साहब हमें बुलेट ट्रेन नहीं चाहिए। हम गरीबों के लिए यही ट्रेन सही से चलवा दीजिए साहब। हमारे लिए यही एक सहारा है। वैसे भी हम गरीब लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि बुलेट ट्रेन में बैठ सकें। साहब यही ट्रेन हमारे लिए उचित है। बस सुरक्षा व्यवस्था सही करा दीजिए। आज कल सफर करते हैं तो मन में इक डर बना रहता है। देश में यात्रा को लेकर रेलवे सबसे सुरक्षित माना जाता है। लेकिन लगातार हो रहे ट्रेन हादसे ने सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। यात्रा करने में अब ट्रेन भी सुरक्षित नहीं बची है। बड़े अफ़सोस की बात है। 71 साल की आजादी मना चुके हैं हम। और रेलवे का सफर भी सुरक्षित नहीं रख कर पाएं हैं। बात करें हम 2014 से तो अब तक बहुत से ट्रेन हादसे हो चुकें हैं। साहब जनता की जिंदगी इतनी भी सस्ती नहीं है। आखिर किसकी लापरवाही से ये हादसे हो रहे हैं? इनपर भी कभी गौर किया जाना चाहिए। कुछ ट्रेन हादसों के पीछे आतंकी हाथ भी बताया गया। सुरक्षा व्यवस्था में इतनी चूक आखिर कैसे हो जाती हैं? हाल में हुए उत्कल एक्सप्रेस हादसे में मारे गए सभी यात्रियों के परिवारों के प्रति मेरी शोक संवेदना हैं। देश कब तक ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसे के लिए शोक संवेदना प्रकट करता रहेगा। कुछ तो करिए साहब।
देश में रेल हादसों का इतिहास काफी पुराना है। 2014 से पहले लगभग 15 बड़े ट्रेन हादसे हो चुके हैं। लेकिन हम इस इतिहास को क्यों दोहराते जा रहें हैं? इससे सबक क्यों नहीं लेते हैं। ऐसा दोबारा न हो। रेल हादसों के पीछें कहीं न कहीं स्टाफ़ भी कसूरवार है। हर बार इस तरह की लापरवाही सामने आती है। सरकार जांच का आदेश दे देती है। वह जांच कहां तक पहुंची, कौन उसका जिम्मेदार है पता ही नहीं चलता? फाइलें दबकर रह जाती हैं। रेलमंत्री के अनुसार भी पिछले दो सालों में हुए रेल हादसों की वजह लापरवाही और स्टाफ़ की नाकामी है। अब जब इतना पता ही है तो कार्यवाही क्यों नहीं हो रही हैं? कब तक आम इंसान इस लापरवाही में अपनी बलि देता रहेगा। साहब उन परिवारों से पूछों जिन्होनें रेल हादसें में अपनों को खोया है। उस दर्द को समझिए किसी ने अपना पिता, किसी ने माता किसी ने अपनी पत्नी, किसी ने अपना बेटा, किसी ने अपनी बहन, किसी ने अपना भाई खोया है। ये भी हो सकता है कि परिवार में कमाने वाला एक ही आदमी रहा हो और वह ऐसे रेल हादसे का शिकार हो गया हो, अब उस परिवार पर क्या बीतती होगी? कैसे घर का खर्च चलेगा या चलता होगा? सिर्फ एक लापरवाही से कितनी जिंदगियां उजड़ती हैं? और हम ऐसे मामलों पर लापरवाह होते जा रहें हैं। ये वहीं जनता है साहब जो आप को अपना बहुमूल्य वोट देकर देश की बागडोर देती है। भरोसा करती है कि आने वाले दिनों में हमारे लिए कुछ अच्छा होगा।
हम गरीबों ने ख्वाब में बुलेट ट्रेन को देख लिया है। अब हकीकत में जब आप की मर्जी को पूरा करिएगा। लेकिन जो देश में यात्रा की रींढ़ मानी जाती है भारतीय रेलवे उसकों सुरक्षित कर दीजिए। सुकून में हंसी मजाक करते हुए, सोतें हुए, गाना सुनते हुए, खिड़की के पास बैठकर यात्रा का आनंद लेते हुए ट्रेन से सफर कर रहे होते हैं। इस बात से पूरी तरह से अंजान की आगे कोई दुर्घटना होने वाली है। तभी अचानक चीख पुकार शुरू होती है। कितना खौफ़ का मंज़र रहता होगा ? कितना दर्द सहते होगें? बस साहब अब और नहीं देखा जाता। हमें हमारी ट्रेन पर ही रहने दीजिए। पर यात्रा को सुरक्षित कर दीजिए। बुलेट ट्रेन अमीरों को ही मुबारक हो। हां हमें गर्व जरूर होगा जब देश में बुलेट ट्रेन चलने लगेगी।
रवि श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें