विशेष : बेकार और परती जमीन पर अतिरिक्त पैदावार के प्रयास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 19 जुलाई 2017

विशेष : बेकार और परती जमीन पर अतिरिक्त पैदावार के प्रयास

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नयी दिल्ली 16 जुलाई, देश में एक करोड़ 23 लाख 90 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बेकार और एक करोड़ हेक्टेयर परती पड़ी है जिसे सरकार खेती योग्य बनाने के प्रयास में जुटी है ताकि चावल , गेहूं , दलहनों और मोटे अनाजों का अतिरक्त उत्पादन किया जा सके ।कृषि मंत्रालय ने जनसंख्या में वृद्धि , आहार में आ रहे बदलाव , आय में वृद्धि तथा पशु उत्पादों में वृद्धि के मद्देनजर 2020..22 तक 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है । वर्तमान में 27 करोड टन के आसपास खाद्यान्नों का उत्पादन हो रहा है । वर्ष 2017..18 के दौरान 20 लाख टन चावल , 15 लाख टन गेहूं , 7.5 लाख टन दलहन तथा छह लाख टन मोटे अनाजों के अतिरिक्त उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । देश में 14 करोड़ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में खेती की जाती है । सरकार की सबसे बड़ी चिंता दलहनों और तिलहनों को लेकर है जिनका उत्पादन मांग की तुलना में कम है ।सरकार कम उत्पादन को लेकर चिन्तित है और वह बेकार पडी कृषि योग्य जमीन और परती पडी जमीन पर इसकी खेती को बढावा देने का प्रयास कर रही है । पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा देश के कई अन्य हिस्सों में धान की फसल लेने के बाद किसान दूसरी फसल नहीं लगाते हैं । ऐसे क्षेत्रों में दलहनों और तिलहनों की खेती को बढावा देने का प्रयास किया जा रहा है । कुछ स्थानों पर धान के खेतों की मेड पर दलहनी फसलों को लगाया जा रहा है । पिछले कुछ वर्षो के दौरान सरकार ने दलहनों के उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया है और उसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि की है । इसके अलावा इस पर बोनस भी दिया गया है । वैज्ञानिकों ने कम अवधि की और रोग प्रतिरोधक दलहनी फसलों का विकास किया है और पिछले वर्ष किसानों ने इसकी खेती पर जोर दिया । वर्ष 2016.217 के दौरान दलहनों का उत्पादन दो करोड 21 लाख टन से अधिक होने का अनुमान है जो पिछले पांच साल के औसत उत्पादन से 45 लाख टन अधिक है । वर्ष 2015..16 के दौरान दो करोड 35 लाख टन खाद्य तेलों की आवश्यकता थी लेकिन सभी संसाधनों से 86 लाख टन से अधिक इसका उत्पादन हो सका । इस कमी को पूरा करने के लिए 68000 करोड रुपये के खाद्य तेलों का आयात किया गया । वर्ष 2016..17 के दौरान 85.50 लाख हेक्टेयर में दलहनी फसलों को लगाया गया था और इससे अच्छी पैदावार की आशा की जा रही थी ।

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