नयी दिल्ली, 23 जुलाई, श्री रामनाथ कोविंद के देश का नया राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही लाभ के पद के आरोप में फंसे दिल्ली के 20 विधायकों के भविष्य का फैसला जल्दी होने की अटकलें जोर पकड़ने लगी है। चुनाव आयोग के समक्ष लाभ के पद के विधायकों का मामला पिछलें कई महीनों से विचाराधीन है। आयोग इस मामले की सुनवाई लगभग पूरी कर चुका है और कभी भी इस मसले पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज सकता है। अरविंद केजरीवाल सरकार के फरवरी 2015 में शपथ गहण करने के बाद आम आदमी पार्टी(आप) के 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करते हुए इन्हें तमाम तरह की सरकारी सुविधाएं दी गयी थी। सरकार के इस कदम के विरूद्ध प्रशांत पटेल नामक वकील ने लाभ का पद का आरोप लगाते हुए 19 जून 2015 को राष्ट्रपति के समक्ष विधायकों की सदस्यता को रद्द करने के लिये शिकायत की थी। राष्ट्रपति ने यह मामला चुनाव आयोग को भेज दिया था और आयोग ने विधायकों को नोटिस जारी किया था। प्रशांत पटेल की शिकायत के बाद केजरीवाल सरकार ने अपने इन विधायकों की सदस्यता को लेकर उत्पन्न खतरे से बचने के लिये इनकी नियुक्ति के बाद दिल्ली विधानसभा में एक विधेयक पारित कर राष्ट्रपति को मंजूरी के लिये भेजा था जिसे राष्ट्रपति ने पिछले साल जून में स्वीकृति देने से मना कर दिया था। दिल्ली विधानसभा में कुल 70 सीटें है। कानून के अनुसार विधायकों के 10 प्रतिशत के बराबर मुख्यमंत्री समेत सात लोगों को मंत्रिमंडल में रखा जा सकता है। वर्ष 1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने कानून में संशोधन करते हुए खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष और दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष को लाभ के पद के दायरे से बाहर किया था। इसके बाद 2006 में शीला दीक्षित सरकार ने संशोधन कर इसमें मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव का पद शामिल किया था।
रविवार, 23 जुलाई 2017
आप के 20 विधायकों के भविष्य को लेकर अटकलों का बाजार गर्म
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