कविता : पिछड़ी सोच से दुनिया लगाएगी मुझ पर पाबंदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

कविता : पिछड़ी सोच से दुनिया लगाएगी मुझ पर पाबंदी

ये दुनिया मुझे आगे नहीं बढ़ने देगी,

फिर भी मैं इनसे लड़ कर आगे बढ़ूंगी,

ये मुझे हर समय अपनी बातों में बहलायेंगे,

फिर भी मैं हर बात को अनसुना कर आगे बढ़ूंगी,

ये मेरे रास्ते में कांटे बिछाएंगे,

मैं हर कांटे को पार कर मंजिल तक जाऊंगी,

ये मुझे गलत नज़रों से देखेंगे,

मैं हर एक नजर से नजर मिलाकर आगे बढ़ूंगी,

ये मुझ पर लगाएगे पाबंदियां,

मैं हर एक पाबंदी को तोड़ कर आगे बढ़ूंगी,

ये मुझे हर लम्हा परेशान करेंगे,

मगर मैं हर समय अपनी आवाज बुलंद रखूंगी।।




Kavita-charkha-feature

कविता

लमचूला, गरुड़

उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: