विशेष आलेख : राजनीति की शिकार राजबाला का संघर्ष - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 11 अप्रैल 2018

विशेष आलेख : राजनीति की शिकार राजबाला का संघर्ष

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हरियाणा में मेवात के शाहपुर पंचायत की सरपंच हैं राजबाला। राजबाला आशा कार्यकर्ता हैं। उन्होंने 2015 के चुनावों में सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा व जीता हासिल की। राजबाला के पति इस दुनिया में नहीं हैं। इस कारण परिवार के चार सदस्यों के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है।  राजबाला सरपंच के अलावा एक आशा कार्यकर्ता के तौर पर भी काम करती हैं जिससे उनके परिवार का खर्चा चलता है। राजबाला के परिवार की मासिक आय 11 हज़ार रूपये महीना है। शाहपुर पंचायत में तीन गाँव हैं- शाहपुर, खेड़ा कला, और बदोपुर। पंचायत की कुल आबादी लगभग 1300 से 1400 के बीच हैं।
                    
राजबाला को सरपंच बनने के दो बरस बाद आठवीं कक्षा के फर्जी प्रमाण पत्र के आरोप में बर्खास्त कर दिया। यह आरोप उन पर उनकी निकटतम प्रतिद्वंदी बीरमती ने लगाया था। राजबाला छह महीने बर्खास्त रहीं और इस बीच उन्होंने न्याय के लिए अदालत में लड़ाई लड़ी और विजयी हुईं। अपने इस 2 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने गांव के विकास के लिए अनेक काम किये। ग्राम पंचायत शाहपुर के तीनों गांवों खेड़ा कला, बदोपुर और शाहपुर में पक्के रास्ते बनवाए। ग्वालों के गांव में पानी की समस्या को सुलझाया और हैंडपंप और नल लगवाए, तालाब खुदवाया। विधवाओं और विकलांगों के लिए पेंशन बंधवाई। महिलाओं में घूंघट के खिलाफ अभियान चलाया। गांव में दी जा रही गलत वृद्धावस्था पेंशन को बंद करवाया? गांव में बालिकाओं व उनके अभिभावकों को प्रेरित करके गांव के स्कूल में दाखि़ला कराया।

चुनाव के बाद राजबाला पंचायत में समुदाय के फायदों के लिए काम कर रही थीं। इसी बीच गांव में उनकी निकटतम प्रतिद्वंदी बीरमती ने उन पर उनके आठवीं कक्षा के प्रमाण पत्र को झूठा बताते हुए उनको सरपंच पद से हटवा दिया। मामले की जांच किये बगैर उनको गिरफ्तार करने के लिए पुलिस पहुंच गयी। उन्होंने किसी तरह अपने को बचाया और अगले दिन थाने पहुंचीं। राजबाला ने अपने स्कूल और डीओ आफिस से अपनी शिक्षा का प्रमाण पत्र निकलवाया और कोर्ट में अपनी बेगुनाही साबित की। राजबाला कहती हैं कि उनके साथ यह सब पंचायत के राजनैतिक समीकरणों के अलावा स्थानीय राशन डिपो के खिलाफ गड़बड़ियों पर एक्शन लेने की वजह से हुआ है। कोर्ट के निर्णय के बाद राजबाला को उनका चार्ज वापस मिल गया है। इस केस के चलते पंचायत का काम छह माह तक प्रभावित रहा और विकास कार्य रूक गए। राजबाला भी राजनैतिक समीकरणों और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के षडयंत्र की शिकार हुई हैं। लेकिन अपने जुझारूपन और बहादुरी से उन्होंने अपने सम्मान और स्थान को वापस पाया है। राजबाला के भविष्य की योजनाओं में पंचायत में 12वीं कक्षा का स्कूल, लड़कियों के लिए सिलाई सेंटर और स्वास्थ्य केन्द्र खुलवाने की प्रमुखता है। 
                      
राजबाला पंचायत चुनाव में प्रतिभाग करने में शिक्षा के मानक को लेकर बहुत संतुष्ट नहीं हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत सारी स्थितियां जिम्मेदार हैं। लेकिन पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम का खामियाज़ा पंचायत चुनाव में इच्छुक बहुत सी महिला उम्मीदवारों के आगे बाधा बना है। लिहाज़ा पंचायत में चुनाव शैक्षिक योग्यता के नियम की वजह से बहुत सी चुनाव लड़ने के इच्छुक महिलाएं चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकीं। काफी मामलों में पंचायत का चुनाव जीतने के बाद काफी लोगों ने इस कानून का फायदा उठाते हुए चुने हुए महिला प्रतिनिधियों को प्रताड़ित करने के लिए भी इसका दुरूपयोंग किया ताकि वह अपना पद छोड़ दे। राजबाला इसका जीता जागता उदाहरण हैं। राजबाला कहती हैं कि शिक्षित होना एक मजबूती है मगर सब कुछ शिक्षा ही नहीं है। पंचायत के कामों के लिए राजबाला की नज़र में समझ और इच्छा होना भी ज़रूरी है। 




(मुफीद खान)

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