- भूमि अधिकार संसद में शामिल हुए हजारों भूमिहीन आदिवासी
- भूमिहीन आदिवासियों के समर्थन में आये विभिन्न राजनैतिक दल एवं जन संगठन के प्रतिनिधि
तिल्दा-रायपुर/एकता परिषद के तत्वाधान में प्रयोग आश्रम तिल्दा में दो दिवसीय भूमि अधिकार संसद का शुभारंभ गांधी जी के छायाचित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित एवं पूजा-अर्चना कर एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल पी.व्ही., राष्ट्रीय अध्यक्ष रनसिंह परमार, कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेश नितिन त्रिवेदी एवं ग्रामीण आदिवासी मुखियाओं द्वारा किया गया । इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ के जनप्रतिनिधि जनकराम वर्मा-विधायक बलौदाबाजार, डाॅ. रेणु जोगी-विधायक कोटा, रामदयाल उईके-विधायक तानाखार, विधान मिश्रा-पूर्व विधायक एवं विभिन्न राजनीतिक पार्टी के पार्षदगण व युवा कार्यकर्ता शामिल हुए । इस अवसर पर संसद को संबोधन करते हुए राजगोपाल जी ने जनांदोलन 2018 के प्रमुख मांगों एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 30 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद एकता परिषद के कार्य को देशभर में आप जैसे ग्रामीण मुखियाओं और युवक-युवतियों के सहयोग से फैलाने का कार्य किया गया । इस दौरान कई सफलता भी अर्जित हुआ, लेकिन आज भी गरीबों की कई प्रमुख मांगें अधूरे हैं, जिसको लेकर के जनांदोलन 2018 की घोषणा किया गया है । आंदोलन की प्रमुख मांगों को लेकर आप सबकी समझ बनाने और उन विषयों पर चर्चा करने के लिए इस संसद का आयोजन किया गया है । इस जनांदोलन की प्रमुख मांगें - राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून की घोषणा एवं क्रियान्वयन, राष्ट््रीय महिला कृषक हकदारी कानून की घोषणा एवं क्रियान्वयन, राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा एवं क्रियान्वयन, भारत सरकार द्वारा पूर्व में गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद और राष्ट्रीय भूमि सुधार कार्यबल को सक्रिय करना, वनाधिकार कानून-2006 और पंचायत (विस्तार उपबंध) अधिनियम-1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय व प्रांतीय स्तर पर निगरानी तंत्र की स्थापना, भूमि संबंधी विवादों के शीघ्र समाधान के लिए त्वरित न्यायालयों का संचालन है । उक्त मांगों को लेकर देशभर के 300 जिलों में उपवास, 5 लाख हस्ताक्षर महामहिम राष्ट्र्पति के नाम, अक्टूबर 2018 में 25000 लोगों का दिल्ली कूच, नवम्बर 2018 में हर पंचायत में 10-10 लोगों का सामूहिक उपवास कार्यक्रम सुनियोजित है ।
इस वर्ष छत्तीसगढ़ राज्य में लोकसभा एवं विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है । इसलिये गांव-गांव के आदिवासी-गरीब वंचित परिवारां को एकजुट होकर ‘‘जमीन और खेती के मुद्दों पर चुनाव हो‘‘, इसके लिए सत्तासीन और सभी राजनैतिक पार्टियों को चुनौती देने की आवश्यकता है । पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम जी ने आंदोलन को समर्थन देते हुए कहा कि जन-संगठनों को आंदोलन के साथ-साथ राजनैतिक विकल्प को भी तलाशने की भी आवश्यकता है । छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने हक और अधिकार के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन किसी भी राजनैतिक पार्टी के आदिवासी नेता इनके आवाज का ताकत देने के लिए साथ नहीं हैं । आदिवासियों के हक और अधिकार के लिए पेशा अधिनियम जैसे कई कल्याणकारी कानून संविधान में दर्ज है, लेकिन कानून होने के बावजूद पेशा के क्षेत्र में कई कम्पनियाॅ खनन एवं खनिज के नाम पर आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन से वंचित किया जा रहा है । पूर्व विधायक वीरेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि हर व्यक्ति को ईमान व इज्जत की रोटी मिलनी चाहिये । वर्तमान सरकार सस्ते दामों में चांवल देकर एक तरफ तो राजनैतिक फायदे ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शराब के नाम पर गरीबों को लूटने का साजिश कर रहे हैं ।
संसद में उपस्थित आदिवासी ग्रामीण मुखियाओं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार द्वारा वनाधिकार कानून लागू होने के बावजूद भी आदिवासियों को उनके काबिज भूमि का पूर्ण अधिकार एवं वनभूमि में सामुदायिक अधिकार नहीं मिल पाया है । इसके लिए एकता परिषद द्वारा घोषित जनांदोलन 2018 में हम सभी एकजुट होकर शामिल होंगे । इस कार्यक्रम में राज्यभर के 19 जिलों से लगभग 3500 आदिवासी मुखियाओं ने भाग लिया । सम्मेलन के प्रथम दिवस संसद को नदीघाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय, कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेश नितिन त्रिवेदी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के जनकलाल ठाकुर, अरविन्द नेताम, वीरेन्द्र पाण्डेय, राजू शर्मा, ज्ञानाधार शास्त्री, मीना वर्मा, हेमलता वर्मा, विमला बाई, मानवती कुॅवर, बीरसिंह, लालू खैरवार आदि ग्रामीण मुखियाओं ने संबोधित किया । पूरे कार्यक्रम का संचालन अरूण कुमार, मोहम्मद खान, रमेश शर्मा ने किया ।
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