22 वर्षीय सीता का कहना है कि "जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी तो मेरे दो बड़े भाइयो के साथ मेरी भी शादी करवा दी गई. सोचा था कि सुसराल जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी, लेकिन लगातार बीमार रहने के कारण मैं पढ़ाई नहीं कर पाई. अब मुझे संस्था के माध्यम से एक बार फिर से पढ़ने का अवसर मिला है. अब मैं ओपन स्कूल से 10वीं कक्षा की पढ़ाई कर रही हूं. अब मुझे लगता है कि मैं भी अपनी जिंदगी में कुछ कर सकती हूं." वहीं 17 वर्षीय किशोरी कविता का कहना है कि "जब मेरी पढ़ाई छूटी तो मुझे लगता था कि मैं सिर्फ घर का काम काज ही करूंगी और शिक्षा प्राप्त करने का मेरा सपना कभी पूरा नहीं होगा. लेकिन अब मैं पढ़ रही हूं तो मुझे लगता है कि मैं भी अपनी जिंदगी में बहुत कुछ कर सकती हूं. अपना भविष्य उज्जवल बना सकती हूं और आत्मनिर्भर बन कर अपना ध्यान खुद रख सकती हूं." कविता कहती है कि पहले महिलाओं पर इसलिए अत्याचार होते थे, क्योंकि वह पढ़ी लिखी नहीं होती थी. जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होती थीं. लेकिन अब शिक्षा प्राप्त कर महिलाएं और किशोरियां अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हो रही हैं. उर्मुल की पहल से न केवल महिलाएं और किशोरियां, बल्कि उनके अभिभावक भी खुश नज़र आ रहे हैं. उनकी लड़कियों को पढ़ने, आगे बढ़ने और सशक्त होने का अवसर प्राप्त हो रही है. इस संबंध में एक अभिभावक 40 वर्षीय भीयाराम मेघवाल का कहना है कि 'संस्था की यह पहल अच्छी है. जो बालिकाएं किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पाती थीं उनका प्रेरकों ने हौसला बढ़ाया. जिससे वह आगे पढ़ने की हिम्मत जुटा सकीं.' भीयाराम का मानना है कि पढ़ी लिखी लड़कियां ही महिलाओं पर होने वाले अत्याचारो के विरुद्ध आवाज उठा सकती हैं और उसका विरोध करने का साहस दिखा सकती हैं. वह बताते हैं किसी कारणवश उनकी बेटी की शिक्षा बीच में ही छूट गई थी. लेकिन मुझे खुशी है कि अब वह संस्था के माध्यम से अपनी शिक्षा पूरी कर रही है.
इस संबंध में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता हीरा का कहना है कि "इस प्रोजेक्ट को चलाने का उद्देश्य दूर दराज गांवों की उन महिलाओं और किशोरियों को शिक्षित करना है, जिनका किसी कारणवश बीच में ही पढ़ाई छूट गई है. इनमें ऐसी बहुत सी किशोरियां हैं जिनकी 8वीं के बाद शिक्षा सिर्फ इसलिए छूट गई क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए गाँव में हाई स्कूल नहीं था और उनके परिवार वाले उन्हें दूसरे गाँव पढ़ने के लिए भेजने को तैयार नहीं थे. इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी थे जैसे घर की आर्थिक स्थिति का खराब होना, उनकी जल्दी शादी हो जाना और कई लड़कियों के घर का काम ज्यादा होने की वजह से भी उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी. ऐसी ही लड़कियों और महिलाओं को यह संस्था पढ़ाने का कार्य कर रही है. इससे उनकी शिक्षा का स्तर भी बढ़ा है. जो किशोरियां शिक्षा से वंचित रह गई थी और ड्रॉप आउट थी उनकी पढ़ाई फिर से जारी हो गई है. पढ़ाई को लेकर महिलाओं और किशोरियों में उत्साह बढ़ा है. वह अपने अधिकारों को लेकर भी जागरूक हो रही हैं और उनके परिवार वालो का भी उनके प्रति बदलाव देखने को मिल रहा है. अब उनके परिवार वालो को भी लगता है कि हमारी लड़कियां बहुत कुछ कर सकती हैं. पढ़ लिख कर सशक्त बन सकती हैं. वास्तव में, महिलाओं और किशोरियों ने शिक्षा के जरिए अपने परिवार और समाज में बहुत बड़ा बदलाव किया है और करती रहेंगी. स्त्री शिक्षा का समाज और परिवार की सोच में परिवर्तन लाने में बहुत बड़ा योगदान होता है. जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो सिर्फ एक स्त्री नहीं बल्कि पूरा परिवार शिक्षित होता है. इसके माध्यम से ही महिलाओं और किशोरियों को अपने अधिकारों की जानकारी प्राप्त होती है और जिससे समाज और परिवार के अंदर बेहतर योजनाओं को बनाया जा सकता है.
पूजा मेघवाल
लूणकरणसर, बीकानेर
राजस्थान
(चरखा फीचर)



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