विशेष : बेरोजगारी निवारण का एक विकल्प यह भी है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

विशेष : बेरोजगारी निवारण का एक विकल्प यह भी है

भारत का युवा-वर्ग का आरोप रहता है कि वह बेरोजगार है, नौकरी के लिये दर-दर भटक रहा है, सरकारी सेक्टर में नौकरी मिलती नहीं। बेरोजगारी भी देश की एक गम्भीर समस्या कही जाती है, लेकिन मै इससे कदाचिद सहमत नही हूं क्यों कि कर्मशील व्यक्ति के लिए काम की कोई कमी नही है और कर्महीन व्यक्ति के लिए सामने काम दिख रहा है, तो भी वह काम नही करना चाहेगा। फिर तो यही कहा जा सकता है कि ’अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए, सब के दाताराम।’ नोकरी सरकारी हो या गैरसरकारी, एक मानसिकता बन जाती है कि महिने के आखिरी मे पगार मिलेगी, बस फिर चैन करना है। अमेरिका के सरकारी सेक्टर में नौकरी की ओर लोग आतुर नही रहते हैं, वहां स्वरोजगार, व्यापार व गैरसरकारी सेक्टर को प्राथमिकता मानते हैं। भरत मे भी स्वरोजगार की अपार सम्भावनाएं हैं। प्लम्बर, बिजली-मिस्त्री, मोटर-ड्रायविंग, सवारी-वाहन, आॅटोमोबाईल-मिस्त्री, कम्प्यूटर-रिपेयरिंग, कम्प्यूटर-बनाना, कम्प्यूटर-टाईपिंग, मोबाईल-रिपेयरिंग, नर्सिंग, कम्पाऊण्डर, पैथेलोजीकल-सेन्टर, बिस्किट-ब्रेड निर्माण, ब्यूटी-पार्लर, हेयर-कटिंग, टैलरिंग, रेस्टोरेन्ट, हाईवे-ढावा, ईमानदार-बकील, पिटीशन-राईटर, डोक्यूमेन्ट-राईटर, अर्किटेक्ट, आदि अनेकों अनेक हजारों स्वरोजगार की सम्भावनाएं हमेशा उपलब्ध हैं और इनका स्कोप कभी भी कम नही होने वाला है। यदि काम करने की इच्छा-शक्ति है तो बेरोजगारी कोई समस्या नही है। आश्चर्य तो यह है कि जो पढ़ा-लिखा है, वही रोजगार के लिए चिल्लाता है और जो कुपड़ है, वह कोई न कोई काम मे लगा है। अर्थात गत 70 वर्षोें से हमारी शिक्षा-नीति दोषपूर्ण है जिसे रोजगारोन्मुख होना चाहिए।  एक सत्य व गम्भीर आरोप पर भी चिन्तन करना आवश्यक है कि शासन के बिभिन्न विभागों में नौकरी हेतु विज्ञापन तो सार्वजनिक किये जाते हैं, निर्धारित् शुल्क लेकर आवेदन भी आहूत किये जाते हैं, सुनिश्चित तिथि पर परीक्षायें भी ले ली जातीं हैं लेकिन चयन परीक्षा के परिणाम इतने अधिक बिलम्ब से घोषित होते हैं कि युवकों का उत्साह क्षींण हो जाता है। इस प्रक्रिया के चलते युवकों में हताशा की स्थिति निर्मित होने लगती है। यदा-कदा ऐसा भी हुआ है कि चयन परीक्षा के आवेदनों को निर्धारित् शुल्क के साथ राज्य की सरकारों के द्वारा प्राप्त तो कर लिये जाते हैं परन्तु चयन परीक्षा अनिश्चित समय के लिये टाल दी जाती है। अप्रत्यक्ष रुप से सरकार को शुल्क बसूली के माध्यम से आर्थिक लाभ हो जाता है लेकिन परीक्षार्थियों का व्यय और समय जाया होता है तथा बेरोजगार युवक का दामन आर्थिक क्षति के होते हुए खाली ही बना रहता है। अतः गम्भीरता पूर्वक विचारणीय हैं कि सरकारी क्षेत्र में रोजगार की समस्या का क्या हल है ? 
मैं शासन की इस नीति से सहमत नही हूं कि शासकीय सेवा में सेवानिवृति की आयु 60 वर्ष, किन्हीं सेवाओं में 62 वर्ष एवं कुछ विशेष सेवाओं में 65 वर्ष है। मैं इस नीति से भी सहमत नही हूं कि सरकारी नौकरी के लिये आयु सीमा 35-40 वर्ष तक की बढ़ाई जाती है। कैसी बिडम्बना व मजाक का विषय है कि देश के नागरिक को 35 वर्ष की आयु में भी बेरोजगार होने की मान्यता दी जा रही है ! अरे 35 वर्ष की आयु के बाद से तो युवावस्था का उतार प्रारम्भ हो जाता है और क्या ऐसी कल्पना की जा सकती है कि 35 वर्ष का कोई व्यक्ति बेरोजगार होकर फ्री-फोकट की रोटियां तोड़ रहा हो ? परिणामतः देश के युवाओं में एक अनिश्चितता की मानसिकता विकसित हो रही है। शासकीय नौकरियों में आयु सीमा बढ़ाने जैसा निर्णय तो ठीक ऐसा ही है कि जैसे यात्रियों को बोल दिया जाये कि फलां स्टेशन तक जाने के लिये एक ट्रेन आयेगी, यात्री इन्तजार करें। जबकि ट्रेन आने की कोई निश्चितता व समयबद्वता नहीं है, ट्रेन आती भी है तो इतनी बिलम्व से कि यात्री स्वयं अपने साधन से गंतव्य स्थान तक पहुंच सकता था। वर्तमान नीति में रोजगार हेतु अनिश्चितकालीन इन्तजार उचित नहीं है। न तो सरकार के द्वारा अनिश्चितता की स्थिति निर्मित होना चाहिए और न ही देश के युवाओं में अनिश्चितता की मानसिकता बनाना चाहिए। 
आईए, प्रथमतः सरकारी क्षेत्र में नोकरी की संभावना पर चर्चा करैं। प्रथमतः हमें शासकीय-सेवा के कार्य-क्षेत्र का वर्गीकरण करना होगा और इसके अलावा कुछ विशेष सेवाओं में कार्यरत् शासकीय-सेवकों का भी वर्गीकरण करना होगा। कुछ सेवायें ऐसी हैं जिनमें किसी खास विशेष-योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है, उदाहरणार्थ समस्त विभागों में चतुर्थ श्रेंणी सेवायें, तृतीय श्रेंणी लिपिकीय सेवायें, कुछ विशेष-योग्यता के शिक्ष्कों को छोड़ कर शिक्षा विभाग की सेवायें, पुलिस विभाग में आरक्षक स्तर की सेवायें, स्वास्थ्य विभाग में मेल व फीमेल नर्स की सेवायें, रेल्वे में गैर-तकनीकी सेवायें, लिपिकीय सेवायें, टी.सी., गार्ड आदि अनेकों अनेक गैर-तकनीकीं शासकीय नौकरियों की सेवानिवृति की अधिकतम् आयु 50 वर्ष हो जाना चाहिए। एक सिद्वान्त है कि ’जितनी जल्दी जगह खाली होगी, उतनी ही जल्दी भर जायेगी’ 50 वर्ष की आयु में सेवानिवृत होने के परिणामस्वरुप देश के 20-22 वर्ष के युवाओं को सरकारी क्षेत्र में नौकरी की संभावनायें निर्मित होने लगेगीं। अर्थात् सेवानिवृति और नौकरी एक दूसरे के पूरक हैं। सेवानिवृति से जब खाली स्थान बनेगा तभी तो युवकों को नौकरी मिल पाएगी। युवाओं को जल्दी नौकरी मिलेगी तो उनके विवाह भी जल्दी होगें और आयु के उत्तरार्ध में वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से भी जल्दी निवृत होगें।  अब प्रश्न यह उठेगा कि 50 वर्ष का शासकीय सेवानिवृत व्यक्ति भी तो बेरोजगार हो जाएगा, उसके लिये क्या निदान है ? लेकिन नहीं ! वह भी बेरोजगार नहीं होगा और इस पर भी चर्चा कर लेते हैं। इसी प्रसंग में यह भी गौर करना होगा कि जब व्यक्ति 60-62 वर्ष की आयु मे सेवानिवृत होता है तो उस समय तक उसके कार्य करने में शिथिलता होने लगती है। सेवानिवृत के बाद तो सामान्यतया वह अन्य कोई नया कार्य प्रारम्भ नही कर पाता है। आयु के उत्तरार्ध मे 60-62 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति की बृद्धावस्था व शिथिलता का समय प्रारम्भ होने वाला होता है और यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शासकीय नौकरी में उसकेे कर्तव्यों के पालन में शिथिलता होने लगेगी। 

