प्रियंका के आने से भाजपा के इन चार दिग्गजों को लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 31 जनवरी 2019

प्रियंका के आने से भाजपा के इन चार दिग्गजों को लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं

priyanka gandhi
अरुण कुमार (बेगूसराय)  लोक सभा चुनाव 2019 से पहले राहुल गांधी ने पूर्वी यूपी की कमान प्रियंका गांधी को और पश्चिमी यूपी की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपी है। प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से सूबे की सियासत का पारा चढ़ना तय है। बीजेपी के कई दिग्गज नेता लोक सभा चुनाव 2014 में पूर्वी यूपी से सांसद चुने गये थे।प्रियंका के आगमन से भाजपा +के इन 4 दिग्गज नेताओं को अब चुनावी मैदान फतेह करना होगा कठिन! कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को अपनी बहन प्रियंका गांधी को आगामी लोक सभा चुनाव के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया। राहुल ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया है लेकिन ज्यादा चर्चा पूर्वी यूपी की कमान प्रियंका को सौंपने की हो रही है। पूर्वी यूपी की ज्यादा चर्चा की पीछे एक बड़ी वजह है इस इलाके से बीजेपी के कई कद्दावरों नेताओं का सांसद होना है। इनमें सबसे पहला नाम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जो पूर्वी यूपी  के वाराणसी से लोक सभा सांसद हैं।

1-पीएम नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी।
*दिग्गज नेताओं के माथे पर निश्चित रूप से सिलवटे पड़ सकती हैं,उनमे पीएम मोदी की वाराणसी सीट भी मानी जा सकती है| पीएम नरेंद्र मोदी यूपी की वाराणसी सीट से सांसद हैं। लोक सभा 2014 में नरेंद्र मोदी गुजरात की वडोदरा और यूपी की वाराणसी सीट से उम्मीदवार थे। उन्होंने दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की लेकिन गुजरात की सीट से इस्तीफा देकर वो वाराणसी के सांसद के तौर पर संसद पहुँचे। पीएम मोदी ने खुद को गंगा माँ का गोद लिया हुआ बेटा बताया और वाराणसी को जापान के ऐतिहासिक नगर क्योटो जैसा बनाने का दावा भी किया था। पिछले लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व विधायक अजय राय को मैदान में उतारा था। अजय राय चुनावी दौड़ में तीसरे नंबर पर रहे थे। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। प्रियंका गांधी को अगर पूर्वी यूपी की  कमान मिली है तो जाहिर तौर पर उनका पहला निशाना पीएम मोदी की सीट होगी। वाराणसी संसदीय सीट पर पिछले सात लोक सभा चुनावों में बीजेपी को केवल एक बार 2004 में हार मिली है। बीजेपी का अभेद्य दुर्ग होने के कारण प्रियंका के लिए इसे भेदना सबसे टेढ़ी खीर साबित होगा।

2- राजनाथ सिंह की लखनऊ सीट।
*देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ से सांसद हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद 2014 में उनकी परंपरागत सीट लखनऊ से राजनाथ सिंह चुनावी मैदान में उतरे। सिंह के इस सीट से उतरने को राजनीतिक जानकारों ने उनके अटल बिहारी वाजपेयी के उदारवादी दक्षिणपंथी नेता की विरासत के वारिस होने के दावे के तौर पर देखा। राजनाथ सिंह इस सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुँचे और मोदी कैबिनेट में नंबर दो के मंत्री के तौर पर देश के गृह मंत्री बने। लखनऊ सीधे तौर पर पूर्वी यूपी का हिस्सा नहीं माना जाता लेकिन प्रियंका के यूपी की राजनीति में सक्रिय होने का सीधा असर सूबे की राजधानी पर पड़ना तय है। लखनऊ में मुसलमान वोटरों की अच्छी तादाद होने की वजह से इस सीट पर विपक्ष दल बीजेपी को टक्कर दे सकते हैं। राजनाथ सिंह के विपक्षी दलों के नेताओं से निजी रिश्ते काफी अच्छे माने जाते हैं 

3- रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा की गाजीपुर सीट।
*सिन्हा को लोक सभा सीट बचाये रखना राजनैतिक कौशल का चमत्कार ही माना जा सकता है,वरना सीटमुश्किल में फंस सकती है क्योंकि 2014 की तरह इस बार देश मे जनता के बीच मोदी लहर में कुछ कमी तो अवश्य देखी जा रही है| 
रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा गाजीपुर से लोक सभा सांसद हैं। मनोज सिन्हा को पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का करीबी माना जाता है। जब यूपी विधान सभा चुनाव में बीजेपी को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत मिला तो लम्बे समय तक मीडिया में दावा किया जाता रहा कि मनोज सिन्हा ही राज्य के अगले सीएम बनने वाले हैं। कहा गया कि मोदी और शाह की पहली पसंद सिन्हा हैं। लेकिन गोरखपुर के लोक सभा सासंद योगी आदित्यनाथ की झोली में यूपी के सीएम की कुर्सी गई लेकिन इससे सिन्हा के इकबाल पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सिन्हा वाराणसी से सटी गाजीपुर संसदीय सीट से सांसद हैं। गाजीपुर सीट पर सिन्हा का ट्रैक रिकॉर्ड फिफ्टी फिफ्टी का रहा है। वो इस सीट से 1996, 1999 और 2014 में चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इसी सीट पर साल 2004 और 2009 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को समाजवादी पार्टी ने अकेले दम पर हरा दिया था। प्रियंका को महासचिव बनाए जाने के बाद राहुल गांधी जब मीडिया से मुखातिब हुए तो उन्होंने समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को समानधारा विचारधारा वाली पार्टी बताया।  गाजीपुर में सपा और बसपा के जनाधार को प्रियंका के बीजेपी विरोधी प्रचार का सपोर्ट मिल गया तो केंद्रीय रेल व दूरसंचार राज्य मंत्री मनोज सिन्हा को भी एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा अपनी सीट बचाने के लिए|

4- यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पाण्डेय की चंदौली सीट।
*महेंद्रनाथ पाण्डेय यूपी बीजेपी के अध्यक्ष हैं और नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं। महेंद्र नाथ पाण्डेय इस समय यूपी बीजेपी के अध्यक्ष हैं। इससे पहले वो नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे। महेंद्र नाथ पाण्डेय वाराणसी की पड़ोसी संसदीय सीट चंदौली से सांसद हैं। चंदौली पहले वाराणसी जिले का हिस्सा था। पाण्डेय को नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का करीबी माना जाता है। प्रियंका के आने से लोक सभा 2019 में इस सीट पर असर पड़ना तय है। वाराणसी की तरह चंदौली का जातिगत समीकरण बीजेपी की तरफ झुका हुआ नहीं है। 2014 में बीजेपी ने 16 साल बाद चंदौली सीट पर मोदी लहर में जीत हासिल की। पाण्डेय से पहले आखिरी बार 1998 में बीजेपी के आनंद रतन मौर्य ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1999 में समाजवादी पार्टी के जवाहरलाल जायसवाल ने लगातार तीन बार से जीत रहे मौर्य को हराकर यह सीट जीत ली थी। उसके बाद बीजेपी को जीत के लिए डेढ़ दशक तक इंतजार करना पड़ा। 

5- अनुप्रिया पटेल की मिर्जापुर सीट।
*बीजेपी की साझीदार अपना दल (एस) नेता अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से सांसद हैं। अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) ने 2014 का चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था। पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली थी। जो काम अनुप्रिया के पिता और अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल नहीं कर सके वो उनकी बेटी ने कर दिखाया। अनुप्रिया चुनाव जीतकर संसद पहुंची और केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री भी बनीं। अनुप्रिया पटेल पूर्वी यूपी के मिर्जापुर से सांसद हैं। मिर्जापुर सीट पर 1998 के आम चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह को जीत मिली थी। 1999 में समाजवादी पार्टी के टिकट फूलन देवी ने इस सीट से जीत हासिल की थी। लगातार पाँच चुनावों में मिर्जापुर सीट हारने के बाद 2014 में बीजेपी गठबंधन को इस सीट से जीत मिली। इस सीट के जातिगत समीकरण और सपा और बसपा के गठबंधन को देखते हुए बीजेपी गठबंधन को इस सीट पर कब्ज़ा बनाये रखना लोहे के चने चबाने जैसा बन सकता है|

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