घटना बिहार की तथाकथित सेकुलर सरकार की खोलती है पोल: इंसाफ मंच
- बिहारशरीफ लाठीचार्ज और शराब पीने के आरोप में मुसहर समुदाय के दो दिहाड़ी मजदूरों की सजा के खिलाफ 23 जुलाई को राज्यव्यापी प्रतिरोध.
पटना 21 जुलाई, बिहारशरीफ के गगनदीवान की घटना ने बिहार की तथाकथित सेक्युलर सरकार की पोल खोल दी है. ‘नाॅट इन माइ नेम’ अमन-इंसाफ-भाईचारे और साझी विरासत की आवाज को बुलंद करने का एक देशव्यापी अभियान है. लेकिन इस अभियान और दलित-अल्पसंख्यकों के न्याय के लिए कई वर्षों से संघर्षरत इंसाफ मंच को संदेहास्पद बताकर नालंदा जिला प्रशासन ने प्रतिरोध की आवाज को दबाने और अल्पसंख्यक समुदाय को उपद्रवी घोषित करने की कोशिश की है. प्रशासन ने बेहद सुनियाजित तरीके से दमन चक्र चलाया और मनमाने ढंग से पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर मुकदमा थोपा है. कई ऐसे नाम हैं, जो जुलूस में शामिल ही नहीं थे. बावजूद उन पर मुकदमा थोप दिया गया है. उनके अलावा भाकपा-माले व इंसाफ मंच के कार्यकर्ताओं पर भी मुकदमा लाद दिया गया है. लालू-नीतीश सरकार में एक तरफ अल्पसंख्यकों पर हमला हो रहा है, तो दसूरी ओर शराबबंदी के नाम पर गरीबों को निशाना बनाया जा रहा है .बिहार का डैªकोनियन शराबबंदी कानून गरीबों पर कहर बनकर टूटा है. शराब पीने के जुर्म में जहानाबाद के पूर्वी ऊंटा के मुसहर समुदाय के दो भाइयों मस्तान मांझी व पेंटर मांझी को 29 मई 2017 को गिरफ्तार किया गया और मात्र एक महीने के अंदर 5 साल सश्रम कारावास और 1 लाख का जुर्माना सुना दिया गया है. शराबबंदी कानून के तहत अब तक तकरीबन 44 हजार लोगों को जेल में डाल दिया गया है.
गगनदीवान की कार्रवाई अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति जिला प्रशासन के पूर्वाग्रह और तानाशाही रवैये को बहुत स्पष्ट तौर पर जाहिर करता है, क्योंकि दो दिन पहले 15 जुलाई को बजरंग दल ने भी शहर में हथियारों के साथ मार्च किया था. प्रशासन ने उनके मार्च को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया. बहुत दबाव के उपरांत ही बजरंग दल के कुछेक सदस्यों पर मुकदमा दायर किया गया. प्रशासन का दुहरा चरित्र न केवल निंदनीय है, बल्कि संविधान, लोकतंत्र और देश की गंगा-जमुनी संस्कृति के खिलाफ है. भाकपा-माले व इंसाफ मंच की जांच टीम ने अलग-अलग दौरा कर घटना का जायजा लिया. भाकपा-माले की राज्यस्तरीय जांच टीम में पार्टी के विधायक दल के नेता महबूब आलम व केंद्रीय कमिटी की सदस्य सरोज चैबे शामिल थे. इंसाफ मंच की राज्य स्तरीय जांच टीम ने 20 जुलाई को बिहारशरीफ का दौरा किया और घटनास्थल के आसपास के लोगों से बातचीत की. इसका नेतृत्व इंसाफ मंच के राज्य सचिव सूरज कुमार सिंह, राज्य पार्षद मो. फहद जमा, मो. एहतशाम अहमद, मुजफ्फरपुर जिला अध्यक्ष मो. असलम रहमानी आदि ने किया. उनके साथ भाकपा-माले के नालंदा जिला कमिटी सदस्य सुनील कुमार, माले जिला सचिव सुरेन्द्र राम, जिला कमिटी सदस्य मधुसूदन शर्मा, पाल बिहारी लाल और कार्यालय सचिव नवल प्रसाद भी शामिल थे. जांच टीम ने अनुमंडलाधिकारी से बातचीत की और कार्यक्रम की अनुमति प्रदान नहीं करने का कारण पूछा? अनुमंडलाधिकारी ने बताया कि चूंकि बिहारशरीफ में उपद्रव की कोई घटना नहीं घटी है, इसलिए इस तरह के कार्यक्रम का उद्देश्य क्या है? अनुमंडलाधिकारी ने खुलकर कहा कि मार्च में शामिल सभी लोग उपद्रवी और इसंाफ मंच के बैनर से शहर में दंगा-फसाद करने आए थे. जाहिर है, प्रशासन पूरी तरह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित था. जांच टीम ने यह पाया कि एफआईआर में मनमाना तरीके से नाम डाला गया है. यहां तक कि सत्तारूढ़ जदयू के एमएलसी राजू गोप के विधायक प्रतिनिधि अखलाक सहित कई ऐसे नाम हैं, जिनका मार्च से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं था. सोगरा काॅलेज के प्राचार्य मो. सगीर उज्जमा का भी नाम एफआईआर में डाल दिया गया है. पुलिस ने घरों में घुसकर लोगों के साथ मारपीट की.
अनुमंडलाधिकारी सुधीर कुमार द्वारा कार्यक्रम के एक घंटा पहले कार्यक्रम की अनुमति प्रदान नहीं करने का पत्र जारी किया गया, जबकि उस वक्त तक कार्यक्रम में सैकड़ो लोग शामिल हो चुके थे. प्रशासन की इस तानाशाही के खिलाफ लोगों ने मार्च आरंभ किया, मार्च अभी 30 मीटर की दूरी भी तय नहीं कर पाई थी कि उसे रोक दिया गया. प्रदर्शनकारी गिरफ्तारी देने को तैयार हो गये. लेकिन प्रशासन ने उस वक्त उन्हें गिरफ्तार नहीं किया. तब, उसी स्थान पर एक घंटे तक सभा आयोजित होते रही. ठीक उसी समय प्रशासन ने अलग से 20-25 मुस्लिम नवयुवकों को गिरफ्तार कर लिया था, जिन्हें लोग छोड़ने की मांग कर रहे थे. लेकिन प्रशासन ने इसके उलट उनपर बर्बरता से लाठीचार्ज किया और कई लोगों को जेल में डाल दिया. अमन मार्च कर रहे लोग ‘भीड़ द्वारा की जा रही हत्या’ और अमरनाथ आतंकी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए एकजुट हुए थे. ऐसे में उनके मार्च से कौन सी शांति भंग हो रही थी? पुलिस द्वारा बर्बरता से किए गए लाठी चार्ज में सुरेन्द्र राम, रामदास अकेला, मकसूदन शर्मा, मनमोहन, पाल बिहारी लाल समेत सैकड़ो लोग घायल हुए. प्रशासन की दमनात्मक कार्रवाई की वजह से मुस्लिम समुदाय में भय व आतंक का माहौल व्याप्त है. वे खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं. जांच टीम ने मांग की है कि गिरफ्तार आंदोलकारियों को अविलंब रिहा किया जाए, उन पर थोपे गए सभी फर्जी मुकदमे वापस लिए जाएं, अनुमंडलाधिकारी पर कड़ी कार्रवाई की जाए और बिहारशरीफ शहर में अमन व चैन स्थापित किया जाए. इन सवालों पर आगामी 23 जुलाई को राज्यस्तरीय प्रदर्शन भी किया जाएगा.
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