- उत्तर और दक्षिण भारत के बीच आस्था की अनंत धारा, जो पवित्र जल के साथ भावनाओं को भी बहा ले जाती है
- जहां गंगा का आशीष समुद्र से मिलता है, वहीं भारत का हृदय अपनी पूर्णता पाता है
श्रावण मास के पहले सोमवार (28 जुलाई) को वाराणसी में संगम क्षेत्र के पवित्र जल का बाबा विश्वेश्वर को अवलोकन कराया गया। फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वह जल रामेश्वरम के श्री रामेश्वरम मंदिर ट्रस्ट के प्रतिनिधियों, सी.आर.एम. अरुणाचलम एवं कोविलूर स्वामी को ससम्मान हस्तांतरित किया। चार अगस्त को रामेश्वरम में इस जल से विशेष पूजन हुआ और वहां के कोडी तीर्थ का पवित्र जल, शास्त्रोक्त विधि से, काशी भेजा गया। 08 अगस्त को, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा रामेश्वरम से प्राप्त इस पवित्र कोडी तीर्थ जल को भगवान विश्वेश्वर के जलाभिषेक हेतु स्वीकार किया गया। यह पुण्य परंपरा भारतवर्ष की सनातन संस्कृति, आध्यात्मिक एकता और राष्ट्रधर्म को एक नई दिशा प्रदान करती है। यह केवल दो ज्योतिर्लिंगों का ही नहीं, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत के हृदयों का संगम है, जो श्रद्धालुओं को सनातन परंपराओं के सामंजस्य और अखंडता का दिव्य अनुभव कराएगा। बता दें, सनातन धर्म के पावन इतिहास में एक नए अध्याय का शुभारंभ करते हुए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी और श्री रामनाथ स्वामी मंदिर, रामेश्वरम के बीच पवित्र तीर्थ जल एवं रज का पारस्परिक आदान-प्रदान प्रारंभ किया गया है। यह पहल उत्तर और दक्षिण भारत की धार्मिक परंपराओं के गहरे सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंध का सशक्त प्रतीक है।
परंपरा जो दिलों को जोड़ती है
भारत की शक्ति केवल उसके मंदिरों, तीर्थों या शास्त्रों में नहीं, बल्कि इस तथ्य में है कि यहां की हर परंपरा मनुष्यों को जोड़ती है। काशी और रामेश्वरम का यह संबंध केवल जल का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह है, जो उत्तर और दक्षिण के हृदयों को एक कर देता है। यह परंपरा श्रद्धालुओं को यह संदेश देती है कि चाहे हम कितने भी दूर क्यों न हों, हमारी जड़ें एक ही संस्कृति और एक ही सनातन परंपरा में गहराई से बसी हैं।
संदेश पूरे राष्ट्र के लिए
जब देश में कई बार भाषाओं, रीति-रिवाजों और क्षेत्रों को लेकर भिन्नता की बातें होती हैं, तब यह परंपरा याद दिलाती है कि हमारे भेद सतही हैं, पर हमारी आस्था गहराई में एक है। काशी से रामेश्वरम और रामेश्वरम से काशी बहता यह पवित्र जल हमें यह भी सिखाता है कि भारत का वास्तविक मानचित्र केवल भूगोल से नहीं, बल्कि भावनाओं से बनता है।
आगे का मार्ग
आवश्यक है कि ऐसी परंपराएँ केवल प्रतीक न बनकर जीवंत बनी रहें। तीर्थों के बीच यह पवित्र संवाद भारत की सांस्कृतिक सुरक्षा-रेखा है। जैसे गंगा और समुद्र का संगम सदा प्रवाहित रहता है, वैसे ही उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम की आस्था का प्रवाह कभी रुकना नहीं चाहिए।

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