अरुण कुमार (आर्यावर्त) मंसूरचक के दूरस्थ गांव कस्तौली के प्रतिभावान शिक्षक साहित्यकार सह कवि के द्वारा रचित "लोकतंत्र की हत्या" नाट्य पुस्तक में तीन छोटे छोटे नाटकों को संग्रह किया गया है।"बेटी तू वरदान","बिहारी हिम्मत वाला" और "लोकतंत्र की हत्या" में काल्पनिक चरित्र को एक जीवंत चरित्र में रूपांतरित करने की कला ने मनमुग्ध कर लिया। तीनों नाटकों ने समाज के लोगों को मार्गदर्शन का कार्य किया है। नाट्य लेखन की कौशलता इस तरह है कि पढ़ते समय मानो सामने को चलचित्र चल रहा हो,बेटी तू वरदान में विमला जैसी सोच की महिलाओं को तमाचा मारने का प्रयास किया गया है वह सराहनीय है,सूरज और उसके मित्र मंडली इस बात की सूचक है कि विद्या को मूल्य देकर या बड़े शहरों में ही सिर्फ नहीं ग्रहण किया जा सकता।प्रतिभावान विद्यार्थी कहीं भी विद्या ग्रहण कर सकते हैं।ममता ने जिला कलेक्टर बन कर बेटियों में उत्साह और उमंग भरने का कार्य किया है,ममता जैसी बेटी को सलाम है।बिहारी हिम्मतवाला नाटक में दिखाया गया है कि बिहार का व्यक्ति योग्य और सक्षम होने के उपरांत भी,बिहार राज्य के होने मात्र से अनेक समस्याओं का सामना करने के लिये विवश होते हुए,अनेकों तरह की प्रताड़ना सहने को भी विवश हो जाता है।किसी एक बिहारी व्यक्ति के कारण पूरे बिहार को एक जैसा मूल्यांकन करते हैं,और आपने राज्य का नाम भी स्पष्ट रूप से बताने में कतराते हैं जो शर्मनाक है।इन सब को नज़रंदाज़ करते हुई बिरजू अपना परिचय हमेशा एक बिहारी के रूप में देता है जो एक हिम्मत का कार्य है और फैसला करता है वो बिहार आकर उच्चतम शिक्षा ग्रहण करेगा और गर्व से कहेगा मै बिहारी हूँ।तीसरा नाटक लोकतंत्र की हत्या में दर्शाया गया है कि लोकतंत्र में ही लोगो का हनन किस तरह किया जाता है और दानवीर जैसा लोकतंत्र की हत्यारा लोक तंत्र के पुजारी को कभी धनरूपी अस्त्र से तो कभी धमकी से हटाना चाहता है और इस नाटक में राजनीतिक और कानून के रक्षकों के बीच के तालमेल का काला चिट्ठा खोलता है।विमल जैसे ईमानदार पत्रकार और सूरज जैसे समाजसेवी ने तिल भर भी लोकतंत्रवाद से निष्ठा नहीं हटाई और इसके परिणाम स्वरूप विमल की हत्या का दोषी सूरज को रखा गया,लेकिन आखिर में भले ही लोक तंत्र की जीत हुई लेकिन निर्दोष भी इसके अंदर मसले गए इसलिए ये लोक तंत्र की हत्या हुई।कुल मिलाकर ये नाटक संग्रह गागर में सागर का कार्य करेगा।अब आवश्यकता है इसे मंच पर आने की।
शनिवार, 22 जून 2019
बिहार : कुमार अमरेश की "लोकतंत्र की हत्या" की समीक्षा
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