मालिकों का है - मज़दूर दिवस
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय।, बेगूसराय ज़िला विधिक सेवा प्राधिकार के निर्णयानुसार 01 मई को अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर एक विधिक जागरूकता शिविर 10:30AM से व्यावहार न्यायालय परिसर बेगूसराय में लगाकर असंगठित कामगारों को जागरूक करते हुए उनको पंजीकृत भी करना था,इस बावत जिलाधिकारी मो नौशाद युसूफ ने श्रम विभाग को सहयोग करने का निर्देश दिया था।श्रम अधीक्षक मनीष कुमार अपने सहयोगी अधिकारियों के साथ ससमय शिविर स्थल पर पहुँच कर शिविर ढूंढ़ रहे थे नहीं मिला क्यूंकि आयोजन स्थल पर शिविर जैसी कोई बात ही नहीं थी।लगभग 11:25 बजे एक कमरे में 40KM दूर ज़िला के अन्य हिस्सों से आये मज़दूर का नाम,पता और फोन नंबर लिख कर बगैर विधिक जागरूक किये चिलचिलाती धूप में वापस घर लौट जाना पड़ा।श्रम अधीक्षक मनीष कुमार व्यवस्था से काफी नाख़ुश थे।शिविर जैसा स्थल पर सब कुछ अव्यवसिथत होने के कारण काफी अस्तव्यतता रही।वहां क्या होना है किसी को इसकी पुख्ता जानकारी नहीं थी,जिस वजह से बेचारे मज़दूरों का बेमतलब 100-150 के अलावे आना-जाना और एक दिन का मज़दूरी मुफ़्त में चला गया। अभी यह दिवस विश्व के लगभग 80 देशों में मनाया जाता है,हालांकि भारत में 1923ई में मज़दूर दिवस की शुरुआत की गई जो आज राष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है।बेशक सत्ता के गलियारों से इन बेचारे,बेचारे नहीं बल्कि इन मिहनतकश मज़दूरों के लिए कभी कोई अच्छी ख़बर नहीं आती है लेकिन समय पर इनके नहीं आने पर बेचारगी तो उनकी दिखती है जो इनका,इनके ख़ून को पसीना बनाकर बरसों से पीते आये हैं।फिर क्या औचित्य है श्रम या मज़दूर दिवस मनाने की।सबसे पहले हमें आपनी मानसिकता में सुधार लाना पड़ेगा तभी जा कर छौड़ाही प्रखंड के बथौन निवासी अवधेश पासवान,ललिता देवी,कमलेश पासवान,रामउद्गार पासवान और राजकुमार पासवान जैसे मज़दूरों का भला हो सकता है।

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