--- बिहार-झारखंड: राजनेताओं की रंगरेलियां 2 ---
वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार, पटना
बिहार विधान मंडल की पूर्व सदस्य रमणिका गुप्ता अपनी आत्मकथा में लिखती हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर धनबाद में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें कई ख्यातिलब्ध कवियों ने शिरकत की। मुख्यमंत्री भी आये। इसका आयोजन रमणिका गुप्ता ने ही किया था। कवि सम्मेलन के बाद मुख्यमंत्री ने उन्हें पटना आने का बुलावा दिया। इस घटना के बाद रमणिका का प्रभाव कोयलांचल में बढ़ गया। वे बताती हैं कि एक रोज वे मुख्यमंत्री से मिलने पटना पहुंची। मुख्यमंत्री सवेरे चार बजे फाइल देखते थे। उसी समय वे अपने खास मिलने वालों को बुलाते थे, जिनमें औरतें भी होती थीं। सुबह चार बजे रमणिका भी पहुंची। वे लिखती हैं कि मेरी तरफ आते हुए वे हाथ फैलाकर बोले- बोलो क्या चाहिए, बिहार का मुख्यमंत्री तुमसे कह रहा हूं। इस दौरान थोड़ी देर काम की बात की और धनबाद में कांग्रेस कार्यालय के पास महिला प्रशिक्षण केंद्र खोलने के लिए जमीन आवंटन करने संबंधी कागजात पर सहमति लेकर संबंधित व्यक्ति को आदेश जारी करवा लिया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरा मन तुमने जीत लिया है। यह कहते हुए मुख्यमंत्री ने आगोश में लेकर चूम लिया। इस प्रसंग में वह लिखती हैं कि मैं विरोध नहीं कर सकी या शायद मैंने विरोध करना ही नहीं चाहा। ... तनावग्रस्त राजनेता महिला कार्यकर्ताओं से शारीरिक सुख पाकर तनाव मुक्त होने को अहसान के रूप में लेता है, तो राजनीतिक महिलाएं उसके बदले सुरक्षा और वर्चस्व के फैसले अपने पक्ष में हासिल करती हैं। इसी प्रसंग में वह लिखती हैं कि बिहार में राजपूत और भूमिहार दोनों ही जमींदार वर्ग के हैं, हालांकि कायस्थों का समझौता प्राय: राजपूतों के हाथ होता रहा है। भले ही लाल सेना के खिलाफ रणवीर सेना के झंडे तले दोनों जातियां एक होकर खड़ी होने पर मजबूर हो गयी थीं, पर आपसी रिश्तों में जातीय बैर आज भी बरकरार है। मुख्यमंत्री के साथ रिश्तों को लेकर वह लिखती हैं कि अब मैं कहूं कि यह मेरा शोषण था तो शायद गलत बयानी होगी। क्योंकि राजनीतिक सीढि़यों पर चढ़ने के लिए प्राय: हर व्यक्ति को, औरत हो या मर्द, सुरक्षा कवच जरूरी होते हैं। मुझे मुख्यमंत्री का सुरक्षा कवच मिल रहा था। छद्म नैतिकता के बजाये शायद ज्यादा भरोसेमंद था यह आश्वासन।
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