विशेष आलेख : मीडिया की साख - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 10 नवंबर 2018

विशेष आलेख : मीडिया की साख

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मीडिया जनतंत्र का चौथा पाया माना जाता है।सही को गलत और गलत को सही कहना उसका धर्म नहीं है।उसका नैतिक धर्म है सही को सही और गलत को गलत कहना। मगर वास्तविकता यह है कि मीडिया से जुड़ा हर माध्यम किसी-न-किसी तरीके से अपनी प्रतिबद्धताओं/पूर्वग्रहों से ग्रस्त रहता है। इसीलिए पक्ष कमज़ोर होते हुए भी बड़ी चालाकी से डिबेट या खबर का रुख अपने मालिकों के पक्ष में मोड़ने में पेश-पेश रहते हैं।खबर रूपी समोसे को आप दोने-पत्तल में भी परोसकर पेश कर सकते हैं और चांदी की प्लेट में भी।प्रश्न यह है कि मीडिया का मन रमता किस में है?

समाचारों की तथ्यपरकता पर जब सम्पादक-एंकर अथवा मालिक की अपनी प्रतिबद्धताएं और आत्मपरकता हावी हो जाती है तो मूल समाचार के प्रयोजन/प्राथमिकता अथवा उसकी असलियत और सन्देश का दब जाना स्वाभाविक है। दर्शकों को विना किसी पूर्वग्रह के साफ-सुथरी,बेलाग और निष्पक्ष जानकारियां चाहियें,एक-पक्षीय या भेदभाव जनित खबरें नहीं ।

एक खबर मीडिया में आई थी कि मुम्बई में एक मुस्लिम कामकाजी महिला को किराये पर मकान नहीं मिल सका और यह मामला मीडिया में खूब उछला।यह सही है कि जाति अथवा मज़हब के आधार पर मकान को किराये पर देने या न देने की संकीर्ण मानसिकता की पुरज़ोर शब्दों में निंदा की जानी चाहिए।मगर यह भी सही है कि प्रायः हमारा मीडिया तथ्यों को एकांगी दृष्टि से देखता है।एक चैनल ने यह भी दिखाया कि मुम्बई में ही कैसे मुस्लिम-बहुल बस्ती या मुहल्ले में एक हिन्दू को मकान किराये पर नहीं मिलता है।अगर पहली बात अनुचित है तो दूसरी बात भी कोई उचित नहीं है।मगर मीडिया दूसरी बात को सामने लाने में जाने क्यों जानबूझकर पीछे रहता है या रहना चाहता है?हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह के एकांगी,संवेदनशील और एकपक्षीय मुद्दे/समाचार उछालने से देश में सौहार्द कम और बदमज़गी ज़्यादा पैदा होती है।

कभी-कभी मीडिया के दोगले आचरण पर भी दया आती है । मन-माफिक दल की खूब प्रशंसा करेंगे और विचार के स्तर पर जिससे मतभेद है,ऐसी पार्टी को लानत भेजेंगे। मगर पार्टी-प्रचार के लाखों/करोड़ों के विज्ञपनों को छापने/दिखाने में तनिक भी नाक-भौंह नहीं सिकोड़ेंगे ।विडंबना देखिये योगगुरु रामदेव को अव्वल दर्जे का पूंजीवादी/बाजारवादी मानसिकता का व्यक्ति बतायेंगे मगर उसके लाखों के विज्ञापनों को लेने से इनकार नहीं करेंगे बल्कि दिल खोलकर प्रसारित/प्रकाशित करेंगे ।



शिबन कृष्ण रैणा 
अलवर 

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