मेरा सुझाव है कि उपरोक्त उल्लिखित वर्गीकृत सेवाओं के लिये 50 वर्ष मे सेवानिवृति के साथ ही शासकीय सेवाओं के दौरान उसकी जमा-शुदा राशि और सरकार स्वयं अपनी ओर से उसकी नौकरी के स्तर को देखते हुये कुछ अतिरिक्त राशि का भुगतान उसे तत्काल करे। जिससे कि सेवानिवृत होने के पश्चात् वह व्यक्ति अपना स्वयं का अपनी रुचि के अनुसार कोई व्यवसायिक रोजगार प्रारम्भ करते हुए आय अर्जित कर सके। उसके शेष 10-12 वर्षों के सेवाकाल के वेतन के स्थान पर पेंशन देने मे शासन पर भी आर्थिक बोझ मे कमी आऐगी और युवकों द्वारा ऊर्जावान हो कर अधिक सक्रियता से शासकीय-कार्य भी होगा। पचास वर्षीय आयु को बृद्धावस्था नहीं माना जा सकता है। अर्थात् इस आयु में एक परिपक्व चिन्तन, परिपक्व सूझबूझ, परिपक्व निर्णय लेने की क्षमता तो रहती ही है और कार्य करने की ऊर्जा में भी उसे कोई कमी नहीं रहती है। इस अवस्था में सेवानिवृत होने के पश्चात् व्यक्ति शासकीय सेवा से परे होकर स्वतन्त्र रुप में स्वयं पर निर्भर होकर जब अपने स्वअर्जित आय की स्थापना करेगा तो अपने जीवन मे बृद्धावस्था के पड़ाव तक उसे बेरोजगार जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा और परिवार व समाज में उसकी नाकदरी भी नहीं होगी। वह अपने आखिरी समय तक व्यस्त बना रहेगा और व्यस्त व्यक्ति ही स्वस्थ्य रहता है। हम देखते हैं कि 60 अथवा 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत व्यक्ति स्वयं अपने आप को अनावश्यक, अनापेक्षित, असरहीन व गैर-जरुरी मानने लगता है क्यों कि उसके पास कोई काम नही रहता है। वह अपने शेष जीवन को व्यतीत करना एक समस्या मान लेता है। देखा यह भी जा रहा है कि परिवार के लोग उसे बोझ मानने लगते हैं। इस आयु में उससे अन्य कोई नया कार्य अथवा रोजगार नहीं हो पाता है। इस प्रकार 50 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति की सेवानिवृति होने के बाद भी वह रोजगार मे व्यस्त रहेगा एवं युवाओं को 22-25 वर्ध की आयु मे सरकारी नौकरी मिलेगी। अर्थात् दोनों दृष्टिकोंण से 50 वर्ष की आयु में सेवानिवृति लाभप्रद होगी।

