इस्पात नगर जमशेदपुर जिसे टाटा नगर से भी जाना जाता है. यह शहर अभी भी टाटा की जमींदारी के अंतर्गत आता है. इस शहर की देख रेख और सफाई टाटा स्टील ही करती है. पर टाटा की जमींदारी के आलावा भी कुछ क्षेत्र है जो जमशेदपुर में ही आता है जिसकी देख रेख जमशेदपुर नोटीफाइड एरिया कमिटी करती है. टाटा की जमींदारी वाले क्षेत्र और नोटीफाइड एरिया कमिटी वाले क्षेत्र में अंतर साफ़ नज़र आता है. एक तरफ टाटा का क्षेत्र साफ़ सुथरा है. पानी की सुविधा और नाले सही तरीके से बने हुए है. दूसरी तरफ नोटीफाइड एरिया वाले क्षेत्र उतना ही गन्दा. सडकों और गलियों में घर के कचड़े फेंके हुए. बाकी शहरों की तरह यहाँ भी अब नए नए फ़्लैट और मकान बन गए हैं और बन रहे हैं. पर क्या मकान बनने के साथ कभी किसी ने यह सोचा है कि मकान से निकले हुए पानी इत्यादि को बहने के लिए भी जगह चाहिए. सारे नए नए फ़्लैट और मकान के नाले के पानी और गन्दगी को चारो ओर से बह रही नदियों में छोड़ दिया जाता है. उन नदियों कि स्थिति कैसी होगी कहने की जरूरत नहीं है. नदियों के पानी के ऊपर हरे हरे सैवाल नज़र आते हैं और गंध की वजह से बगल से गुजरना मुश्किल हो गया है.
आजकल एक नया वाइरस शहर में फैला हुआ है जिसकी चपेट में पूरा शहर आ चुका है घर घर लोग बीमार पड़े हुए हैं. बुखार, कमजोरी और जोड़ों में दर्द इस बीमारी के लक्षण हैं. डॉक्टरों को अभी तक इस वाइरस के बारे में पता नहीं लग पा रहा है. शहर का और टाटा स्टील का अस्पताल टी एम एच मरीजों से भरा हुआ है वाही हल शहर के दूसरे अस्पतालों का भी है. स्थिति ऐसी है कि लोगों को अस्पताल से दवाई लेकर वापस घर आना पड़ रहा है. सरकारी अस्पतालों की तो बात ही अलग है. मरीजों को जमीन पर बिस्तर लगाकर इलाज करना पड़ रहा है. जानी मानी कंपनियों के पैरासिटामौल बाज़ार में उपलब्ध नहीं है, वही हाल विटामिन का है. मरीजों के परिजन दवाई के लिए परेशान हैं.
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