जब कोई बीमार होता है तो उसे दवा की जरूरत पड़ती है. डॉक्टर की सलाह पर वो कोई दवा खरीदता है तो ये मानकर चलता है कि इससे उसकी सेहत दुरुस्त होगी। लेकिन वही दवा उसे मार सकती है। जी हां, जानलेवा दवाई, जिसका सिर्फ रैपर असली होता है। मतलब साफ है नकली दवाओं का कारोबार तेजी से पल-बढ़ रहा है। खतरनाक नतीजों के बावजूद यह बड़े मुनाफे का कारोबार स्थानीय स्वास्थ्य महकमे सहित संबंधित जांच अधिकारियों की मिलीभगत से मेडिकल स्टोर संचालक मालामाल हो रहे है .
ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि यूपी के जौनपुर जनपद के थाना रामपुर इलाके के गोपालापुर के मेडिकल स्टोरों से नकली दवाएं धड़ल्ले से बिक रही हैं। ताज्जुब इस बात का है कि यहां के विजय मेडिकल सहित कई अन्य मेडिकल स्टोरों से मौत बांटने वाली दवाइयों की सप्लाई एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों गांवों में हो रही है। बगैर डिग्रीधारक वाले झोलाछाप डाक्टर इन दवाओं को गांव के भोलेभाले बीमार मरीजों को देकर उनकी जान ले रहे है। सामाजिक संस्था बाल कल्याण महिला संगठन के ताजा सर्वे रिपोर्टो पर यकीन करें तो तीन साल में इन नकली दवाओं के चलते 300 से अधिक लोग असमय ही कालकलवित हो गए। इनमें ज्यादातर डायरिया, हार्टअटैक, पेट दर्द, वायरल फीवर, कैंसर, टीवी, दमा आदि के मरीज है। देखा जाय तो यह बहुत बड़ा कारोबार बन चुकी है। इस तरह का दूसरा अपराध अगर कोई जानकारी में है तो वह नकली दवाओं का धंधा ही है। इसकी वजह भी बहुत साफ है। इस धंधे में पैसा बहुत है, वास्तव में नकली दवाओं के कारोबार से भी ज्यादा। वियाग्रा जैसी दवा के नकली कारोबार में 25 हजार फीसदी का फायदा होता है। मुनाफे का ये आंकड़ा नकली कोकेन के धंधे से कम से कम 10 गुना ज्यादा है। इन नकली दवाओं का खतरा सबसे ज्यादा गांवों में हैं जहां दवाओं के कारोबार पर नियम कानून का पहरा बहुत मामूली या है ही नहीं।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि मौसम बदलते ही बीमारिया फैलने लगती है तो दवाइयों का बाजार में नकली दवाइयों से भर जाता है। बदलते मौसम में खांसी बुखार के साथ पेट से जुडी बीमारिया भी लोगो को चपेट में ले लेती है। बीटाडीन, कोरेक्स, डाइजीन, आयोडेक्स, और क्रोसिन जैसी जीवन रक्षक दवाई के नाम का प्रयोग कर नकली दवाइया ज्यादा बिक री है। जो बीमारी खत्म करने के बजाये इंसान को सीधे मौत के मुंह में ले जाएंगी। ये नकली दवाइया ग्रामीण इलाको में बेचीं जाती है जो स्वास्थ्य की द्रष्टि से काफी घातक है। यह दवाएं बीमारी खत्म करने के बजाय बीमारी देने का काम करेगी। चारकोल से बनी दर्द निवारक दवाएं, जहरीले आर्सेनिक वाली भूख मिटाने की दवा और नपुंसकता का इलाज करने के लिए दवा के नाम पर नकली दवाएं बेच कर लाखों-करोड़ों रुपये ये मेडिकल स्टोर संचालक कमा रहेा है। यह दवाएं मेडिकल स्टोर संचालक गांव के झोलाछाप डाक्टरों को खूब सप्लाई कर रहे है। इतना ही नहीं सरेराह दुकान खोलकर काउंटर से या फिगर गैर कानूनी तरीके से भी बेच रहे है। आम तौर पर यह दवाएं कोई असर नहीं करतीं लेकिन कई बार घातक होती हैं और जान भी ले लेती है। अनुमान है कि केवल गोपालापुर के आसपास के इलाकों में हर साल करीब 100-150 लोग मलेरिया या टीबी की नकली दवा इस्तेमाल करने के कारण मारे जाते हैं।
दबी जुबान से स्वास्थ्य महकमें के कुछ अधिकारी भी मान रहे है कि हर साल इसके कारोबारियों तादाद बढ़ रही है। कई जगहों पर हुई छापामारी में लाखों की नकली दवा की गोलियां, पाउडर और एम्पुल जब्त किए जा चुके है। जानकारों की मानें तो ये नकली दवाइयां बनारस के मैदागिन-चैक स्थित मेडिकल मंडी से आती हैं। मेडिकल संचालक इन नकली दवाओं को बगैर बिल पुरजा के बाइक से ढोते है। मलेरिया, दिल की बीमारी, ब्लड प्रेशर यहां तक कि एचआईवी के इलाज के लिए भी ये मेडिकल संचालक अवैध रास्ते से दवा खरीदकर गांवों में सप्लाई कर रहे है। इसके अलावा इन दवाओं को एक साथ बहुत असुरक्षित तरीके से रखा जाता है। नकली दवा बनाने वाले अपने लैब में बहुत कम ध्यान रखते हैं और लैब के नमूने बताते है कि कई बार इनमें चूहे की लेड़ी जैसी चीजें भी मिली होती हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1990 के मध्य में कोई 2500 लोग दिमागी बुखार की वैक्सीन लेने के तुरंत बाद मर गए थे। एक ताजा रिसर्च में पता चला है कि अधिकतर डॉक्टर मरीजों को दवा देने के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं। वे ऐसी दवाएं देते हैं जिनका शरीर पर कोई असर नहीं होगा, पर मजे की बात यह है कि मरीज फिर भी ठीक हो जाते हैं। इनमें जैक्सीन, जिनकोवेट, हेपेटोग्लोबिन और न्यूरोपैक्टीन दवा शामिल है।
तो फिर सवाल यही है कि दवाइयों की इस मंडी में रोज हो रहे लाखों-करोड़ों रुपयों के कारोबार को फलने-फूलने से कैसे रोका जा सकता है। मतलब साफ है नकली दवाओं का नासूर कड़े कानून से ही रोका जा सकता है, वरना मौत के सौदागर लोगों के जीवन से इसी तरह का खिलवाड़ करते रहेंगे और जिंदगी के नाम पर बांटी जाती रहेगी मौत। वजह है संशोधनों की कमी, हालांकि सरकारें इस दिशा में हमेशा कुछ न कुछ पहल करती जरूर नजर आती हैं। वर्ष 2003 में भी एनडीए के शासनकाल में नकली दवाओं के कारोबार पर रोक लगाने की पहल की गई थी। आरए माशेलकर समिति का गठन कर मौत का कारोबार करने वालों को मौत की सजा की सिफारिश की थी, लेकिन यह प्रस्ताव संसद में पास नहीं हो पाया। कहा जाता है कि तब इसके खिलाफ कई दवा कंपनियां और राजनेता ही खड़े हो गए थे। वैसे नकली दवाओं के खेल में कई दवा कंपनियां, राजनेताओं, संबंधित सरकारी विभागों के लोगों और पुलिस प्रशासन पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वे मोटी कमाई के चलते इस नेटवर्क को तोड़ने की जहमत नहीं करते। कार्रवाई के नाम पर महज खानापूर्ति होती है। कहने को तो नकली दवाओं पर नकेल कसने के लिए केन्द्र सरकार में एक ड्रग कंट्रोलर विभाग और राज्य स्तर पर ड्रग्स कंट्रोलर व ड्रग्स निरीक्षक होते हैं, लेकिन ये भी इस धंधे से काली कमाई में ही जुटे हैं। लिहाजा यह मर्ज बढ़ता ही जा रहा है।
सावधान! अगली बार जब आप अपने निकट के केमिस्ट के पास गैस व बदहजमी के लिए एंटासिड या पेंटोसिड की गोली लेने जाएं, ब्लड प्रेशर की इनालाप्रिल या डोपामाइन खरीदें, सामान्य बुखार की स्थिति में पारासिटामोल की जरूरत हो या फिर रॉनफ्लॉक्स या ऑफ्लोमैक जैसी एंटीबायोटिक लें तो उसकी पक्की रसीद जरूर मांगेें। साथ ही अपनी तरफ से यह सुनिश्चित करने का प्रयास भी करें कि आप जो दवाइयां खरीद रहे हैं, वे असली ही हैं। कारण, प्रसिद्ध कंपनियों की प्रचलित दवाइयों के नाम पर नकली दवाइयां बेची जा रही हैं। इन दवाइयों में या तो उल्लेखित तत्वों की जगह चूना पाउडर, चारकोल या कुछ और मिला होता है या फिर ऐसे नुकसानदेह तत्व भी, जो किसी की मौत का कारण हो सकते हैं। हाल ही में एक जनहित याचिका के जरिए प्राप्त जानकारी से इस बात का खुलासा हुआ है कि बाजारों में बिक रही दवाओं में करीब 40 प्रतिशत तक दवाएं नकली व घटिया हैं। लाखों-करोड़ों लोग हर रोज ऐसी ही दवाइयों का सेवन कर रहे हैं, जिससे या तो उनका मर्ज जस का तस है या और बढ़ रहा है या फिर खतरनाक तत्वों के कारण वे असमय मौत के मुंह में धकेले जा रहे हैं। हालांकि याचिका के जरिए हासिल की गई जानकरी के मुताबिक उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में नकली दवाएं सबसे ज्यादा बिक रही हैं लेकिन देश के दूसरे सूबों की तस्वीर भी इससे बहुत अलग नहीं है। दिल्ली, गोवा, सिक्किम, राजस्थान, पंजाब-हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में भी पिछले दिनों अभियान के तहत नकली दवाओं का बड़ा जखीरा पकड़ा गया है। इससे पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी केन्द्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि देश में नकली व मिलावटी दवाओं का कारोबार कुल दवाओं के कारोबार का करीब 35 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
(सुरेश गांधी)

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