शासकीय नौकरी में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने कर्तव्यों के निर्वाहन में अत्यन्त शिथिल अथवा भृष्ट हैं अथवा अपने निकम्मेपन की पहचान बनाए हुए हैं और अपनी सेवानिवृति का इन्तजार करते हुए लाभ उठा रहे हैं। ऐसे अकर्मण्ड्य शासकीय-सेवा का लाभ उठाते रहते हैं और जीवन भर सरकारी दामाद बन कर पेंशन लेते रहते हैं। अभी हाल ही मे प्रसारित खबर कि झारखण्ड के हजारीबाग मे एक नहर 42 वर्षों से बन रही थी, उसके निर्माण मे 2176 करोड़ रूपए व्यय हुए लेकिन नहर के उदघाटन के बाद 24 घण्टे के अन्दर वह टूट गई। सरकार ने जांच का आदेश कर दिया। सेकड़ों हजारों घोटालों के जांच परिणाम याद्दास्त के परे हो जाते है। नोकरी से हटाने के साथ-साथ ऐसे भृष्ट अधिकारियों व ठेकेदारों की समस्त सम्पत्ति जब्त कर क्षतिपूर्ति होना चाहिए। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि भृष्ट व निकम्मे शासकीय-सेवक शासन पर बोझ बन चुके हैं। इनका कार्य सिर्फ वेतन लेना व समय व्यतीत करना रह गया है, उनके अपने कार्य-क्षेत्र से कोई सरोकार नहीं रहता है। उनका वर्क परफाॅर्मेंन्स सुनिश्चित मानकों के नीचे रहता है। इनमें उनके वर्क परफाॅर्मेंन्स की समय-समय पर आंकलन होना चाहिए और इस हेतु जांच कमेटी गठित करनी होगी जो यथासमय सुनिश्चित अवधि में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करंे और ऐसे शासकीय सेवकों को, जो भले ही किसी भी केडर और ग्रेड के हों, आई.ए.एस. या आई.पी.एस. ही क्यों न हों, आवश्यक सेवानिवृति की नीति निर्धारित् करते हुए उन्हे सेवानिवृत करना चाहिए। मोदी सरकार इस दिशा मे सक्रिय भी है।

unemployement-indiaराजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
rajendra.rt.tiwari@gmail.com
फोन- 07522-238333, 9425116738
नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों 
के समालोचक हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: