- पर्व को मनाने में नहीं होता अमीर-गरीब का भेदभाव, ईश्वर का अद्भूत प्रेम प्रभु यीशु से ही प्रकट हुआ, वह खुद ही दाता खुद ही दान है, आज बांटी जायेंगी घर-घर प्रेम, त्याग, कृपा का आर्शीवचन
शांति के दूत है प्रभु यीशु। यीशु के जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों ने सर्वोच्च गगन में परमेश्वर को महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति का संदेश कुछ चरवाहों को दिया था। हजारों वर्ष से ख्रीस्त जयंती की मंगलमय बेला में करोड़ों कंठों से इस संदेश की प्रतिध्वनि गूंजती आ रही है। क्रिसमस संदेश की सुंदरता इसमें है कि यीशु के जन्म के साथ उदित होने वाली नई विश्वव्यवस्था की झलक इसमें निहित है। खुशी और उत्साह का प्रतीक क्रिसमस ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है। ईसाई समुदाय द्वारा यह त्योहार यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
क्रिसमस का शाब्दिक अर्थ है क्राइस्ट्स मास। ईसा के जन्म सम्मान में की जाने वाली सामूहिक प्रार्थना। वास्तव में यह मात्र प्रार्थना न होकर एक बड़ा त्योहार है। प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। ईसा के पूर्व रोम-राज्य में 25 दिसंबर को प्रतिवर्ष सूर्यदेव डायनोसियस की उपासना के लिए एक महान त्योहार मनाया जाता था। ईसा की प्रथम शताब्दी में ईसाई लोग महाप्रभु ईसा का जन्मदिवस इसी दिन मनाने लगे। इसे बड़ा दिन का त्योहार भी कहते हैं। जहां तक 25 दिसंबर को ही जन्मदिन मनाने की परंपरा की बात है तो कहा जाता है कि जब ईसाई धर्म योरप पहुंचा तो वहां कई प्रकार के त्योहार पहले ही से प्रचलित थे। इनमें प्रमुख था 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व। इस तिथि से दिन के लंबा होना शुरू होने के कारण इसे सूर्य देवता के पुनर्जन्म का दिन भी माना जाता था। ईसाई परंपराओं और योरप में पहले से प्रचलित परंपराओं का जो संगम हुआ, उसी का एक परिणाम यह था कि सूर्य देवता के पुनर्जन्म का पर्व ईसा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। शुरू में इस बात को लेकर मतभेद भी था कि क्या ईसा का जन्मदिन मनाया जाना चाहिए। तब ईसा के बलिदान तथा पुनरुत्थान का पर्व ईस्टर ही ईसाइयों का प्रमुख त्योहार हुआ करता था।
यीशु का जन्म रू एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु का जन्म बेथलेहेम में हुआ। ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में दो दिन रुककर पुजारियों से ज्ञान चर्चा करते रहे। सत्य को खोजने की वृत्ति उनमें बचपन से ही थी। बाइबिल में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई जिक्र नहीं मिलता, ऐसा माना जाता है। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। सन 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुँचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। उनके शिष्य जुदास ने उनके साथ विश्वासघात किया। अंततः उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। ईसा ने क्रूस पर लटकते समय ईश्वर से प्रार्थना की, श्हे प्रभु, क्रूस पर लटकाने वाले इन लोगों को क्षमा कर। वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। यीशु के कुल बारह शिष्य थे- 1. पीटर 2. एंड्रयू 3. जेम्स (जबेदी का बेटा) 4. जॉन 5. फिलिप 6. बर्थोलोमियू 7. मैथ्यू 8. थॉमस 9. जेम्स (अल्फाइयूज का बेटा), 10. संत जुदास 11. साइमन द जिलोट 12. मत्तिय्याह। सूली के बाद ही उनके शिष्य ईसा की वाणी लेकर 50 ईस्वी में हिन्दुस्तान आए थे। उनमें से एक थॉमस ने ही भारत में ईसा के संदेश को फैलाया। उन्हीं की एक किताब है- ए गॉस्पेल ऑफ थॉमस। चेन्नई शहर के सेंट थामस माऊंट पर 72 ईस्वी में थॉमस एक भील के भाले से मारे गए। मेरी मेग्दालिन भी ईसा की शिष्या थीं जिन्हें उनकी पत्नी बताए जाने के पीछे विवाद हो चला है। उक्त गॉस्पल में मेरी मेग्दालिन के भी सूत्र हैं। बाइबल या बाइबिल का अर्थ किताब माना गया है। यह ईसाइयों का पवित्र धर्मग्रंथ है। इसमें ओल्ड टेस्टामेंट को भी शामिल किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट अर्थात पुराने सिद्धांत या नियम। इसमें यहूदी धर्म और यहूदी पौराणिक कहानियों, नियमों आदि बातों का वर्णन है। नए नियम के अंतर्गत ईसा के जीवन और दर्शन के बारे में उल्लेख है। इसमें खास तौर पर चार शुभ संदेश हैं जो ईसा के चार अनुयायियों मत्ती, लूका, युहन्ना और मरकुस द्वारा वर्णित हैं।
क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ। क्रिसमस समारोह अर्धरात्रि के समय के बाद, जिसे समारोह का एक अनिवार्य भाग माना जाता है, शुरू होते हैं। इसके बाद मनोरंजन किया जाता है। सुंदर रंगीन वस्त्र पहने बच्चे ड्रम्स, झांझ-मंजीरों के आर्केस्ट्रा के साथ चमकीली छडियां लिए हुए सामूहिक नृत्य करते हैं। सेंट बेनेडिक्ट उर्फ सान्ता क्लाज, लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवतरू रात के समय उनके जुराबों में रख देता है। क्रिसमस के दौरान प्रभु की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं। वे प्यार व भाई चारे का संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं।
क्रिसमस ट्री अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। भारत में विशेषकर गोवा में कुछ लोकप्रिय चर्च हैं, जहां क्रिसमस बहुत जोश व उत्साह के साथ मनाया जाता है। इनमें से अधिकांश चर्च भारत में ब्रिटिश व पुर्तगाली शासन के दौरान स्थापित किए गए थे। भारत के कुछ बड़े चर्चों मे सेंट जोसफ कैथेड्रिल, और आंध्र प्रदेश का मेढक चर्च, सेंट कैथेड्रल, चर्च आफ सेंट फ्रांसिस आफ आसीसि और गोवा का बैसिलिका व बोर्न जीसस, सेंट जांस चर्च इन विल्डरनेस और हिमाचल में क्राइस्ट चर्च, सांता क्लाज बैसिलिका चर्च, और केरल का सेंट फ्रासिस चर्च, होली क्राइस्ट चर्च तथा माउन्ट मेरी चर्च महाराष्ट्र में, तमिलनाडु में क्राइस्ट द किंग चर्च व वेलान्कन्नी चर्च, और आल सेंट्स चर्च व कानपुर मेमोरियल चर्च उत्तर प्रदेश में शामिल हैं।
(सुरेश गांधी )


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