नयी दिल्ली 07 फरवरी, मोदी सरकार ने फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल की खरीद को लेकर विपक्ष द्वारा उठाये जा रहे सवालों को खारिज करते हुए आज एक बार फिर दोहराया कि यह सौदा क्षमता,कीमत, उपकरणों , हथियारों , आपूर्ति, रख रखाव और प्रशिक्षण जैसे सभी मामलों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा किये गये सौदे से कहीं बेहतर है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के राफेल सौदे में ‘ घोटाले ’ का आरोप लगाये जाने के एक दिन बाद रक्षा मंत्रालय ने सफाई देते हुए कहा है कि फ्रांस से 36 राफेल विमान की खरीद पर बेवजह संदेह व्यक्त किया जा रहा है। सरकार की ओर से कहा गया है कि इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है लेकिन यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है इसलिए स्थिति स्प्ष्ट की जानी चाहिए। रक्षा मंत्रालय के वक्तव्य में कहा गया है कि वायु सेना की मारक क्षमता को बढाने के लिहाज से उसकी जरूरतों को देखते हुए इस सौदे की पहले 2002 में की गयी थी लेकिन तत्कालीन सरकार ने दस वर्षों में भी इसको अंजाम तक नहीं पहुंचाया और वर्ष 2012 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ने वायु सेना की जरूरतों को नजरअंदाज कर इस पर वीटो लगा दिया। वहीं मोदी सरकार ने इस सौदे को सीधे फ्रांस सरकार के साथ आगे बढाते हुए केवल एक साल में पूरा कर दिया।सरकार ने जोर देकर कहा है कि यह सौदा वायु सेना में लड़ाकू विमानों की निरंतर कम होती संख्या को ध्यान में रखते हुए उसकी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किया गया है और इसमें रक्षा खरीद प्रक्रिया के सभी नियमों का पूरी तरह पालन किया गया है। समझौते से पहले सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति सहित सभी जगहों से इसकी विधिवत मंजूरी ली गयी है। इस विमान को भी सभी कसौटियों पर परखा जा चुका है। वक्तव्य में कहा गया है कि यह सौदा फ्रांस के साथ अंतर सरकारी समझौते के तहत किया गया है ऐसे में इस विमान की कीमत के बारे में पूछा जाना अव्यवाहरिक है। संयुक्त प्रगितशील गठबंधन सरकार ने भी अपने शासन में कई रक्षा सौदों की कीमत बताने में अक्षमता जाहिर की थी। मौजूदा सरकार ने इस सौदे की अनुमानित लागत शुरू में ही बता दी थी लेकिन इसमें हर चीज की अलग अलग जानकारी देने और उसकी कीमत बताये जाने से सैन्य तैयारियां तो प्रभावित होंगी ही इससे राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ भी समझौता होगा। सरकार इस मामले में वर्ष 2008 में किये गये समझौते का पूरी तरह से पालन कर रही है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि 36 विमानों की खरीद के सौदे में कोई भी भारतीय आफसैट साझीदार नहीं चुना गया है और विक्रेता अपना भागीदार चुनने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि संप्रग सरकार ने जो सौदा किया था उसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का प्रावधान नहीं था।
बुधवार, 7 फ़रवरी 2018
संप्रग सरकार से हर मायने में बेहतर है मौजूदा राफेल सौदा
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