सोल 20 जून, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश को लेकर चल रही अटकलों के बीच चीन ने कहा है कि समूह का आज से यहाँ से शुरू हुए पूर्ण सत्र में यह कोई एजेंडा ही नहीं है। चीन के इस रुख को विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के उस बयान पर आघात समझा जा रहा है जिसमें उन्होंने सकारात्मक अंदेशा जताते हुए कहा था कि चीन सिर्फ प्रक्रिया की बात कर रहा है। चीन ने कहा है कि इस सत्र में एनएसजी में प्रवेश हेतु भारत का आवेदन चर्चा के एजेंडे में नहीं है। वह परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने के कारण एनएसजी में भारत के प्रवेश का विरोध करता आया है।
शीर्ष सरकारी सूत्रों की मानें तो भारत के लिए यह चीन की प्रक्रियात्मक रुकावट है। उन्होंने कहा, “हम अभी भी आशावादी बने हुए हैं लेकिन इसके आसान होने की कभी उम्मीद नहीं करते हैं। परिणाम हमेशा अनिश्चित होता है।” चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने आज कहा, “परमाणु अप्रसार संधि से बाहर के देशों का प्रवेश एनएसजी की बैठक में कभी भी मुद्दा नहीं रहा है। इस साल सोल में भी ऐसा कुछ नहीं है।” उन्होंने कहा कि सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि उन सभी देशों जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, को शामिल करने पर सदस्य देशों में मतभेद है। विदेश सचिव एस. जयशंकर के पिछले सप्ताह के आकस्मिक चीन दौरे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भारत ने एनएसजी में प्रवेश का पक्ष रखा और दोनों पक्षों ने इस पर विचार साझा किया। इससे पहले श्रीमती स्वराज ने चीन के विरोध को दरकिनार करते हुए कहा था, “हम इस साल के अंत तक एनएसजी का सदस्य बन जाने की उम्मीद रखते हैं।
चीन भारत की सदस्यता का विरोध नहीं करता है। वह सिर्फ प्रक्रिया की बात कर रहा है।” भारत का दावा है कि 23 में से 21 देश सदस्यता के उसके प्रस्ताव के समर्थन में हैं। एनएसजी की कार्यप्रणाली सर्वसम्मति पर आधारित है और विपक्ष का एक भी वोट भारत के प्रस्ताव को खारिज कर देगा। उल्लेखनीय है कि जहाँ चीन भारत के सदस्यता प्रस्ताव के विरोधी समूह का नेतृत्व कर रहा है, वहीं अमेरिका ने मजबूत समर्थन किया है। इसके अलावा ब्रिटेन, रूस, स्विट्जरलैंड आदि देश भी भारत के समर्थन में हैं। हालाँकि 2008 में एनएसजी के कई नियमों से छूट मिलने के बाद भारत के पास समूह के सदस्यों जैसी काफी सारी सुविधाएँ पहले ही मिली हुई हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें