सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी से जावेद अहमद की बातचीत पर आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने एस जावेद अहमद को राज्य का नया पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया है। वे भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1984 बैच के अधिकारी है। इसके पहले वह पुलिस महानिदेशक (रेलवे ) के पद पर तैनात थे। जावेद अहमद मार्च 2020 तक अपनी सर्विस देंगे। कहा जा रहा है जावेद को यूपी का डीजीपी बनाकर सरकार ने आगामी 2017 की तैयारी को ध्यान में रखकर मुस्लिम कार्ड खेला है। पदभार ग्रहण करने के बाद सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी से बातचीत करते हुए पुलिस महानिदेशक ने कहा है कि अब माफियाओं एवं बाहुबलि जनप्रतिनिधियों के इसारों पर थानों में दर्ज होने वाले फर्जी मुकदमों व घटनाओं की मनगढ़ंत जांच रिपोर्ट तैयार करने वाले पुलिस आफिसरों पर कार्रवाई होगी। उनकी जांचोपरांत रिपोर्ट सही पाएं जाने पर संबंधित आफिसर को उनके द्वारा बर्खास्त करने में भी देर नहीं लगेगी। कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में आ रही मुश्किलों को वह चुनौती के रुप में लेंगे। जिस किसी ने भी सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। गुंडागर्दी किसी भी कीमत पर नहीं चलने दी जाएगी। चैराहों और सड़कों पर गुंडागर्दी कतई नहीं होने देंगे। थानों को फूंकना, पुलिस को पीटना अब नहीं चलेगा।
जावेद अहमद मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। इससे पहले वह डीजी रेलवे के पद पर तैनात थे। उन्हें साल 2000 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन मिला और 2005 में आईजी बने। इसके बाद अहमद 2011 में एडीजी बने और 2015 में डीजी के पद पर प्रमोशन मिला। अहमद 15 अफसरों को सुपरसीड करके डीजीपी बने हैं। कहा जा रहा है कि उनका सीबीआई में स्पेशल डायरेक्टर के पोस्ट पर तैनात रहना उनके पक्ष में गया। वह सुप्रीम कोर्ट और सरकार की कसौटी दोनों पर फिट भी बैठ रहे हैं। इसके अलावा उनकी साफ-पाक इमेज भी उनके अपॉइंटमेंट का कारण है। भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों एवं हौसलाबुलंद अपराधियों पर नकेल कसने में नाकाम यूपी सरकार ने श्री जावेद को पुलिस महानिदेशक पद पर तैनात तो कर दिया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बाहुबलि जनप्रतिनिधियों के आगे क्या वह पूर्व की बिगड़ी कानून व्यवस्था, बेलगाम अपराधियों, भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों, पैसे लेकर फर्जी मुकदमें दर्ज करने आदि मामलों में बिगड़ी पुलिस की छबि एवं इसमें संलिप्त पुलिसकर्मियों को सुधार पायेगा। उत्पीड़न के शिकार आम गरीब व निरीह जनता को न्याय दिला पायेंगे। फिरहाल वह सपा सरकार के आठवें डीजीपी होंगे। इसके पहले जिन लोगों के हाथ में कमान थी, कितना सफल हुए हुए है यह सूबे के हालात व आंकड़े बता रहे है, मुझे कुछ बताने की जरुरत नहीं। हालांकि नवनियुक्त डीजीपी जावेद ने कहा है कि जिस किसी ने भी सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। गुंडागर्दी किसी भी कीमत पर नहीं चलने दी जाएगी। वह डीजीपी मुख्यालय की हाल के दिनों में खोई गरिमा को वापस लाने की कोशिश करेंगे। चैराहों और सड़कों पर गुंडागर्दी कतई नहीं होने देंगे। थानों को फूंकना, पुलिस को पीटना अब नहीं चलेगा।
फिरहाल जिस तरह यूपी पुलिस हाल के दिनों में सत्ता के बाहुबलि जनप्रतिनिधियों के हाथो कठपुतली बन कर रह गयी है। इन बाहुबलियों के इसारे मात्र से थानों में फर्जी रपट दर्ज कर पत्रकार सहित आम जनमानस को जिंदा जलाया जा रहा है, उनके घर-गृहस्थी लूटे जा रहे है, बलातकार के रसूखदार आरोपियों को संरक्षण दिया जा रहा है, सड़क से लेकर लोगों के घरों तक में घुसकर पुलिसिया रंगदारी वसूली जा रही है, फर्जी मुकदमों की जांच के नाम पर पीडि़तों को न्याय देने के बजाए आरोपियों से ही वसूली कर पीडि़तों को प्रताडि़त किया जा रहा है, कोतवाल संजयनाथ तिवारी, श्रीप्रकाश राय, आईपीएस अशोक शुक्ला जैसे भ्रष्ट व लूटेरे पुलिसकर्मियों को मलाईदार थानों व जिलों में पैसे लेकर नियुक्तियां की जा रही है, पर नकेल कस पायेंगे। यह बड़ा सवाल बन गया है, क्योंकि पूर्व के पुलिस अधिकारियों का वक्त बढ़ते अपराध पर लगाम लगाने के बजाए अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के लिए बाहुबलियों की परिक्रमा करने में ही बीता।
जो भी हो उनके सामने बड़ी चुनौती पश्चिमी और पूर्वी यूपी के सांप्रदायिक माहौल को दुरुस्त करना और पंचायत चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से कराने के साथ बाहुबलि जनप्रतिनिधियों एवं भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह छोटी-बड़ी सांप्रदायिक घटनाएं हो रही हैं, उस पर काबू पाना है। अभी कुछ दिनों पहले प्रतापगढ़ और इलाहाबाद में स्थानीय वर्चस्व की लड़ाई में खुलेआम गोलियां चलीं और कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। सूबे में लूट, हत्या, चोरी, डकैती की घटनाओं की बाढ़ आ गयी है। खासकर मेरठ और सहारनपुर मंडल में कई स्थानों पर तनाव पसरा हुआ है। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि पहले सांप्रदायिकता की जिस आग में शहर जलते थे, अब पश्चिम के गांव और कस्बे जल रहे हैं। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और बुलंदशहर में पिछले दिनों हुईं वारदातें इसकी गवाही दे रही हैं।
फर्जी मुकदमों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। क्योंकि मुख्यमंत्री का अब पुलिस प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रहा। नतीजा यूपी की जनता को जंगलराज का सामना करना पड़ रहा है। सपा के तीन साल के शासन के दौरान 180 से ज्यादा दंगे हुएं। मुजफ्फरनगर दंगा पीडि़तों की एक बड़ी संख्या अभी भी न्याय के लिए इंतजार कर रही है। महिला आयोग के आंकड़े बताते हैं कि मायावती के अंतिम ढाई वर्ष के कार्यकाल (15 सितंबर 2009 से 14 मार्च 2012) में महिला आयोग के पास महिला उत्पीड़न के 55301 मामले पंहुचे जो अखिलेश के आरंभिक ढाई वर्ष के कार्यकाल (15 मार्च 2012 से 14 सितंबर 2014) में बढ़कर 78483 हो गए। खुलेआम थानों की बोली लगाकर अधिकारी तैनात हो रहे हैं। जिनको अब अपराध नियंत्रण से कोई लेना देना नहीं है। थाना प्रभारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग में पैसे का लेन देन चल रहा है। खासकर अवैध खनन, जमीनों पर अवैध कब्जे, पत्रकारों की हत्या, उन पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर गुहस्थी लूटने आदि काम पुलिस के ही संरक्षण