- शीतला घाट का मंदिर जलमग्न, दशाश्वमेध की केवल तीन सीढ़ियां शेष, सिंधिया घाट पर रत्नेश्वर महादेव मंदिर का केवल शिखर ही दिख रहा
- अस्सी घाट पर सड़क तक पानी, पुलिस ने बैरिकेडिंग की, महेशनगर, अघोर फाउंडेशन, जगन्नाथ मंदिर के पास तक पानी
सावधानियां
गंगा की चेतावनी : अब ज़रूरत है दीर्घकालिक जल प्रबंधन की या बाढ़ केवल आपदा नहीं, अवसर भी है, तटीय संरचनाओं की पुनर्समीक्षा का. वाराणसी जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र में हर वर्ष आने वाली बाढ़ की पुनरावृत्ति पर दीर्घकालिक नीति की आवश्यकता है। तटीय सुरक्षा बांध, चेतावनी प्रणाली, राहत शिविर की स्थायी संरचना की योजना। जल आयोग के अनुसार, खतरे के बिंदु 80 मीटर के निकट पहुंच चुका स्तर, तत्काल रिस्पांस टीमों का पुनर्गठन। नदी के पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखते हुए घाटों की संरचना को जलग्रहण-अनुकूल बनाना होगा।बस्तियों में घुसा पानी, जनजीवन अस्त-व्यस्त
गंगा की सहायक नदी वरुणा भी अपने उफान पर है। महेशनगर, अघोर फाउंडेशन, जगन्नाथ मंदिर और कोनिया के कई गांवों में बाढ़ का पानी पहुंच गया है। कोनिया, हरिरामपुर, इटहरा, धनतुलसी, कलातुलसी जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 200 बीघा धान, बाजरा और अरहर की फसल जलमग्न हो चुकी है। सड़कों पर तीन से चार फीट पानी भरने से दर्जनों गांवों का संपर्क टूट गया है। 50 हजार से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, जिनमें कई परिवारों ने अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण ली है।प्रशासन सतर्क, राहत कार्य तेज
ऐसे संकट के समय में प्रशासन की सक्रियता राहत पहुंचा सकती है। मंडलायुक्त एस. राजलिंगम ने नाव पर सवार होकर अस्सी घाट से नेपाली मंदिर तक बाढ़ क्षेत्र का निरीक्षण किया और राहत कार्यों की गहन समीक्षा की। उप जिलाधिकारी सदर को निर्देशित किया गया कि कोई भी व्यक्ति या पशु बाढ़ में न फंसे। बाढ़ राहत किट तत्काल वितरित की जाएं और बाढ़ शिविरों में स्वच्छता, भोजन, पेयजल और स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था सुनिश्चित हो। राज्य मंत्री रविंद्र जायसवाल ने भी चौकाघाट स्थित राहत शिविर में पीड़ितों से भेंट कर उन्हें राहत सामग्री सौंपी और अधिकारियों को निर्देशित किया कि किसी को भी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए परेशान न होना पड़े।आपदा में सेवा का संदेश
काशी की बाढ़ इस बार केवल एक भौगोलिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक समर्पण और सामुदायिक सहयोग की परीक्षा है। प्रशासन, एनडीआरएफ, जल पुलिस, नगर निगम तथा सामाजिक संगठनों का समन्वय उल्लेखनीय है, लेकिन अभी सबसे बड़ी चुनौती है, आगामी दिनों में जलस्तर के और बढ़ने की आशंका। गंगा जब अपने रौद्र रूप में आती हैं, तो श्रद्धा की कसौटी पर भी जनधर्म और राजधर्म खरा उतरना चाहिए। ऐसे में यह आवश्यक है कि प्रभावितों तक हरसंभव मदद तत्काल पहुंचे और दीर्घकालिक पुनर्वास की योजना भी बनाई जाए। वैसे भी बाढ़ के इस संकट को केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव-नियंत्रण, शहरी नियोजन, और प्रशासनिक संवेदनशीलता की कसौटी के रूप में देखे जाने की जरूरत है। काशीवासियों की जीवटता और आस्था की डोर बहुत मजबूत है, लेकिन इसके साथ प्रशासनिक तत्परता और नीतिगत समर्थन भी जरूरी है। बाढ़ के इस उफान को अवसर बनाकर नगर के तटीय सुरक्षा ढांचे और आपदा प्रबंधन व्यवस्था को भविष्य के लिए और अधिक सुदृढ़ करना होगा।गांवों में त्राहिमाम
भदोही के कोनिया, इटहरा, हरिरामपुर, धनतुलसी जैसे ग्रामीण इलाकों में खेत, घर, सड़क सब पानी में डूब गए हैं। 200 बीघा से अधिक बाजरा, अरहर और धान की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। तीन ओर से गंगा से घिरे कोनिया में मंदिरों के परिसर में पानी भर गया है। गंगेश्वरनाथ मंदिर में दो फीट पानी है। उड़िया बाबा आश्रम और मौनी बाबा आश्रम तक पानी पहुंच गया है।
राहत शिविरों में व्यवस्थाएं
चौकाघाट के सरस्वती विद्या मंदिर में स्थापित राहत शिविर में राज्य मंत्री रविंद्र जायसवाल पहुंचे। उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्य, अपर जिलाधिकारी बंदिता श्रीवास्तव के साथ शिविर में रह रहे लोगों से मुलाकात की और उन्हें राहत सामग्री सौंपी। मंत्री ने कहा, “बाढ़ की इस घड़ी में सरकार हर पीड़ित के साथ खड़ी है। पीने का पानी, भोजन, चिकित्सा और साफ-सफाई, हर सेवा की जिम्मेदारी तय है।”
बाढ़ एक आपदा ही नहीं, चेतावनी भी है
हर वर्ष जब गंगा उफान पर आती है, तो घाट, मंदिर, आश्रम और गलियां पानी में समा जाती हैं। पर सवाल यह है, क्या हर वर्ष काशीवासियों को यह त्रासदी ऐसे ही सहनी होगी? गंगा के बाढ़ का स्वरूप अब पारंपरिक नहीं रहा, बल्कि यह बदलती जलवायु, अनियोजित शहरी विस्तार और कमजोर तटीय सुरक्षा ढांचे की देन है।
क्या हो समाधान?
स्थायी बाढ़ राहत केंद्रः अस्थायी शिविरों की जगह सुरक्षित, ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्थायी बुनियादी ढांचे की योजना बनाई जाए। तटीय सुरक्षा बाँधों की समीक्षाः वर्षों पुराने घाटों और संरचनाओं को जलग्रहण-अनुकूल बनाया जाए। पूर्व चेतावनी तंत्र (अर्ली वार्निंग सिस्टम) को जीपीएस/सेटेलाइट आधारित बनाया जाए, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों को पहले से जानकारी मिल सके। फसल क्षति का बीमा और पुनर्वास योजना को सक्रिय किया जाए। खास यह है कि काशी न केवल भारत की सांस्कृतिक राजधानी है, बल्कि भावनात्मक आस्था का केंद्र भी है। यहाँ की बाढ़ महज एक आपदा नहीं, बल्कि नीति-नियोजन की अग्निपरीक्षा भी है। अब समय है कि प्रशासनिक सजगता के साथ-साथ दीर्घकालिक शहरी व नदी नीति भी तैयार की जाए, ताकि हर साल बाढ़ का यह दृश्य “नियम” न बने।





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