एक देश एक चुनाव व्यवहारिक नहीं : कांग्रेस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 26 जून 2019

एक देश एक चुनाव व्यवहारिक नहीं : कांग्रेस

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नयी दिल्ली, 26 जून, राज्यसभा में बुधवार को कांग्रेस ने देश की विकास यात्रा 2014 से शुरू होने का दावा करने पर सरकार को आड़े हाथ लेते हुए उसे भारत की विविधता का सम्मान करने की नसीहत दी। साथ ही पार्टी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार को अव्यावहारिक करार दिया। उच्च सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यों में जब सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाएं या सरकार गिर जाए तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? शर्मा ने सवाल किया कि वैसी स्थिति में वैकल्पिक सरकार कैसे बनेगी? उन्होंने चुनावी सुधार की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि चुनावी बांडों में पारदर्शिता नहीं है तथा इसके तहत 95 प्रतिशत राशि भाजपा को मिली है। शर्मा ने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा द्वारा भारी खर्च किए जाने पर भी सवाल उठाया। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि सदन में कांग्रेस के पूर्व खजांची (कोषाध्यक्ष) मोतीलाल वोरा बैठे हैं और वतर्मान कोषाध्यक्ष अहमद पटेल सदन में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से अनुरोध कर रहे हैं कि इन दोनों को इस बारे में कुछ बताएं। शर्मा ने भाजपा को फिर से सरकार में आने की बधाई दी और उम्मीद जतायी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ‘कड़वाहट’ बंद होगी तथा सरकार ‘‘दुर्भावना’’ से काम नहीं करेगी। शर्मा ने राष्ट्रपति अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि भाजपा नीत सरकार की मानसिकता सही नहीं है और उनका मानना है कि 2014 के पहले देश में कोई प्रगति नहीं हुयी। अभिभाषण का जिक्र करते हुए कहा शर्मा ने कहा कि ऐसा लगता है कि देश के विकास का कार्य 2014 में ही शुरू हुआ। उन्होंने सवाल किया कि आजादी के बाद से 2014 तक देश में क्या कोई प्रगति नहीं हुयी। उन्होंने कहा कि अभिभाषण में पांच साल का हिसाब दिया जाना चाहिए था। यह लोकतंत्र की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बड़े बड़े वायदे किए गए थे लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया। सरकार की ओर से वादाखिलाफी हुयी है और उसका जवाब देना होगा। उन्होंने कहा कि यह अभिभाषण जमीनी हकीकत को नकारता है और इसमें कोई नयी रोशनी नहीं है।

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती का जिक्र करते हुए शर्मा ने कहा कि राष्ट्रपिता का सिर्फ स्मरण करने की जरूरत नहीं है बल्कि उनका अनुसरण करने की आवश्यकता है। उन्होंने अभिभाषण में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जिक्र नहीं होने पर आपत्ति जतायी और कहा कि वह भी आजादी की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के नेताओं में थे। वह आजादी के आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा समय तक जेल में रहने वाले नेताओं में से एक थे। आजादी की लड़ाई के दौरान कुछ पक्षों ने अंग्रेज शासन से उस आंदोलन को कुचलने को कहा था। उन्होंने कहा कि सदन में आजादी की लड़ाई के बारे में भी चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू के कार्यकाल के दौरान देश में विकास की नींव पड़ी और कई प्रतिष्ठित संस्थाओं की स्थापना की गयी। हम उनके कृतज्ञ हैं लेकिन सदन में उनके बारे में कड़वे शब्द सुनने को मिल रहे हैं। उनके बारे में भ्रामक बातें की जा रही हैं। शर्मा ने कहा कि पंडित नेहरू की आलोचना बंद होनी चाहिए और सरकार को देश को सही रास्ते पर आगे ले जाना चाहिए। भाजपा को भारत की विविवधता को स्वीकार करना चाहिए। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने दावा किया कि अब तक किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री ने यह दावा नहीं किया कि वह स्वयं युद्ध लड़ने गए थे या उन्होंने चुनाव में युद्ध का फायदा उठाया था। चाहे वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में लड़ा गया 1971 का भारत पाक युद्ध हो या फिर अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में लड़ा गया करगिल युद्ध हो। उन्होंने कहा कि चुनाव का नतीजा चाहे जो भी हो, लेकिन विपक्ष जहां कहीं भी सरकार की गलती देखेगा, वह उसके बारे में अवश्य बोलेगा और इसको लेकर किसी को कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वह पूरे विपक्ष की ओर से यह कहना चाहते हैं कि देश की सुरक्षा और अखंडता को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कांग्रेस इस बात को इसलिए भी अच्छी तरह जानती है क्योंकि कांग्रेस ने देश की सुरक्षा के लिए कई बलिदान दिए हैं। शर्मा ने राष्ट्रपति के अभिभाषण में 2014 से देश के विकास का सफर शुरू होने की बात के उल्लेख पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि देश के विकास की राह तो आजादी प्राप्त होने के तुरंत बाद ही शुरू हो गई थी और तब ही इसकी नींव रखी गई थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा ‘‘कृपया राष्ट्रपति को ऐसा भाषण न लिख कर दें कि 15 अगस्त 1947 को कुछ भी नहीं हुआ और जो कुछ हुआ वह 26 मई 2014 को ही हुआ।’’  उन्होंने भारत में बहु धर्म बहु संस्कृति बहु नस्ल होने का उदाहरण देते हुए सरकार से कहा कि वह देश की विविधता का सम्मान करना सीखे।

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