मंत्रियों पर करवाई की समय सीमा तय हो. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

मंत्रियों पर करवाई की समय सीमा तय हो.


सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका स्वीकार कर ली है। कोर्ट ने आज कहा कि मंत्री और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत के लिए एक समय सीमा तय होनी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने इस मामले में कोई आदेश नहीं दिया। 

कोर्ट ने संसद से अपील की कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए एक समय सीमा बनाए।गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा के मामले में ये ऑब्जर्वेशन दिया है। जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ए राजा के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई करने की इजाजत दें। स्वामी ने इस बाबत कई दस्तावेज भी प्रधानमंत्री को भेजे थे। स्वामी ने जो दस्तावेज पीएम को भेजे थे उसमें ए राजा को टेलीकॉम घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराया था। बिना प्रधानमंत्री की इजाजत के उनके अधीन काम करने वाले मंत्री के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। स्वामी ने कहा कि पीएमओ राजा के खिलाफ केस दर्ज करने के संबंध में 16 महीनों तक चुप्पी साधे रहा।

24 नवंबर 2010 को जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस ए.के. गांगुली ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। बाद में पीएमओ से जो जवाब आया वो भी गोलमोल था। बवाल बढ़ता देख ए राजा ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया और निचली अदालत में हुई कार्रवाई के बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले में भी ये राय दी गई थी कि इस तरह के केस में संबंधित संस्था को तीन महीने के अंदर फैसला ले लेना चाहिए।

स्वामी ने कोर्ट के फैसले पर कहा है कि आज सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास पैदा कर दिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में विजय मिलेगी। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले में राज्यों में सीएम और केंद्र में पीएम की आज्ञा लेना जरूरी था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐसे रास्ते खोल दिए हैं जिससे भविष्य में ऐसे लोगों के खिलाफ लड़ाई में मजबूती मिलेगी। उन्होंने फैसले पर कहा कि संसद को एक ऐसा संशोधन लाना चाहिए कि अगर चार महीने के भीतर केस चलाने की इजाजत नहीं मिलती है तो समय अवधि पार होने के बाद मान लिया जाए कि केस चलाने की इजाजत मिल गई है। आज्ञा की जरूरत तब पड़ती है जब केस में ट्रायल होता है। ये संविधान की जीत है। अब जो भी भ्रष्टाचार की लड़ाई में केस चलाने की बात करेगा उनको इस फैसले से राहत मिलेगी।

कोर्ट ने इस पर कोई आदेश नहीं दिया पर संसद से अपील की कि समय सीमा जरूरी है। जस्टिस गांगुली और जस्टिस सिंघवी ने अपने फैसले दिए। जस्टिस सिंघवी ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत मांगने जाता है तो संबंधित अधिकारी को विनीत नारायण जजमेंट के हिसाब से काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस जजमेंट में सलाह दी गई थी कि कार्रवाई की इजाजत देने या फिर उसे खारिज करने के लिए तीन महीने का समय होना चाहिए। जस्टिस गांगुली ने अपने फैसले में कहा कि संबंधित अधिकारी को कार्रवाई के लिए कानूनी सलाह लेने के लिए एक महीने का समय होना चाहिए और उसके बाद तीन महीने कार्रवाई पर फैसला लेने के लिए। 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री हरिश रावत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ये सलाह है। सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि न्यायिक प्रक्रिया को कैसे आगे बढ़ाया जाए ताकि इन जरूरतों की पूर्ति हो सके। वहीं, बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि इस फैसले का स्वागत करते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आरोपियों पर अधिकार के नाम पर कार्रवाई नहीं की जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए भ्रष्टाचारियों को बचाना देश के हित में खतरनाक समझा और सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला एक ऐतिहासिक फैसला है।

कोई टिप्पणी नहीं: