आलेख : काम के लिए शिक्षा नहीं लगन और नीयत चाहिए - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

आलेख : काम के लिए शिक्षा नहीं लगन और नीयत चाहिए

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यह कहानी सीता काम्बले की है। सीता कांबले कर्नाटक के धारवाड़ ज़िले के धारवाड़ तालुका के मंडीहाल ग्राम पंचायत की अध्यक्ष हैं। मंडीहाल पंचायत में कुल चार गांव नागलावी, मंडीहाल, वर्वनागल्वी व दड्डीकमलापुर आते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार कर्नाटक में शिक्षा का प्रतिशत 75.36 प्रतिशत था जिसमें 82.47 प्रतिशत पुरूष व 68.08 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित थीं। 2011 के बाद यकीनन इस अनुपात में फर्क आया होगा। लेकिन पुरानी पीढ़ी की महिलाएं शायद अभी भी अशिक्षित हैं। कर्नाटक में पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता की बाध्यता नहीं है। इसलिए राज्य में शिक्षा दूसरे राज्यों की तरह पंचायत चुनाव लड़ने के लिए बाधा नहीं हैं। सीता काम्बले एक सामाजिक महिला रही हैं। सीता काम्बले का गांव के लोगों के साथ उठना बैठना काफी रहा है। वह गांव के लोगों की समस्याएं सुनती थीं और बांटती थीं। इसी वजह से 2015 के चुनाव में वह मंडीहाल ग्राम पंचायत की अध्यक्ष चुनकर आयीं।
         
सीता 2015-16 में पहली बार पंचायत की अध्यक्ष बन कर आई। सीता 2010 के पंचायत चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए खड़ी हुई थीं मगर हार गयी थीं। इसके बाद वह सामाजिक कार्यों में ज़्यादा व्यस्त हो गईं थीं। उन्होंने गांव में सड़क व पटरी निर्माण के लिए पंचायत भवन में धरना दिया था। सीता काम्बले ने पुराने स्कूल की मरम्मत कराने के लिए ज़िला न्यायालय में शिकायत की थी। इसके बाद सीता काम्बले की कोशिशों से गांव के स्कूलों मेें मरम्मत का काम संभव हो पाया। मंडीहाल ग्राम पंचायत के तीनों गांव में जंगल जैसी भौगोलिक स्थिति है और इस पंचायत के सभी गांव जंगल से सटे हुए हैं। पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए गांव वालों को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी और कभी-कभी तो पानी के लिए लोग एक किलोमीटर चलकर जाते हैं। अध्यक्ष बनने के बाद गीता ने प्रयास करके पंचायत के तीनो गांव में एक-एक बोरिंग कराकर गांव वालों को पानी की समस्या से निजात दिला दी। स्त्री शक्ति संगठन के माध्यम से सीता ने लगभग 100 महिलाओं को सब्सिडी रेट पर गैस सिलेंडर दिलवाए। इस प्रयास से इन सभी को शुरूआत में गैस सिलंेडर लेने के लिए केवल 100 रूपये देने पड़ते थे बाकी पैसे धीरे-धीरे उनके खाते से कट जाते थे।
       
अपने प्रयासों से सीता कांबले इतनी लोकप्रिय हुईं कि गांव के हर विकास कार्य में उन्हें बुलाया जाने लगा। काम के प्रति उनकी लगन और मेहनत को देख कर गांव के लोगों ने उन्हें फिर से चुनाव लड़ने की सलाह दी। 50 प्रतिशत महिला आरक्षण की वजह से सीता कांबले को सरपंच के पद पर चुनाव लड़ने का मौका मिला। सीता से पहले गांव के अध्यक्ष हसन थे। अध्यक्ष पद पर रहते हुए हसन ने गांव के विकास के लिए कोई खास काम नहीं करवाया था और सारा फंड यूं ही गंवा दिया था। 
    
चुनाव के समय हसन ने सीता के खिलाफ दुष्प्रचार भी किया था कि सीता एक महिला है, क्या वह काम कर पाएंगी? पर सीता अपनी मेहनत और लगन से पहले ही इस बात को झूठ साबित कर चुकीं थीं। सीता के मुताबिक हसन के कार्यकाल में सरकार से मिलने वाले पंचायत विकास फण्ड का इस्तेमाल भी ठीक से नहीं होता था। कई बार तो फंड का इस्तेमाल न होने की वजह से यह वापस भी चला जाता था। सीता ने एक बार हसन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी क्योंकि हसन 2015-16 के चुनाव में पोलिंग बैलेट के साथ ही बैठ गए थे। जिसके लिए हसन को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था। इस तरह सीता हसन के सारे ताने बानों को तोड़कर पंचायत की अध्यक्ष चुनीं गईं थीं। 

हालांकि सीता का चुनाव लड़ने का कोई उद्देश्य नहीं था परन्तु पंचायत की जनता उन्हें अध्यक्ष देखना चाहती थी। इसलिए उन्होंने चुनाव में प्रतिभागिता की और जीत दर्ज की। शुरुआत के दिनों में परिवार ने उनका सहयोग नहीं किया था, परन्तु कुछ समय बाद उनके परिवार से भी उनको काफी सहयोग मिलने लगा। परन्तु गांव के कुछ समुदाय ऐसे थे जो अध्यक्ष के तौर पर सीता को पसंद नहीं करते थे। हालांकि सीता अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह से समझती थीं परन्तु एक महिला अध्यक्ष होने के कारण पंचायत में उनसे भेदभाव होता था। सीता अशिक्षित हैं और इसीलिए उन्होंने अपनी मदद के लिए एक सहायक नियुक्त किया है। वह अपने निजी फंड से उसको तनख्वाह देती हैं। यह सहायक उनको पंचायत के काम काज सीखने समझने में मदद करता है। साथ ही वह उन्हें कागजातों की समझ भी देता है कि किस पर हस्ताक्षर करें और किस पर नहीं। इस तरह वह सीता को हर प्रकार की धोखाधड़ी से भी बचाता है। शुरुआत में वह अधिकारियों से बात करने में डरती थी, लेकिन अब अपने काम को लेकर उनमें काफी आत्मविश्वास है और वह अब अधिकारियों से आराम से बात कर पाती हैं।
          
अपने कार्यकाल में सीता गांव के विकास के लिए निरंतर काम में लगी हुई हैं। उन्होंने न केवल पंचायत में 175 शौचालय का निर्माण करवाया बल्कि स्कूल में पीने के पानी की सुविधा भी प्रदान की। सीता अपने ग्राम पंचायत में महिलाओं और उनकी समस्याओं पर चर्चा करने के लिए समय समय पर बैठकों का आयोजन करती हैं ताकि महिलाओं की समस्याओं का निपटारा किया जा सके। इसके अलावा गाँव वालों के मुताबिक सीता पूरे साल में 10-12 बैठकें आयोजित करती है । बैठकों के आयोजन के लिए वह गाँव में जगह जगह नोटिस चस्पां करवाती हैं। इसके अलावा सभी पंचायत सदस्य मीटिंग के बारे में अपने वार्ड में लोगों को सूचित करते हैं। सीता कांबले इन बैठकों के माध्यम से गाँव के विकासात्मक कार्यों का जायजा लेती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि गांव के विकास कार्यों में बाधा नहीं आए, फिर चाहे वह पानी की दिक्कत हो या फिर सड़क निर्माण या राशन बंटवारे से सम्बंधित क्यों न हो, उनके कार्यकाल में सभी काम सुचारू रूप से निरंतर चलते रहते है।
सीता कांबले एक सफल अध्यक्ष के तौर तर तकरीबन गांव के सभी लोगों को स्वीकार्य हैं। उनमें काम करने और सीखने की इच्छा है और वह कड़ी मेहनत से अपने काम को अंजाम देती हैं। वह भविष्य में जिला पंचायत चुनाव लड़ना चाहती हैं, और वह ऐसा कर सकती हैं क्योंकि विभिन्न राज्यों में पंचायत चुनावों में प्रतिभाग करने के लिए लागू किये गये तमाम नियमों में से एक भी ऐसा कर्नाटक में नहीं है जो महिलाओं को शासन की मुख्यधारा में आने से रोक सके। सीता जैसे अशिक्षित प्रतिभागी, जो अपना नामांकन पत्र तक भर सकने में सक्षम नहीं हैं, पंचायत की जनता उनको उनके काम के कारण ही सर आंखों पर रखती है और अपना नेता चुनती है। सीता और उनके पति दोनों ही अशिक्षित हैं मगर यह सीता की गांव विकास की समझ में बाधा नहीं बनता और इसी विश्वास पर सीता नेतृत्व करती हैं। सीता कहतीं हैं कि यदि अन्य राज्यों की तरह यहां भी अनुसूचित जाति केे लिए एक निश्चित शिक्षा का स्तर अनिवार्य होता तो शायद वह यह अवसर नहीं पातीं और शायद कोई शिक्षित महिला यह स्थान प्राप्त करती। इस सबके बावजूद सीता राजनीति में आगे बढ़ना चाहती हैं। इस बारे में वह कहती हैं कि ग्राम पंचायत के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी और अधिक बढ़नी चाहिए। सीता यहीं पर रूकना नहीं चाहती। वह जिला और तालुका पंचायत तक जाना चाहती हैं। उनको खुद पर यकीन है कि वह वहां भी बेहतर काम कर पायेंगी और लोग उनका साथ देंगे।





(मल्लिकार्जुन)

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