में चल रहे है। कई हत्या लूट मामलों के आरोपी इंस्पेक्टर संजयनाथ तिवारी जैसे भ्रष्ट पुलिस को पैसे लेकर राजधानी में तैनाती की गयी है। रोजाना बलातकार की दस, लूट की पन्द्रह व हत्या 16-20 घटनाएं सामने आने व अवैध वसूली की घटनाओं से डरी-सहमी आम जनमानस अब अपने बेडरुम में भी असुरक्षित महसूस करने लगी है। बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर खुद कई बार हाईकोर्ट भी सरकार को फटकार लगा चुकी है। हालात यहां तक बिगड़ चुके है कि लोग अब तो यूपी का नाम ही बदल डाले है कोई इसे दंगों का प्रदेश बता रहा है तो दबंगों का प्रदेश तो कोई गुंडाराज। वर्ष 2013 में पहली जनवरी से मार्च तक बलातकार के 1199 मुकदमें दर्ज हुए, जबकि 2014 में 1284 और 2015 में अब तक 885 मामले दर्ज हो चुके है।
बिगड़ी हालात को देख सूबे के सीएम अखिलेश यादव खुद अपने उन ‘जमीनी कार्यकर्ताओं’ को नसीहत दे रहे है कि वह सुधर जाएं। कह रहे है पुलिसवाले अपराधियों को वर्दी का भय दिखाएं, ताकि वे प्रदेश छोड़ भाग जाएं। पुलिस की दशा सुधारने के लिए 54 करोड़ की लागत प्रदेश के एक हजार थानों को नए चैपहिया व दुपहिया वाहन मुहैया करा रहे है। पुलिस को नसीहत दे रहे है कि वह ऐसा काम करें, ताकि लोग उसका सम्मान करें। कार्यकर्ताओं को थाने और तहसील की दलाली बंद करने की दुहाई दे रहे है। पार्टी की छवि के लिए खतरा बने कार्यकर्ताओं की पहचान और उन्हें चेतावनी यूं ही नहीं है। पंचायत चुनाव की चर्चा शुरू होने के साथ ही प्रदेश में कानून-व्यवस्था का माहौल बिगड़ने लगा है। दलीय आधार पर न लड़े जाने के बावजूद पंचायत चुनाव में हर पार्टी अपने समर्थकों को काबिज करना चाहती है। पंचायत चुनाव के बाद ही विधानसभा चुनाव की भी तैयारी जोर पकड़ लेगी। अब तक कार्यकर्ताओं के आगे ढाल बनकर खड़ी हो जानी वाली सपा अब समझ रही है कि इस समय उनके कार्यकर्ताओं की छोटी सी भी चूक बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री ने डीजीपी पद के लिए जावेद को चुना है कि वह कुछ हालात सुधारने में कामयाब होंगे। मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरुप ही डीजीपी ने भी जिलों में तैनात पुलिस अधीक्षकों को संदेश देते हुए कहा है कि उन्हें यह देखना होगा कि कोई घटना हुई है तो क्या उसे रोका जा सकता था? अगर रोकने में किसी की लापरवाही हुई तो उसे सजा भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। अगर घटना ऐसी है जिसे रोका नहीं जा सकता था तो घटना के बाद पुलिस ने क्या किया? इसकी जवाबदेही तय की जाएगी। बोले-मैं डीजीपी पद की गरिमा हर हाल में बरकरार रखूंगा। दो पूर्व डीजीपी एसी शर्मा व ए.एल.बनर्जी पर लगे आरोपों पर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार किया। मेरा प्रयास होगी कि डीजीपी मुख्यालय की खोई विश्वसनीयता बहाल हो। कहा है कि जनप्रतिनिधियों की वाजिब बात को जरूर सुनना चाहिए। अधिकारियों को एक सीमा तय करनी चाहिए। इससे आगे जाकर कोई भी बात नहीं सुननी चाहिए। बहरहाल, मंशा कुछ भी हो यदि इस कवायद से प्रदेश की कानून-व्यवस्था सुधरती है तो मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की नसीहतों का स्वागत किया जाना चाहिए, भी सुखद परिणामों की प्रतीक्षा के साथ।
(सुरेश गांधी)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें