आलेख : आखिर क्यों हैं महिलाएं अपने अधिकारों से महरूम? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

आलेख : आखिर क्यों हैं महिलाएं अपने अधिकारों से महरूम?

woman rights
हर साल अंतरराश्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देष्य महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अधिकार दिलाने के साथ महिलाओं की सुरक्षा को भी सुनिष्चित करना है। इसमें कोई षक नहीं महिलाएं हर क्षेत्र में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। लेकिन 21 वीं सदी के इस दौर में जहां एक तरफ महिला सषक्तिकरण की बातें हो रहीं है, वहीं लाखों  महिलाएं आज भी अपने मूलभूत  अधिकारों से वंचित हैं। अंतरराश्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पूरे विष्व की महिलाएं जात-पात, रंग-भेद, वेष-भूशा, भाशा से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस महिलाओं को अपनी दबी-कुचली आवाज़ को अपने अधिकारों के प्रति बुलंद करने की प्रेरणा देता है। हमारे देष में महिलाओं के साथ भेदभाव की कहानी पारिवारिक स्तर से षुरू हो जाती है। कई बार तो लड़की को दुनिया में आने से पहले ही बोझ समझकर मां के गर्भ में खत्म कर दिया जाता है। अगर लड़की परिवार में जन्म ले भी लेती है तो लड़के के मुकाबले उसको  हर स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। और तो और लड़कों के मुकाबले लड़कियों को षिक्षा देने में भी कमी की जाती है। इसके पीछे पुरूश समाज की सोच यह होती है कि लड़की पढ़ लिखकर क्या करंेगी, इसको तो षादी होकर अपने घर जाना है? घर का सारा काम करने के बावजूद भी आज भी ज़्यादातर परिवारों में महिलाएं पुरूशों के बाद ही खाना खाती है। लड़कियों के अधिकारों का कत्लेआम तो सबसे पहले पारिवारिक स्तर पर ही होता है।
            
महिलाओं के साथ भेदभाव की यह दास्तां यहीं नहीं थमती है। आज़ादी के 66 वर्शो के बाद भी हम महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा पर पूरी तरह लगाम नहीं लगा पाए हैं। बाल विवाह और दहेज प्रथा की बेडि़यां आज भी हमारे समाज को जकड़े हुए हैं। बलात्कार के मामलों में लगातार इज़ाफा होता जा रहा है। षायद ही कोई ऐसा दिन जाता होगा कि महिलाओं के साथ उत्पीड़न और अत्याचार की दास्तां अखबारों की खबर न बनती हो। महिलाओं के साथ सामाजिक दुव्र्यवहार के बहुत से मामले हैं जिन्हें अनदेखा करना आम सी बात हो गयी है। कुल मिलाकर हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति खराब है। आज महिलाओं को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है आवष्यकता है उन्हें उचित सुविधाओं की उनकी प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं के सम्मान की और सबसे बढ़कर तो ये की समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। महिला दिवस के अवसर मैं देष की सभी महिलाओं से यही विनती करना चाहंूगा कि अपनी इस सोच को बदले कि वह पुरूश प्रधान समाज का हिस्सा हैं। महिलाएं जब तक अपनी इस सोच को नहीं बदलेंगी तब तक आगे नहीं बढ़ सकतीं। 
         
सवाल यह है कि फिर अंतरराश्ट्रीय महिला दिवस मनाने का मतलब क्या है? जब महिलाओं की अवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है तो अंतरराश्ट्रीय महिला दिवस  का भारत में क्या महत्व है? जब तक कि पुरूश वर्ग महिलाओं को सम्मान से नहीं देख सकता तब तक महिलाओं की स्थिति नहीं बदलेगी। पुरूश समाज को महिलाओं के प्रति अपने नज़रिये में बदलाव लाना होगा। नारी जाति के प्रति जब तक पुरूशों का नज़रियां नहीं बदलेगा तब तक महिलाएं अपने हक से वंचित होती रहेंगी। अंतरराश्ट्रीय महिला दिवस जहां एक ओर महिलाओं को अपने हक के प्रति आवाज़ बुलंद करने की प्रेरणा देता है, वहीं दूसरी ओर पुरूश समाज को नारी जाति के प्रति अपना नज़रियां बदलने की भी हिदायत देता है। लाख कोषिषों के बाद भी महिलाएं अपने बुनियादी हक से महरूम है। चरखा महिलाओं से जुडे़ मुद्दों को प्रिंट मीडिया में लाने का काम अपनी हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी फीचर सर्विस के माध्यम से पिछले 20 सालों से कर रहा है।  चरखा के मुल्कभर के ग्रामीण लेखक अपने इलाके में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करने के बाद अपना लेख  चरखा को भेजते हैं। इस तरह चरखा ग्रामीण लेखकों से प्राप्त लेख को एडिट करके अपनी फीचर सर्विस के माध्यम से प्रिंट मीडिया में प्रकाषित कराने का काम कर रही है।  हकीकत में आज चरखा के प्रकाषित लेख उन महिलाओं की आवाज़ बन चुके हैं जिनकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है। 




गौहर आसिफ
(चरखा फीचर्स)  

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