बिहार : सरकार राज्य में दिमागी बुखार को आपदा घोषित करें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 22 जून 2019

बिहार : सरकार राज्य में दिमागी बुखार को आपदा घोषित करें

  • इससे मरने वाले लोगों को भी आपदा राहतकोष से मुआवजा मिले

सभी चैाराहों, गांवों तथा बस्ती में टंकी के माध्यम से पानी उपलब्ध कराया जाये। दिमागी बुखार और लू से मौत होने पर सभी का पोस्टमार्टम कराया जाये। 
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पटना, 21 जून। बिहार के नागरिकों की तरफ से प्रेसवार्ता कर रिपोर्ट जारी की गयी। प्रदेश में जारी दिमागी बुखार, गर्मी और लू से असामयिक मौत और प्रशासन की विफलता से नन्हें-मुन्ने बच्चे काल के गाल में समा जाने को बाध्य हैं। उनपर वृहत रिपोर्ट तैयार करने के लिए बिहार के सिविल सोसाइटी की तरफ से चार टीम गठित की गई। अबतक करीब 500 लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें लगभग 200 बच्चे भी शामिल हैं। जारी आपात स्थिति को आकलन करने को लेकर सिविल सोसाइटी ने एक टीम को मुजफ्फरपुर भेजकर दिमागी बुखार (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) से बच्चों की हुई मौत के बारे में, दूसरी टीम औरंगाबाद, तीसरी टीम गया और चैाथी टीम मनेर में जाकर गर्मी और लू से हुई मौत की तात्कालीन नागरिक आकलन रिपोर्ट बनाई है। टीम में सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार, धार्मिक पुरोहित आदि थे। टीम में शामिल शाहीद कमाल ने बताया कि मुजफ्फरपुर जिले में चमकी बुखार से लगभग 200 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। यह दिमागी बुखार की बीमारी 5-6 जून से कहर बरपाने लगी है और वह सिलसिला रोज ही बढ़ता ही चला जा रहा है। शाहीद कमाल जब 17 जून को एडवोकेट मुकेश और परलयंकर के साथ मिलकर श्रीकृष्ण मेडिकल काॅलेज अस्पताल में गए तो देखे कि यहां पर 11 बच्चे और यहां के बाद केजरीवाल अस्प्ताल में गए तो वहां पर दो बच्चों ने दम तोड़ चुके थे। हां यह सिलसिला रोज बढ़ता ही चला जा रहा है। बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के साथ अन्य विभागों  के अनुसार 104 से बढ़कर 134 बच्चों की मृत्यु हो जाने की पुष्टि करते है। परन्तु सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक ही यह आंकड़ा है। करीब 200 से कहीं अधिक ही बच्चों की मौत हो गयी है। विडम्बना है कि सरकारी विभाग आंकड़ों में उलझी है और वहां बच्चे लगातार दम तोड़ रहे हैं। मुजफ्फरपुर शहर के दो विख्यात अस्पताल है। श्रीकृष्ण मेडिकल काॅलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) और किसी ट्रस्ट द्वारा संचालित केजरीवाल अस्पताल। इन दोनों अस्पतालों में बच्चे और खिदमतदारों से त्राहिमाम मचा हुआ है। यहां पर हर तरफ मौत के कारण रोना और चीख चिल्लाना रूटीन सा बन गया है। इस दिमागी बुखार नामक बीमारी के लक्षण है 104 डिग्री तक बुखार और बेहोशी हो जाना । जो अस्पताल में बच्चे आ रहे हैं वे सभी बीमार बच्चे प्रायः ग्रामीण इलाकों के ही हैं। ये बच्चे कमजोर सामाजिक और आर्थिक पृष्टभूमि होने के कारण शाम में 7 बजे ही आधा पेट खाना खाकर सो जाते हैं, और सुबह उठते ही कै-दस्त और तेज बुखार के कारण बेहोश हो हो जाते हैं। यह बीमारी मुख्यतः बुढ़ी गंडक के दोनों तरफ के इलाके को प्रभावित कर रही है। प्रभावित बच्चे की उम्र 6 महीने से 5-6 साल तक की ही होती है। पिछले 10-11 साल से जब भीषण गर्मी पड़ती है तो इस बीमारी का प्रकोप शुरू होता है और बारिश होने के साथ ही खत्म हो जाता है। बीमारी गरीब बच्चों को ही प्रभावित करती है। चार साल पहले सामाजिक संगठनों के दबाव पर सरकार ने  Virology Research Centre Pune का एक सेंटर यहां खोलने की बात कही। पुणे सेंटर से एक टीम भी आयी परन्तु यह रिपोर्ट पब्लिक नहीं हुई। उस समय सरकार ने मृत बच्चे के परिवार को 50000 रूपये देने की बात कही, परन्तु किसी प्रभावित परिवार को यह राशि नहीं मिली। एक बार फिर सरकार ने मृतकों के परिजनों को चार लाख रू. देने की घोषणा की है। यह बता दें कि चार साल पहले इस बीमारी से बचाव के लिए जागरूकता कार्यक्रम बंद कर दिया गया था जिसका परिणाम इस साल दिखाई दे रहा है। इस बीमारी के कारक में लीची खाने को जोड़ कर देखा और कहा जा रहा है, मगर यह इस बीमारी का एकमात्र कारण नहीं है, क्योंकि मृत्यु की घटना इस क्षेत्र विशेष में ही घटित हो रही है। बीमार होकर मरने वाले बच्चे 6 माह से 6 वर्ष तक के हैं। इनमें से सभी बच्चे लीची खाने से बीमार हुए इस बात का प्रमाण अभी तक टीम को नहीं मिली।

यह निष्कर्ष निकाला गया
1. राज्य सरकार ने प्रतिवर्ष होने वाली इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। 2. बीमारी के असली कारणों को जानने केे लिए अनुसंधान होना चाहिए, वह नदारद रहा। 3.जागरूकता कार्यक्रम को ठीक से नहीं चलाया गया। 4. बीमार होने के बाद सही इलाज की व्यवस्था में कमी। 5.यह बीमारी पानी की गुणवता बच्चों में कुपोषण, गर्मी, धूप से बच्चों का बचाव मुख्य कारण है। 6. इससे निपटने के लिए कार्यक्रमों का संचालन सही नहीं है। 7. बिहार में गैर बराबरी, आजीविका का संकट, सरकार द्वारा लगातार काटे जा रहे पेड़ और पहाड़, प्रशासनिक विफलता है। 

 सिविल सोसाइटी की मुख्य मांगे
1.सरकार द्वारा दिमागी बुखार से निपटने के लिए 2015-2016 में बनाये गए तथा 2018 में संशोधित एसओपी आधार पर मूल्यांकन किया जाये। 2. कमजोर स्वास्थ्य सेवा संरचना ने इस समस्या को और भी गंभीर बना दिया। मुजफ्फरपुर की कुल जनसंख्या के अनुपात में वहां 160 पीएचसी होने चाहिए थे जबकि वहां मात्र 16 पीएचसी उपलब्ध है। 2. चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों की 80 प्रतिशत रिक्त पदों पर भत्र्ती त्वरित रूप से होनी चाहिए। 3. पीएचसी में वातानुकूलित वार्डों की व्यवस्था हो जिससे मुख्यालय के जाने से पूर्व स्वास्थ्य सेवा ग्रामीणों को निकट में उपलब्ध हो सके। 4. 2014 में केन्द्र सरकार द्वारा किये गए वादों पर अमल नहीं हुआ और पुनः उन्हें दुहराया गया है, इस बार इन वादों पर ठोस कार्रवाई हो। गया से सामाजिक कार्यकर्ता शत्रुध्न कुमार ने बताया कि हीट वेव से लोगों की मृत्यु हुए है शुरू में सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। जब गर्मी बढ़ने लगी तब जाकर जिला पदाधिकारी ने जांच का आदेश दिया। लोगों ने सरकारी अस्पताल में सुविधा की कमी, बेड, शौचालय, पानी, दवा, नर्स, डाक्टर आदि की कमी के काण निजी अस्पतालों में इलाज के लिए गए। इन सबों को आपदा के तहत मुआवजा मिलना चाहिए। लेकिन जो लोग निजी अस्पतालों में इलाज कराये हैं उन्हें मुआवजा मिलना असंभव दिखता है। इस लिए हमारी मांग है कि इसे मरीजों को चिन्हित कर स्थानीय प्रशासन मुआवजा सुनिश्चित करें। औरंगाबाद से राजेश्वर पासवान ने बताया कि जिला में पानी बहुत किल्लत