शांति वार्ता से पहले तालिबान को विश्वास में लेना आवश्यक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

शांति वार्ता से पहले तालिबान को विश्वास में लेना आवश्यक

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काबुल, 01 जनवरी, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि शांति वार्ता का आधार तैयार करने के लिए इस महीने अन्तर्राष्ट्रीय बैठक के आयोजन से पहले तालिबान के विभिन्न गुटों को विश्वास में लेकर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह आतंकवाद का रास्ता छोड़ रहे हैं । अफगानिस्तान , पाकिस्तान ,चीन तथा अमेरिका के अधिकारी इसी महीने 11 जनवरी को इस्लामाबाद में मिल रहे हैं जहां जुलाई से रुकी अफगानिस्तान संबंधी शांति वार्ता को फिर से शुरु करने के लिए आधार तैयार किया जायेगा। शांतिवार्ता की दूसरी बैठक तालिबान नेता मुल्ला उमर की दो वर्ष पहले की मृत्यु की खबर की पुष्टि के बाद स्थगित की गयी थी । शांति वार्ता की सफलता इस कारण संदिग्ध नजर आ रही है कि तालिबान के विभिन्न गुटों में नेतृत्व के सवाल को लेकर स्वयं संघर्ष चल रहा है और सरकार के विरुद्ध उनके घातक आतंकवादी हमले जारी हैं जिनमें लोगों की मौत हो रही है । यह कहना मुश्किल है कि तालिबान का कौन से गुट शांति वार्ता के लिए तैयार है । 

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने कल संवाददाताओं से कहा कि तालिबान एकीकृत गुट नहीं होकर आपस में बंटा हुआ है । मुख्य प्रश्न यह है कि इनमें से कौन सा गुट शांति या आतंकवाद का पक्षधर है । सबसे पहले यह तय किया जाना चाहिए कि आतंकवाद को सहन नही किया जायेगा । अमेरिका और चीन शांति वार्ता शुरु करने पर जोर दे रहे हैं किन्तु अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बीच आपस में संदेह बना हुआ है ।अफगानिस्तान लम्बे समय से कह रहा है कि पाकिस्तान की सांठगांठ तालिबान नेताओं से है और वह इनका उपयोग काबुल पर दबाव बनाने के लिए कर रहा है । पाकिस्तान इस आरोप को अस्वीकार करता रहा है। तालिबान का मुख्य गुट शांति वार्ता को पहले ही ठुकरा चुका है । उसका कहना है कि जब तक नाटो का प्रशिक्षण मिशन जारी है वह शांति वार्ता में भाग नही लेगा । नेतृत्व के विवाद के बावजूद तालिबान मूवमेन्ट ने बढ़त हासिल की है और उसने अफगानिस्तान के नये क्षेत्रों पर कब्जा किया है । 

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