ताप्ती के तीर : यहां तो गूंगे बहरे बसते है, खुदा जाने कहां जलसा हुआ होगा ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 15 मई 2018

ताप्ती के तीर : यहां तो गूंगे बहरे बसते है, खुदा जाने कहां जलसा हुआ होगा ?

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लोग अकसर कहते है कि घोषणा होती है इसलिए ताकि उसे पूरी न की जा सके , लेकिन जमीनी हकीगत में घोषणाए उस आक्सीजन के सिलेण्डर के समान होती है जिसके सहारे कुछ समय तक जिंदा रखा जा सके। ताप्तीचंल में पिछले कई दिनो से यह मांग बराबर कुछ चंद लोगो के द्वारा उठाई जाती रही है कि पूर्व की तरह ताप्ती नर्मदा विकास प्राधिकरण से ताप्ती को प्रथक कर सिर्फ नर्मदा विकास प्राधिकरण बनाया गया है तबसे लेकर आज तक ताप्ती अपने विकास के प्राधिकरण की राह देखते - देखते थक चुकी है। ताप्ती विकास प्राधिकरण कोई चांद से तारे तोड़ लाना जैसा कठीन कार्य नही है लेकिन सच तो यह भी है कि लोगो की निष्क्रियता ने इसे चांद से कोसो दूर कर दिया है। छोटे - छोटे विकास प्राधिकरण बन रहे है लेकिन ताप्ती विकास प्राधिकरण के लिए अभी तक जिले के जनप्रतिनिधियों की मांग में वो ताकत नहीं आ सकी है कि उनकी दहाड़ सुन कर भोपाल - दिल्ली में बैठे भाजपाई नेताओ की पतलून गीली हो जाए!  कुछ लोगो को शायद यह शब्द या प्रयोग अश£ील लग सकता है क्योकि वे राजा हरिशचन्द्र के जमाने में जी रहे हे तथा जहां पर आज भी सत्य जिंदा है। भारतीय राजनीति में सत्य को सूली पर चढ़ा कर स्वार्थ, छल, बल, दल की नीति ने राजनीति को बाजारू वेश्या बना रखा है जिसका कोई इमान - धरम नही होता है। आज बैतूल जिले से पांच विधायक एक सासंद होने के बाद भी बैतूल जिले को दुध की मलाई तो दूर गिलास की चटाई भी नसीब नही हो रही है। गुजरात एवं महाराष्ट्र सबसे अधिक ताप्ती जल के उपभोक्ता है इन राज्यो को ताप्ती जल ने समद्धि और विकास के उस मुकाम  पर पहुंचा दिया है जहां पर बैतूल जैसे पिछड़े जिले को पहुंचने में बीस साल लग जाएगें! सबसे अधिक प्रवाह एवं बहाव क्षेत्र वह भी मूल जन्म स्थान से जिले में 250 किमी की दूरी जिसमें प्राकृतिक आपदा का सबसे अधिक नुकसान इसी जिले के इसी क्षेत्र को होता है जहां पर ताप्ती में मिलने वाली अधिकांश पहाड़ी नदियां तेज वेग से बहती हुई ताप्ती में समाहित होती है। ऐसी नदियो के जल का संग्रहण बैतूल जिले में न होने से पड़ौसी राज्य में सुख - समद्धि आना स्वभाविक है क्योकि इन क्षत्रो में ताप्ती का वेग कम हो जाता है तथा ताप्ती का आकार भी चौड़ा हो जाता है। जल संग्रहण के लिए गुजरात एवं महाराष्ट्र में ताप्ती पर अनेक बड़े बांध बंधे है जो कि इन क्षेत्रो का जल स्तर बनाए रखने में सक्षम है। बैतूल जिले में ताप्ती का विकास तभी संभव है जब ताप्ती को लेकर सरकार गंभीर हो तथा विकास प्राधिकरण की संभाावनाओ को एक बार फिर से तलाशा जाए। बैतूल जिले में ताप्ती से विकास की गाथा लिखी जा सकती है लेकिन यह तब संभव हो सकेगा जब लोग ताप्ती और उसके जल के महत्व के साथ - साथ ताप्ती के महात्मय एवं जल को संरक्षित कर सकेगें। आज हो रहा यह है कि मां के घर मौसी की पूजा हो रही है और दूर किसी कमरे के एक कोने में मां सिसक कर सब कुछ देख कर अपनी किस्मत पर रो रही है! ताप्ती के मामले में ऐसा कुछ नही हो सकता क्योकि ताप्ती ने समय - समय पर अपना रौद्र रूप दुनिया को दिखाया है और चंदोरा डेम को फूटे अभी ज्यादा वक्त नही बीता है। 

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यह बात अलग है कि ताप्ती के तेज वेग को रोक पाने में या यूं कहे कि ताप्ती के जल के ठहराव के लिए हम कोई ऐसी बड़ी महत्वाकांक्षी योजना नर्मदा सागर जैसी ला नही सके है। ताप्ती के विकास के लिए 15 वर्षो की उस सरकार को दोष दे ! उसे जिस पर इस समय नर्मदा मैया की आड़ में जेब भरने का जुनून सवार है या फिर उस कांग्रेस को दे जो कि आजादी के इतने सालो तक सत्ता में रहने के बाद वर्तमान में कोमा में है! मेरे एक मित्र को हमेशा पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती को लेकर चिंता रहती है लेकिन जिन्हे चिंता करनी चाहिए  है वे स्वंय की चिता पर लेटे हुए है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अति महत्वाकांक्षी नदी जोड़ो योजना यदि मध्यप्रदेश में शुरू होती तो संभव था कि ताप्ती आज बारह मासी नदी होती और पूरा जिला जल संकट से दूर होता। बैतूल जिले में गागुंल और चिल्लौर सहित देनवा, माचना लगभग बारह मासी नदियां जो हमेशा बहती रहती है। अगर इमानदारी पूर्वक प्रयास होते तो धाराखोह नदी को माचना में और माचना को केन के माध्यम से ताप्ती से और ताप्ती को पूर्णा से जोड़ा जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ भी संभव नही हो सका। दुर्रभाग्य कहे कि बैतूल जिले के जनप्रतिनिधियो को यह तक नही मालूम की ताप्ती जन्मोत्सव कब होता है ? और कहां पर होता है ? ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का भाग्य भगवान भरोसे ही रहेगा, एक भगवान जिसने अपनी पहचान विकास पुरूष के रूप में बनाई थी उसकी सोच भी ताप्ती के विकास की संभावनाओं तक पहुंच नही सकी। ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि पारसडोह - पचधार परियोजना से बैतूल जिले के तीन विकासखण्डो को लाभ मिलेगा लेकिन योजना का वर्तमान स्वरूप बताता है कि प्रभात पटट्न से आठनेर तक पहुंचने के बाद यह योजना रास्ते में ही दम तोड़ देगी। पारसडोह - पचधार परियोजना के प्रथम चरण एवं द्धितीय चरण के कार्य को देखने पर ऐसा लगता है कि जो कंपनी ताप्ती को लेकर ओव्हर कांफिडेन्ट के दौर से गुजर रही है उसे इस बरसात में अपना अभी तक का बोया सकेलने का भी ताप्ती मौका नही देगी? डर तो इस बात का भी सता रहा है कि इस तेज वेग की मैदानी नदी की जल क्षमता के आगे पारसडोह या बैतूल तक पीने का पानी लाने की महत्वाकांक्षी योजनाओ के कहीं पांव ही न उखड़ जाए। ताप्ती के विकास के लिए वल्लभ भवन में या सचिवालय में बैठ कर कोई कार्य योजना मूर्त रूप नही ले सकती। जब तक ताप्ती के किनारे ताप्ती विकास प्राधिकरण का कार्यालय न बन जाए और चार साल तक सिर्फ ताप्ती की जल संरचना पर कार्य न किया जाए तब तक सपने देखना मूर्खता भरा कार्य होगा। ताप्ती विकास प्राधिकरण के गठन के साथ - साथ प्राधिकरण का मैदानी स्तर पर कार्य योजना बनाना और उस पर काम करने से ही ताप्ती को समझा जा सकता है। 

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नर्मदा और ताप्ती भारत की दो मात्र पश्चिमी मुखी नदियां है जो अपने जल संरक्षण एवं जल वेग को लेकर एक दुसरे के ठीक विपरीत है। अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दू बैतूल से निकलने वाली ताप्ती नदी पर मध्यप्रदेश को छोड़ कर गुजरात एवं महाराष्ट्र में जल संरक्षण को लेकर बड़े - बड़े बांधो का निमार्ण कार्य पूरा हो चुका है तथा इन बांधो से दोनो राज्यो की तकदीर एवं तस्वीर भी काफी हद तक बदल चुकी है। आज ताप्ती सहित बैतूल जिले की सभी प्रमुख नदियो का भूजल स्तर घटने से जिले मे पेयजल संकट एक समस्या बना हुआ है। बैतूल जिले में ताप्ती के भीतर मौजूद सैकड़ो डोह एवं गहरे जलस्त्रोतो को यदि समय रहते संरक्षित नही रखा गया तो एक दिन बैतूल जिले की मोक्ष दायनी - पुण्य सलिला सूर्यपुत्री ताप्ती गया की फाल्गुनी नदी की तरह न हो जाए! देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी बैतूल से जाते समय एक सवाल छोड़ कर चले गए थे कि जिस ताप्ती ने मेरे सूरत की सूरत बदल दी उसने बैतूल की सूरत आज तक क्यो नही बदली ? इस सवाल का जवाब स्वंय प्रधानमंत्री से जिले की सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे ने लोकसभा में पुछना था तब बात कुछ और होती। इसी तरह का सवाल मध्यप्रदेश की विधानसभा में बैतूल के हेमंत खण्डेलवाल करते तो शायद कोई ठोस जवाब मिलता लेकिन दुर्रभाग्य यह है कि जिले की सासंद को बैतूल जिले की कितनी चिंता है यह उनके लोकसभा में पुछे गए सवाल से ही पता लग सकता है। जिस जिले की सासंद को यह तक नही पता है कि उसके जिले में चार कस्तुरबा गांधी बालिका छात्रावास मौजूद है लेकिन वह सवाल करती है कि उसके जिले में कस्तुरबा गांधी आवासीय बालिका छात्रावास खोले जाए ? जिले के विधायक को नारंगी जमीन का मामला उठाने की इतनी चिंता है कि वे बार - बार अपनी ही सरकार के मंत्री को कठघरे में खड़े करने से नही चूकते है वे भलां ताप्ती के बारे में क्यूं सवाल करके अपने दिमाग का दही करे। मुलताई के विधायक की बात न की जाए तो अच्छा है क्योकि जागरूकता में मुलताई को डाँ सुनीलम् से अच्छा जागरूक विधायक नही मिला लेकिन उनकी दुकानदारी ज्यादा दिनो तक नही चल सकी और जातिवाद की राजनीति उनका राजनैतिक केरियर को ही उखाड़ कर ले गई। आज जिले के पांचो विधायको ही नही सासंद को भी ताप्ती विकास प्राधिकरण के गठन एवं उसके सुचारू रूप से कार्य करने के बारे में गंभीरता पूर्वक मंथन करना होगा ताकि ताप्ती पूर्ण रूप से जिले की जीवन रेखा बन सकेगी।   

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