है, लगभग 90 प्रतिशत चापाकल सूख चुके हैं। इसके लिए सरकार मात्र अपर्याप्त मात्रा में पानी टैंकर से उपलब्ध करा रही है। नल जल योजना के तहत जिला कि प्रत्येक पंचायत में 13-15 लाख तक मुहैया कराया लेकिन सभी भ्रष्टाचार में लूट लिया गया है। लोग बूंद-बूंद पानी के लिए आदमी और जानवर तरस रहे हैं। यह भयंकर महामारी की स्थिति है। अभी भी आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है। गांव में मृतकों की संख्या इससे ज्यादा है जिसका कोई अभी आकलन नहीं हुआ है। बिहार में लू और दिमागी बुखार से हो रहे मौत को रोकने के लिए सरकार दो स्तर पर कार्रवाई करे वह भी अविलम्ब और समय सीमा में।

* विभिन्न आपदाओं के समय राहत कार्य करने वाले संस्थाओं/ एजेसिंयों से सम्र्पक कर तत्काल मेडिकल किट ओआरएस, पैरासिटामोल, ग्लूकोज, थर्मामीटर, सूती कपड़ा आदि की व्यवस्था की जाएगी। स्थानीय स्वयंसेवकों द्वारा लू और दिमागी बुखार के लक्षण वाले लोगों के प्राथमिक उपचार जैसे बुखार आने पर ठण्डे पानी की पट्टी लगाना, दांत बैठाने पर मुंह में दांतों के बीच सूती कपड़ा लगाना, बुखार जांचना आदि सिखया जाये। इस संदर्भ में जागरूकता अभियान चलायी जाएगी।
* एक टीम बनाकर निजी चिकित्सा सेवा ( निजी प्रैक्टिस) करने वाले चिकित्सकों से संपर्क कर उन्हें स्थानीय स्तर पर प्रभावित लोगों को मुफ्त इलाज करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। इस संदर्भ में सरकार द्वारा भी एक कैबिनेट आदेश के द्वारा निजी चिकित्सा सेवा ( निजी प्रैक्टिस) वाले डाक्टरों को स्थानीय स्तर पर अस्थाई स्वास्थ्य केन्द्र चलाया जाये। निजी एम्बुलैंस को तत्काल सेवा में लगाई जाये। प्राथमिक सूचना और प्राथमिक उपचार के लिए आंगनबाड़ी को केन्द्र बनाया जाये तथा एम्बुलैंस की जानकारी भी वहां से हो। मुखिया, वार्ड सदस्य, विकास मित्र तथा आशा आदि को इसके लिए निर्देशित किया जाये।
* राज्य में दिमागी बुखार को आपदा घोषित करते हुए इससे मरने वाले लोगों को भी आपदा राहतकोष से मुआवजा मिले।
* सभी  चैाराहों, गांवों तथा बस्ती में टंकी के माध्यम से पानी उपलब्ध कराया जाये।
* दिमागी बुखार और लू से मौत होने पर सभी का पोस्टमार्टम कराया जाये। 

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