नयी दिल्ली 30 जुलाई, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की केन्द्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान मुंबई ने करेंसी नोट छापने वाले कागज का विकास किया है जिसमें कपास के साथ साथ गैर परम्परागत कच्चे माल का भी उपयोग किया गया है । कपास के बिनौले के रेशे उच्च गुणवत्ता वाले नोट के कागज के निर्माण के लिए बहुत अच्छा कच्चा माल है , लेकिन सिर्फ इससे बने कागज में मजबूती तथा मोड़ने पर न फटने की ताकत जैसे गुण कम होते हैं । इसमें केले के तने के रेशों , अलसी आदि के रेशों को मिला कर मजबूती लायी जा सकती है । संस्थान ने एक्सट्रामुरल परियोजना के तहत प्राकृतिक रेशों के उचित समिश्रण से उच्च गुणवत्ता वाले लुगदी के निर्माण के लिए अनुसंधान शुरु किया था जो पिछले दिनों पूरा हो गया । लुगदी को कई रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है ताकि कागज में अधिक से अधिक मजबूती आये । इसी माह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की स्थापना दिवस पर नोट छापने वाले कागज के विकास की घोषणा की गयी थी । संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार इस कागज के विकास से देश में सालाना लगभग 1200 करोड़ रुपये के विदेशी मुद्रा की बचत होगी तथा कपास और अन्य प्राकृतिक रेशों की खेती करने वाले किसानों को अतिरिक्त लाभ होगा । देश में प्रति वर्ष औसतन आठ लाख रुपये प्रति टन के हिसाब से 15 हजार टन नोट छापने वाले कागज का आयात किया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में देश की विभिन्न सुरक्षा प्रेसों से 20018 अरब नोटों की आपूर्ति की गयी जो इसके पूर्व के वर्ष की 19103 अरब की तुलना में अधिक थी । भारतीय रिजर्व बैंक के 80 वें वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि नोट के निर्माण में लगने वाला सुरक्षा कागज और स्याही स्वदेशी होना चाहिये तथा इस दिशा में शोध किया जाना चाहिये और इसके बाद इस दिशा में अनुसंधान कार्य को तेज किया गया था ।
मंगलवार, 1 अगस्त 2017
नोट बनाने के कागज में प्राकृतिक रेशों का उपयोग
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