बातचीत : ''कोशिश करता हूं कि किसी के सिर से अपनों का साया न छूटे'' - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शनिवार, 18 जून 2016

बातचीत : ''कोशिश करता हूं कि किसी के सिर से अपनों का साया न छूटे''

rohit-pandey
28 नवंबर 2002 को बलरामपुर के रहने वाले रोहित पांडे के पिता की सड़क दुर्घटना में मौके पर ही मौत हो गई। रोहित के मुताबिक वो घटना मानों ख्वाबों के खाक हो जाने, उम्मीदों के जमींदोज हो जाने जैसी थी। लखनऊ से गोंडा जाते वक्त एक मार्शल ने मारूती कार (जिसमें रोहित के पिता बैठे हुए थे) से जबरदस्त टक्कर हुई। और रोहित ने अपने पिता को उस हादसे में हमेशा हमेशा के लिए खो दिया। पिता जी चले गए और उनके पीछे रह गए उनके दो बेटे, एक बेटी और पत्नी। जिन्होंने अपना सबकुछ खो दिया। 

तमाशबीन बनकर देखते रहते हैं लोग

इस हादसे के बाद जहां रोहित की मां गहरे सदमे में चली गईं, वहीं रोहित ने एक नया संकल्प ले लिया कि वो हादसों को रोकने का प्रयास करेगा। लोगों को जिंदगी की कीमत समझाएगा और सड़क पर तमाशबीन बनकर बिलकुल भी नहीं देखेगा। जैसा कि आम तौर पर सड़क हादसों में लोग करते हैं। हादसे में घायल व्यक्ति समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण गंभीर हो जाता है और कई दफे तो मौत भी हो जाती है। या फिर अस्पताल पहुंचने में देर होने के कारण वो काल के गाल में समा जाता है। 

40-50 लोगों की बचाई जान

फिलवक्त रोहित लखनऊ में रहते हैं। और अब तक करीबन चालीस से ज्यादा लोगों की जान बचा चुके हैं। बीते दो दिन पहले ही लखनऊ में दो सड़क दुर्घटनाओं में दो लोग गंभीर रूप से घायल हुए, जिन्हें रोहित ने अस्पताल पहुंचाया। समय पर पहुंचने की वजह से दोनों की जान बच सकी। आज कहीं न कहीं रोहित उन लोगों के लिए उदाहरण बन रहे हैं, जो सड़क हादसों में घायल व्यक्तियों से मुखातिब तो होते हैं लेकिन महज एक तमाशबीन के तौर पर। जरूरत है रोहित की तर्ज पर जागरूक बनने की। ताकि लोगों की जान बच सके। किसी का बेटा, बेटी या कहें परिवार अनाथ के बदरंग तमगे से खुद लाचार न महसूस करे। सोचिएगा। 

अपनो को खोने का गम वाकई बहुत बुरा होता है

आर्यावर्त के साथ रोहित ने बातचीत में बताया कि उन्हें इस काम से सुकून मिलता है कि वे किसी के काम आ पा रहे हैं। उनका मानना है कि यदि समय रहते उनके पिता को अस्पताल पहुंचा दिया जाता तो शायद उनके सिर से पिता का साया न उठता। क्योंकि सुरक्षा का एक एहसास है पिता। हौसला है पिता। साथ है पिता। शिक्षा है पिता। अनुभव है पिता। 




हिमांशु तिवारी आत्मीय 
लखनऊ 

कोई टिप्पणी नहीं: