किस नाम से नवाजूं इस धर्म को
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय।आज सुबह किसी अनजान गाड़ी ने लाखो के पास एन एच-31 पर एक बकड़े को ठोकर मार कर चलता बना और बकड़े की मौत तत्काल जगह पर ही हो गई,बात बहुत बड़ी नहीं है लेकिन दूसरे तरीके से अगर देखें तो किसी ग़रीब को आर्थिक नुकसान अवश्य हो गया।चलिए ये तो एक घटना क्रम था जो हो गया लेकिन असली कहानी तो यहां से शुरू होती है।कुछ तथाकथित पोंगा पंडितों के मशवरा पर उस काले बकड़े को एक लाल कपड़ा से ढ़क कर हाइवे पर ईटों से छोटा घेरा बंदी कर उसके सर के पास 4-5 अगरबत्ती जलाकर बकड़े की लाश को सुला दिया जो भी आने-जाने वाले राहगीर उसे देखे स श्रद्धा उस पर चढ़ाव चढ़ा दे और प्रणाम भी करे,लोग आते रहे चढ़वा चढ़ता रहा,लोग जाते रहे चढ़ाव चढ़ता रहा।ये विश्वास किस धर्म किस श्रेणी में या किस प्रकार की आस्था पैदा करता है,यह घटना एक सवाल खड़ा अवश्य कर गया है आस्था और धर्म की मानसिकता पर।क्या हमारी धार्मिक चेतना इतनी कमज़ोर हो गई है?क्या हमारी आस्था की जड़ें इतनी खोखली हो गई है कि हमें कोई भी घटना प्रभावित कर जाती है,यह बहुत बड़ी विडंबना है।इस तरह की घटना का सबसे मूल और मजबूत कारण है अशिक्षा,22वीं शताब्दी में भी इस तरह की अवधारणा को गर पनाह मिले तो निश्चित ही क्रान्ति का बीज अभी अंकुरित भी नहीं हुआ है तो निकट भविष्य में परिवर्तन की उम्मीद करना बेमानी होगा।यहाँ एक बात और स्पष्ट करना ज़रूरी है कि तमाम धर्मांवलबियों ने धर्म के परिपेक्ष में आस्था को पहले रखा और अनुभव को प्राथमिकता ही नहीं दिया लेकिन गौतम बुद्ध ने कहा बगैर अनुभव का आस्था हो ही नहीं सकता,उन्होंने कहा मैं जो कहता हूँ मत मानो तुम्हारा अनुभव ही तुम्हें आस्था की ओर ले जाएगा,बात एकदम सही है इसीलिए बुद्ध धर्म के पहले वैज्ञानिक कहे जाते हैं।इसीलिए सबसे पहले हमें एक शिक्षित समाज का निर्माण करना पड़ेगा तब जाकर ऐसे ढकोसलापंथी से छुटकारा मिल पायेगा और तब जाकर हम अन्धकार से प्रकाश में आएंगे,लेकिन शासकों के लिए शिक्षित समाज हमेशा से ख़तरा पैदा करता रहा है।
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