उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की जमीन उसी दिन तैयार हो गई थी, जिस दिन बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम की घोषणा हुई। बिहार के चुनावी नतीजे को देखते हुए, उत्तर प्रदेश में संभावित महागठबंधन में सबसे ऊंचा भाव कांग्रेस का होगा। आखि़र बिहार के मतदाताओं ने जिस तरह से कांग्रेस को जमीन उपलब्ध कराई है, उसके बाद उसका राजनैतिक बाजार भाव कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है।
बिहार विधानसभा में रामविलास पासवान और जीतन राम मांझी को जिस तरह से उनके मतदाताओं ने ‘‘सम्मानित’’ किया है, उसने मायावती के होश उड़ा दिए हैं। बहुजन से सर्वजन का राग अलापने वाली मायावती को पिछले लोकसभा चुनाव में उनके मतदाता वैसा ही सलूक कर चुके हैं और इसीलिए, उनके माथे की शिकन बढ़ती जा रही है। इसके अलावा, भारतीय जनता पार्टी ने उनकी राजनैतिक जमीन खिसकाने का अलग से इंतज़ाम कर रखा है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को याद करना शुरू कर दिया था और अब तो बाकायदा उन्हें सम्माननीयों की सूची में सबसे ऊपर कर दिया है। भीमराव अंबेडकर का जिस तरह से महिमामंडन भाजपा कर रही है, उससे मायावती का दलित समीकरण पूरी तरह से गड़बड़ाता नज़र आ रहा है। स्थितियों की नज़ाकत को भांपते हुए मायावती कांग्रेस में अपने लिए बड़ी संभावनाएं तलाश रही हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव में हार तो एनडीए की हुई है। मगर, भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह के अलावा किसी का सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है तो वह हैं मुलायम सिंह यादव। वह ना घर के रहे ना घाट के। बिहार में उनका नाम लेने वाला तो कोई रहा नहीं, अब आगामी विधानसभा चुनाव में उनके अल्पसंख्यक मतदाता उनके साथ क्यों बने रहेंगे, इस सवाल का जवाब उन्हें ढूंढ़े नहीं मिल रहा। बिहार विधानसभा चुनाव में जिस तरह से उन्होंने आखि़री वक़्त में महागठबंधन से अलग हो कर चुनाव लड़ने का फैसला किया, उससे उनके अल्पसंख्यक मतदाता स्वाभाविक तौर पर नाराज है। यहां पर यह याद किया जाना जरूरी है कि जिस एमवाई जातीय समीकरण पर लालू प्रसाद यादव चुनाव जीतते रहे हैं, उत्तर प्रदेश में वही राजनैतिक जातीय समीकरण मुलायम सिंह यादव का आधार है। यानी उत्तर प्रदेश में अपने बेटे अखिलेश यादव का राजतिलक दोबारा करवाने की चाहत अगर मुलायम सिंह यादव की है तो उन्हें कांग्रेस को हर हाल में पटाना होगा। इस बात से मुलायम सिंह यादव भी वाकि़फ हैं और जिस तरह से अखिलेश यादव ने महागठबंधन की संभावना जताते हुए खुद को जीत के काबिल बताया है, उससे उनकी मंशा को असानी से समझा जा सकता है।
एक और संभावना भी मौजूद है। वह यह कि बिहार का महागठबंधन उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाग्य आजमाए। जिस तरह से बिहार के मतदाताओं ने नतीजे दिए हैं, उससे मौजूदा महागठबंधन के हौसले बुलंद हैं। इसके अलावा, मुलायम सिंह यादव से बिहार का बदला चुकाने का भी यह सुनहरा मौका है। अगर, लालू प्रसाद यादव अपनी जिद् पर अड़ गए तो मुलायम सिंह यादव का बुरा हाल यह महागठबंधन कर देगा। रही बात मायावती की, तो जातीय जादू का असर देख चुकी भाजपा इस बार कोई कोर कसर छोड़ने की मुद्रा में नहीं है। और अगर, अगले एक साल में बहुत कुछ नहीं बदला तो देखिएगा, उत्तर प्रदेश से मुलायम और मायावती के राज का खात्मा हो जाएगा। यह कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी, मगर जिस तरह के राजनैतिक समीकरण की गोटी बिछाई जा रही है, उसका फायदा भाजपा को मिलना तय है।
गिरिजा नंद झा
नई दिल्ली

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें