दरभंगा 17 जून (वार्ता) साहित्य अकादमी से इस वर्ष मैथिली में प्रतिष्ठित बाल साहित्य पुरस्कार के लिए चयनित डा. प्रेम मोहन मिश्र का मानना है कि बाल साहित्य के लेखन भाषा की सरलता का विशेष महत्व है , जो बच्चों के कोमल मन पर सृजनात्मक प्रभाव डालती है। डा. मिश्रा ने आज यहां ..यूनीवार्ता.. से विशेष साक्षत्कार में कहा कि बाल साहित्य आम साहित्य से बिल्कुल अलग है। बाल साहित्य में बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ उनके ज्ञानवर्धन को ध्यान में रखा जाता है और तथ्यों को सीधे संप्रेषणीय बनाने की चेष्टा की जाती है तथा भाषा की सरलता को ध्यान में रखा जाता है। आम साहित्य साहित्यकार अपने स्तर के अनुसार लिखते हैं और पाठक उसकी व्याख्या अपने अनुसार करते हैं। रसायनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ प्रेम मोहन मिश्र ने बाल साहित्य में रूचि लेने पर कहा , “ बरसों से मिथिलांचल के स्कूली बच्चों के बीच विज्ञान प्रसार का काम करते-करते यह एहसास हुआ कि बच्चों के लिए कुछ सृजनात्मक साहित्य रचना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा ,“बाल साहित्य लिखते समय बाल मन पर केंद्रित करना पड़ता है। रचना ऐसे की जाती है जो बच्चों के कोमल मन पर सृजनात्मक प्रभाव डाल सके।भाषा एवं शैली में सुगम बोधगम्यता पर भी ध्यान दिया जाता है। वैज्ञानिक जीवनी ‘भारत भाग्य विधाता’ पुस्तक के लिए अकादमी पुरस्कार से चयनित डा. मिश्रा ने कहा कि बड़े लोगों की जीवनी को पढ़ने से बच्चों में बड़े बनने के सपने उत्पन्न होते हैं। अधिकांश सफल व्यक्ति अपने से पूर्व किसी महान व्यक्ति के जीवन से प्रभावित रहे हैं, इसलिए मैंने मिथिला के बच्चों को भारत की महान विभूतियों की जीवनी मैथिली भाषा में उपलब्ध कराने का प्रयत्न किया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी नई पीढ़ी हीन भावना से ग्रसित है कि विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में हमारा देश दुनिया के अन्य देशों से पिछड़ा हुआ है।
डा. मिश्र ने कहा कि बच्चों को वैज्ञानिकों की जीवनी से अवगत कराने के लिए पुस्तक लिखी है।इसमें कुल 26 वैज्ञानिकों की जीवनी है। आर्यभट से लेकर नये वैज्ञानिकों के बारे में जानकारी दी गयी है। इस पुस्तक के माध्यम से मैंने दिखाने की कोशिश की है कि विज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु रहा है। विज्ञान का जो ज्ञान अभी हम विदेशों से आयातित कर रहे हैं, वह ज्ञान सैकड़ों - हज़ारों वर्ष पूर्व भारत से ही निर्यात हुआ है, जिससे हमारे बच्चों में भारतीय होने का गौरव बोध हो। लेखक ने कहा कि आज अर्थकारी विद्या की बढ़ती पैठ के कारण साहित्य अध्ययन से विमुखता होती जा रही है एवं इससे मानवीय संवेदनाओं का ह्रास हो रहा है। बच्चों में नैतिक मूल्यों, पारिवारिक मूल्यों एवं रिश्तों के प्रति स्नेह, सद्भावना, इंसानियत का समागम उत्कृष्ट साहित्य की मदद से ही संभव है। लगातार मशीनी होते युग में साहित्य की सरिता ही भावनाओं की दरिया बहाने में सहायक होगी। बच्चों में आत्म गौरव और अपने क्षेत्र, राज्य एवं देश के प्रति शक्ति बोध एवं सौंदर्य बोध, गरिमामय इतिहास बोध सब अध्ययन से ही संभव है। डा. मिश्र ने भविष्य की योजनाओं का खुलासा करते हुए कहा, “ मैं विज्ञान का छात्र हूँ, और हमेशा वैज्ञानिक ही बनना चाहता था लेकिन परिवेश और परिस्थितियों के कारण सफल नहीं हो सका। विज्ञान का छात्र होने के कारण साहित्य से भी बहुत सरोकार नहीं रहा। मातृभाषा के उन्नयन के लिए साहित्य में प्रवेश किया। इस पुरस्कार ने मेरे साहित्य में पदार्पण को पहचान प्रदान की है और साथ ही मैथिली भाषा और साहित्य के प्रति मेरी जिम्मेदारी भी बढ़ा दी है। इसलिए अनुवाद के साथ ही सृजन साहित्य की गहराई में जाकर साहित्य एवं मातृभाषा दोनों की सेवा करने का प्रयास करूँगा।

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