योगगुरु बाबा रामदेव ने खुद की तुलना देवताओं से की है। योग के जरिए जनता में पैठ बनाने वाले बाबा का इसे बड़बोलापन कहें या रामलीला मैदान पर आंदोलन के दौरान हुई फजीहत के बाद बदले की भावना का मारता जोर। विधानसभा चुनावों के दौरान बाबा शब्दों की मर्यादा भूलने लगे हैं। भ्रष्टाचार और कालेधन को मुद्दा बनाने वाले बाबा शायद ये भी भूल चुके हैं कि किसी भगवान ने कभी किसी तरह की दुकान नहीं चलाई।
बाबा रामदेव ने अपने बयान में कहा कि भगवान राम, कृष्ण और गुरु गोविंद सिंह ने भ्रष्ट और बेइमानों के साथ पंगा लिया था। इसलिए भाई अगर राम, कृष्ण, गुरुनानक और हनुमान सब ठीक थे तो बाबा भी ठीक हैं। जो उनको ठीक न मानता हो वो बाबा को भी गलत मान ले।
इन दिनों पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। बाबा चाहते हैं कि इन चुनावों में एक खास पार्टी की हार हो। हालांकि सीधे-सीधे वो किसी पार्टी के न तो पक्ष में और न ही किसी के खिलाफ बोल रहे हैं। जिस पार्टी की तरफ से रामदेव को बार-बार निशाना बनाया जाता है उसके बारे में वो अपने इरादे बताने से बी नहीं चूकते हैं। बाबा रामदेव ने कहा कि उस पार्टी ने संविधान और लोकतंत्र की हत्या कर दी है। लोकतंत्र और संविधान की हत्यारी जो पार्टियां हैं उनको वोट तो कतई नहीं देना चाहिए।
इन बयानों के पीछे रामदेव का दर्द छुपा है। दिल्ली के रामलीला मैदान में जिस तरह योगगुरु के साथ सलूक किया गया। जिस तरह उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनकर भागने को मजबूर किया गया। उस टीस को बाबा भूल नहीं पाए हैं। धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं के जरिए अपनी बात कहने वाले बाबा को ऐसे में इतिहास की किताबों में दर्ज चाणक्य और दूसरे महापुरुष याद आते हैं। लेकिन भगवान से खुद की तुलना करने वालों का इस संसार में क्या हश्र हुआ बाबा को ये भी नहीं भूलना चाहिए। अच्छी नीयत से नेक काम करने के लिए मर्यादा की हद को समझना भी जरूरी है।
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