- 2018 का खरमास दिसम्बर माह में हो गया खत्म, 2019 का खरमास मार्च अप्रैल में होने वाला है
झारखंड,उत्तराखंड,छतीसगढ़,तेलेगंना,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व विधान सभा में दिया गया है। बिहार विधान सभा में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है। इसको लेकर बिहार के एंग्लो इंडियन समुदाय में सरकार के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है। यह समुदाय खरमास को नहीं जानते हैं।
पटना,08 फरवरी। सूबे में अल्पसंख्यक आयोग, अनुसूचित जाति आयोग,अनुसूचित जनजाति आयोग,बिहार महादलित आयोग,महिला आयोग आदि को शिथिलावस्था में रखा गया है। इसको लेकर महत्वाकांक्षी लोग बैचेन हैं। सभी लोग चाहते हैं कि शिथिलावस्था भंगकर गठन कर दिया जाएं। इस बाबत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खरमास खत्म होने के बाद गठन करने की बात कहे थे। मगर यह खुलासा नहीं किए कि 2018 अथवा 2019 का खरमास खत्म होने के बाद गठन करेंगे। 2018 का खरमास दिसम्बर माह में खत्म हो गया। सीएम साहब के द्वारा पुनर्गठन नहीं किया गया। अब 2019 का खरमास मार्च अप्रैल में होने वाला है। इसके आलोक में फरवरी माह ही शेष है। मार्च अप्रैल खरमास है। उसी लोक सभा का आम चुनाव की चहलकदमी चरम पर होगा। अब फरवरी माह का मौका सीएम साहब के हाथ में है। आयोगों का पुनर्गठन कर दें अथवा सूली पर लटका रहने दें। जानकार लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पेशोपेश हैं। अगर आयोगों का पुनर्गठन कर देते हैं तो कई तबका आक्रोश व्यक्त करने लगेगा। बगावत पर उतर जाएंगे। अव्वल जदयू और बीजेपी के बीच तनाव कायम हो जाएगा। दोनों दलों के नेता चाहेंगे कि उनके समर्थक ही आयोगों में छा जाए। उसी तरह वोट देने वाले भी नाखुश हो जाएंगे। इस समय सभी लोग जागरूक हो गए हैं। धर्म वाले हो अथवा जाति संबंधी लोग हो। सभी लोग स्वार्थ में डूब गए हैं। अपने हिस्से की मांग करने लगे अथवा मांग करेंगे।
बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग
बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष का पद राजनीतिक हो गया है। सत्ताधारी राजनैतिक दल अपने ही पक्ष में भूनाना चाहता है। सत्ताधारी दल अपने ही चहेते और वोट बैंक की हिसाब से अध्यक्ष का चयन करता है। अल्पसंख्यकों में मुसलनमान ही वोट बैंक है। इसके आलोक में उनको ही सदैव अध्यक्ष पद देने का परम्परा बना दिया गया है। इसको लेकर अन्य अल्पसंख्यक समुदाय आक्रोशित भी होते हैं। अल्पसंख्यकों में द्वितीय स्थान पर ईसाई हैं तो उनको उपाध्यक्ष पद देकर खुश कर दिया जाता है। मगर ईसाई समुदाय भी नाखुश हैं। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अल्पसंख्यक विभाग के उपाध्यक्ष सिसिल साह का स्पष्ट कहना है कि क्यों नहीं ईसाई समुदाय के लोग आयोग के अध्यक्ष नहीं बन सकते हैं ? क्या काबिलियत में कमी हैं? हां स्वविवेक से मतदान करते हैं। जो उनके हितैषी हैं।
एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं
आजादीके बाद में बड़ी संख्या में एंग्लो इंडियन परिवारों ने बिहार में रहने का फैसला किया था। संयुक्त बिहार के समय में रांची के मैक्लुस्कीगंज में इनकी बड़ी आबादी रहती थी। इस समुदाय को विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने के लिए कई राज्यों की विधानसभा में इन्हें मनोनीत किया जाता है। इनमें बिहार भी एक था। राज्य बंटवारे के बाद एंग्लो इंडियन कोटा झारखंड में गया। जिस वजह से झारखंड विधानसभा के लिए हर पांच साल बाद एक व्यक्ति को विधायक मनोनीत किया जाता है। झारखंड,उत्तराखंड,छतीसगढ़,तेलेगंना,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व विधान सभा में दिया गया है। बिहार विधान सभा में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है। इसको लेकर बिहार के एंग्लो इंडियन समुदाय में सरकार के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है। इसको लेकर बिहार के एंग्लो इंडियन समुदाय में सरकार के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है। यह समुदाय खरमास को नहीं जानते हैं। इनका कहना है कि बिहार सरकार ने एंग्लो इंडियन समुदाय को संवैधानिका अधिकार से वंचित कर रखा है। बिहार विधान सभा में समुदाय के एक व्यक्ति को मनोनीत करना ही है। जो बिहार बंटवारा 15 नवम्बर,2000 के बाद से नहीं हो रहा है। इस संदर्भ में एंग्लो इंडियन समुदाय से मनोनीत होने वाले पूर्व विधायक आल्फ्रेड जौर्ज डी रोजारियो का कहना है कि उत्तर प्रदेश के बंटवारा होने के बाद उत्तराखंड और छतीसगढ़ में एंग्लो इंडियन समुदाय के एक सीट सुरक्षित कर एक व्यक्ति को मनोनीत किया जा रहा है। जो बिहार में नहीं हो रहा है। बिहार बंटवारा के बाद एंग्लो इंडियन समुदाय बहुल्य मैक्लुस्कीगंज झारखंड में चला गया। इसके आलोक में समुदाय विशेष का विधायक झारखंड विधान सभा में प्रतिनिधित्व करने लगे। इस समय समुदाय से विधायक ग्लेन जोसेफ गोलस्टेन हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें