बिहार : ईसाई समुदाय का दिनेश फ्रांसिस को जानलेवा साबित टी.बी.रोग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 3 मई 2018

बिहार : ईसाई समुदाय का दिनेश फ्रांसिस को जानलेवा साबित टी.बी.रोग

  • जिले में टी.बी.मरीजों को रखने की व्यवस्था नहीं
  • पॉजिटिव केस सुनते ही एम. जे. के. हॉस्पिटल से चलता कर दिया

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बेतिया (पश्चिम चम्पारण).मकान का रंग-रौगन कर नयना विराम करने वाला वॉल पेंटर दिनेश फ्रांसिस नहीं रहा. वह यक्ष्मा रोग से जुलाई 2017 से पीड़ित था.जनवरी 2018 में जब बेतिया पैरिश यूथ लोगों को पता चला तो उसे उठाकर एम. जे. के. हॉस्पिटल में भर्ती कराया.  जांचोपरांत जाहिर हुआ कि दिनेश फ्रांसिस टी.बी.के पॉजिटिव मरीज हैं तो चिकित्कों ने यह कहकर नाम काट दिया कि टी.बी.मरीजों को रखने के अलग से व्यवस्था नहीं है.वह द्यर आने के चार माह के बाद दम तोड़ दिया.न बेतिया पल्ली के निवर्तमान फादर लौरेंस पास्काल और न ही तथाकथित नेतागण ही आवाज उठायें. संत तरेसा हाई स्कूल के नुक्कड़ पर रहते हैं दिनेश फ्रांसिस. नुक्कड़ पर जर्जर और छत विहिन है. वॉल पेंटर दिनेश का घर. वह श्री फ्रांसिस के पुत्र हैं. जिनका निधन हो गया है. केवल  दिनेश की बुढ़ी मां आग्नेस फ्रांसिस बच रही हैं. मां-बेटा जर्जर घर है. किसी तरह से लोग रहते थे. 

विश्वव्यापी संस्था संत विंसेंट डी पौल समाज के बेतिया सेंटर काउंसिल ने छत विहिन घर में रहने वाले दिनेश और उसकी बुढ़ी मां की सुधि लेकर बाजार से करकट खरीदकर लाये और छत पर छावनी करा दी. हां,वह तलाकशुदा है.कई बच्चे हैं.बीबी के साथ अनबन होने पर बच्चों को लेकर बीबी घर से निकल गयी.तब से मां के साथ दिनेश रहता है.वॉल पेंटिग और मजदूरी करता और मिली मजदूरी की राशि से घर चलाता.काम के बाद दाम नहीं मिलने से मां-बेटा भूखले सो जाते.इसका परिणाम सामने है.जानलेवा यक्ष्मा रोग की चपेट में आ गया.इस अवस्था में मां कुछ जुगाड़कर समान लाकर खाना बनाती और दिनेश को देती. संस्था और संगठनों के साथ पड़ोसियों का कर्तव्य है कि लोगों से मेलमिलाप करने घरों में जाये.ऐसा करने से संबंध प्रगाढ़ होता है.फादर और सिस्टर हॉम विजिट करते थे.जो बंद हो गया है.अब तो संर्पूण जानकारी नून और मशाला लगाकर फादर और सिस्टरों के दरबार में जाने वाले दरबारी जाकर परोस देते हैं.वहीं संत विंसेंट डी पौल समाज के सदस्य भी अभ्यागमन करने से मुंह मोड़ दिये हैं,जबकि उनके मैनवल में सविस्तार उल्लेख है. घर, अस्पताल, जेल आदि जगहों में जाकर अभ्यागमन करना है.

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