राम कथा से भक्तिमय हुआ रामदीरी,बेगूसराय
अरूण कुमार, मटिहानी,बेगूसराय। दिनांक 15 जुन 2016 से श्री राम कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन,रामदिरी,नकटी टोल, बेगूसराय में नवाह परायण का आयोजन उच्च विद्यालय के प्रांगण में किया गया है जो दिनांक 23 जुन 2016 को समापन किया जाएगा।इसके आयोजन कर्ता,रामदिरी,ठाकुरबाड़ी के कमिटी एवं महन्थ श्री वरुण दास जी महाराज हैं।कमिटी के अध्यक्ष, श्री रामचन्द्र सिंह, सचिव,श्री सुनिल सिंह,कोषाध्यक्ष, श्री राधाकृष्ण जी हैं कार्यकर्ता,पंकज कुमार,संजय कुमार उर्फ भुल्लू ,छत्री सिंह,अशोक सिंह,शक्ति सिंह,बालमुकुन्द कुमार,हेड कॉन्स्टेबल एस एस बी,शंभु कुमार सिंह एवं समस्त ग्रामीण भाई।प्रवचन के व्यास गद्दी पर आसीन दोनों भाई -बहन,सुप्रिया एवं अमृत आनन्द जी,जो ग्राम -शेरपुर,पो• मालपुर,जिला पटना के स्थायी निवासी हैं,इनके पिता मैथ के प्रोफेसर हैं जो फैजाबाद,यू•पी• कार्यरत हैं।आगे बताते हैं कि सुश्री सुप्रिया को बचपन से ही गायन में अभिरूचि थी और वो गायन कला की विधिवत् शिक्षा ग्रहण कर दोनो बहन-भाई 2004 में गांधी समाधि समिति द्वारा आयोजित संगीत समारोह में,रघुपति राघव राजा राम,पतीत पावन सीताराम गा कर,राष्ट्रपति,मो• ए•पी•जे कलाम के द्वारा,राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। 2006 में केदारनाथ,बद्रीनाथ अन्तराष्ट्रीय समिति के द्वारा केदारनाथ में बुलाया गया और संगीत में पुरस्कृत किया गया।2010 में भारत के विभिन्न प्रांतों से 14 वर्ष से नीचे के बच्चों को कथा वाचन ये प्रथम आईं और द्वितीय स्थान पर अमृत आनन्द रहे जिसमें 144 प्रतिभागियों ने भाग लिया और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय,भारत सरकार की ओर से पुरस्कृत इस नन्हीं सी प्रतिभा को किया गया कथा वाचन में।और इस धर्म-कर्म में पूर्ण सहयोग इनके माता श्री,अनिता देवी, पिता श्री शंभु नाथ सिंह एवं फुआ दादी श्रीमती सरोज देवी के प्रयास और सहयोग का ही फल है जो आज हजारों हजार,जनता के समक्ष व्यास गद्दी पर आसीन होती हैं।सुश्री सुप्रिया आगे बताती हैं,कि भारत की एकता और अखण्डता धार्मिक लोग ही बरकरार रख सकते हैं।आगे यह भी बताती हैं कि जब से गयन और प्रवचन के क्षेत्र में आई हूँ तब से अभी तक 548 मंचों से प्रवचन कर चुकी हूँ।अपने धार्मिक संस्कार से महाकाव्य रामचरितमानस को जन जन तक पहुंचना एक बड़ी बात है।
मसि कागद छूवो नहीं,कलम गही नहीं हाथ
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय।आज कबीर जयंती के अवसर पर सरकारी दफ्तरों ने अवकास मनाये,यह एक प्रथा बन गई है,जयंती है मनेगी मकसद नहीं पता,कबीर के आदर्शों को किसी ने आत्मसात शायद नहीं किया,आज कबीर के दोहे मनोरंजन का साधन बन गया है,कबीर को समझना कितना कठिन है इसका मुल्यांकन नहीं किया जा सकता है।कबीर के जन्म को लेकर शुरू से मतभेद रहा है लेकिन इतिहासकारों ने जो तिथि तय किया है वह है सन् 1398 ई०लगभग,लहरतारा ताल,बनारस,उत्तर प्रदेश,हलांकि उनके जन्म स्थान को भी लेकर मतान्तर रहा है लेकिन उन्हीं के एक पद से बनारस ही उनका जन्म स्थान है निश्चित हो पाया है।कबीर जब अपने माता-पिता नीमा और नीरू को मिले थे तो उनके मुँह में दूध लगा ही था किसी को क्या पता था कि वह दुधमुँहा बच्चा युगेश्वर हो जाएगा और शदियों दर शदियों तक लोग उनकी जयंती मनाया करेंगे।संत कबीर एक निरक्षर आदमी थे लेकिन उनके शब्दों में इतनी ताक़त थी कि वो,वो अपने शब्दों से प्रहार कर समाज को सुधारते रहे,कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया था,धर्म के झूठे आडंबर और कर्मकाण्ड पर प्रहार करते रहे लेकिन धर्मावलम्बियों और कर्मकाडियों की जड़े इतनी मजबूत होती है कि उनको हिला पाना इतना आसान नहीं है फिर भी बहुत हद तक उनकी बातों का असर उस वक़्त पड़ा था लेकिन उस समय की तमाम शक्तिशाली लोग उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र करते थे और कबीर छोटी सभा और गोष्टी कर अपनी बात लोगों को जुबानी याद करवा दिया करते थे इसका ऐसा असर हुआ कि हर जुबान पर कबीर ही सुनाई देने लगा तो राजवाड़ों की नींद हराम होने लगीं।लोगों के अंदर नए चेतना ने जन्म लेना शुरू कर दिया,इसका अर्थ ये हुआ कि कबीर कोई व्यक्ति नहीं बल्कि कबीर एक सोच के रूप में फैलने लगा जिसका असर आज भी हमारे जीवन में है।किसी ना किसी रूप में हम कबीर को आज भी याद करते हैं।कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और भक्ति काल के अद्भुद कवि थे,कबीर की रचनाओं में साखी,सबद और रमैनी हैं,उनकी रचनात्मक भाषा में अवधी पंचमेस,सधुक्कड़ी,ब्रजभाषा,हरयाणवी और राजस्थानी थी।कबीर अपने गुरु आचार्य रामानंद की कृपा से क्रांतिद्रष्टा के युग पुरुष थे।हालांकि कबीर को उन्होंने कभी अपना शिष्य नहीं माना,लेकिन कबीर उनको अपना गुरु मानते थे।कबीर के सिर्फ इस वाणी को लोग आत्मसात कर लें तो पूरा जीवन सुखमय हो जाएगा,पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया ना कोई, ढाई आखर प्रेम का पढ़ै सो पंडित होय।उनकी बातों का अनुकरण करना गर हम शुरू कर दें तो रोज़ हम उनकी जयंती मना रहे हैं,इस खानापूर्ति जयंती से कहीं ...........कहीं अच्छा रहेगा,तो आइये हम संकल्पित हो कर कबीर को समझ कर,समझने और समझाने का एक नया प्रयास अवश्य करें।कबीर की सोच को सोच में लाना होगा।


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