मौज है दुमछल्लों की, हो निहाल थाम ले दुम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 29 मार्च 2012

मौज है दुमछल्लों की, हो निहाल थाम ले दुम


आपकी, मेरी, उनकी ...हम सबकी दीवाली और होली साल में सिर्फ एक बार ही आती है। पर्व और तीज-त्योहार भी कभी-कभार आते रहते हैं। पर आदमियों की एक अजीब जात है - दुमछल्ले। इनकी तो रोज ही होली-दीवाली है। हर दिन इनके लिए होता है त्योहार और जुट जाते हैं जश्न मनाने के तमाम ताम-झाम जाने कहाँ-कहाँ से। भला हो भी क्यों न, पराये माल पर त्योहार मनाने की कला का आविष्कार भी तो इसी जात ने किया है।

इस देश में दो ही ख़ासियतें सभी जगह हैं- भ्रष्टाचार और दुमछल्ले।  इनके बिना देश एक डग भी आगे नहीं बढ़ सकता। कितना ही शोर मचायें अन्ना चचा और उनकी टीम। बाबाजी गला फाड़-फाड़ कर मुँह और फेफड़ों का महा-प्राणायाम करें, तो करते रहें। न तो काला धन अपुन के देश में आने वाला है, न बदलने वाला है काला मन। जो कुर्सियों पर हैं उन्हें भी, और जो जाजम पर हैं उन्हें भी, असल में पूरा का पूरा देश दुमछल्लों के सहारे ही आगे बढ़ रहा है।

सत्ता के गलियारों और शासन-पर शासन के नुक्कड़ों से लेकर देश की सड़कों और चौराहों तक दुमछल्लों का जबर्दस्त साम्राज्य पसरा पड़ा है। देश को न भगवान चला रहा है न मनमोहन चचा या सोनिया आँटी, असल में दुमछल्ले ही हैं जो इस महान देश को धकिया रहे हैं।दुमछल्ले अपने आप में भले कुछ न हों, पर उनकी हरकतों का हर कोई कायल हो ही जाता है। घायल होने वालों की पीड़ाएँ दूसरी ही हैं। दुमछल्लों की भी कई-कई जातें हैं। सरकारी-गैर सरकारी, पढ़े-लिखे, अनपढ़ और दूसरों को पढ़ाने वाले। चाहे जिस तरह भी हो सके, काम बनाने वाले, काम करा लेने वाले और काम बिगाड़ देने वाले। असन्तोषी और विघ्नसंतोषी......आदि आदि।

कुल मिलाकर ऑब्जर्वेशन किया जाए तो दुमछल्ले वे हैं जो अकेले अपने दम पर कुछ भी करने का माद्दा नहीं रखते मगर जब कहीं से किसी की दुम पकड़ में आ जाए तो फिर कहने ही क्या। दुमछल्लों के लिए ताज़िन्दगी किसम-किसम की दुम तलाशने का धंधा नॉन स्टॉप जारी रहता है। हर बार इनकी तलाश होती है सुनहरी और गर्म मखमली दुम। कभी भगवा तो कभी तिरंगी दुम को थाम कर दुमछल्ले अपने हुनर को आजमाते रहते हैं। इनके लिए किसी भी दुम के प्रति श्रद्धा कभी स्थायी नहीं होती।
समय की नब्ज़ को दूर से पहचानने में माहिर दुमछल्लों के लिए मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी की तरह नफा-नुकसान को आँकते हुए नई-नई दुम थामना कतई बुरा नहीं समझा जाता। अफसरों और नेताओं की कई किस्मे हैं जिनके लिए दुमछल्ले मजबूरी होते हैं। इन दुमछल्लों के गर्दभ राग से ही इनका दिन उगता और रात की नींद आसान हो जाती है।

ख़ासकर उन लोगों के लिए दुमछल्ले भगवान का वरदान ही हैं जिन्हें खुद की ताकत पर भरोसा कम ही होता है। इनके लिए दुमछल्ले ही हैं जो बैसाखियों और ‘जयपुर फुट’ का काम करते हुए दुमों को दमदार होने का भ्रम बनाये रखते हैं। दुमछल्ले खुद भले ही अपने काम में माहिर न हों, कोई रुचि न लेते हों मगर इनके लिए आकाओं की दुम ही सब कुछ होती है जो इनके जीवन में चार चाँद लगा देती है। दुम का मोनो लगाकर ये दुमछल्ले कहीं भी, कुछ भी कर सकते हैं। जितनी बड़ी दुम, उतनी ही ज्यादा चले दुमछल्लों की दुकान। 

क्राईम, एन्क्रोचमेंट, अवैध धंधों और अपराधों से लेकर ट्रांसफर, प्रोमोशन, चौथ वसूली, सैक्स स्कैण्डल और सारे गलत-सलत धंधों के महारथी होते हैं ये दुमछल्ले। जहाँ दुम की पुचकार हो वहाँ किसकी हिम्मत है दुमछल्लों को हाथ लगाने की। दुमछल्ले सारी कलाएँ जानते हैं दुमदार को खुश करने की। दिन उगने से लेकर रात को सोने तक कई-कई हाथों में मलाई और मुँह में शहद भर कर पुचकारते रहते हैं आकाओं की दुम को। मक्खनिया माहौल में रचे-बसे आकाओं के लिए इससे बड़ा सुख और कुछ हो ही नहीं सकता। ऐसे में दुम की बड़ाई के गीतों और लोरियों से ही तो साहबों और हमारे तथाकथित लोकप्रियों का खून बढ़ने लगता है। तभी तो दुमछल्ले जैसा भरमाते हैं वैसा होता चला जाता है। कभी टेढ़ी तो कभी मुरझा कर सीधी हो चुकी, दोनों प्रकार की दुमों के लिए दुमछल्ले लुकमान हकीम हैं।

दुमछल्ले न हों तो कइयों की दुमें कटवानी पड़ जाएँ। दुम और दुमछल्लों का साथ लगातार बना रहता है जैसे लालफीताशाही और करप्शन का। जहाँ दुमें, वहाँ दुमछल्ले। कोई भी क्रिया-करम हो, फंक्शन हो, दुमछल्ले भँवरों की तरह मण्डराने लगते हैं। अपने आकाओं की गंध पाकर दुमछल्ले दूर-दूर से पहुँच ही जाते हैं। चाहे उनका कोई काम हो या न हो। दुम सेवा सबसे बड़ी है न। सरकारी फील्ड से लेकर जन-मैदानों तक के दुमछल्ले घेरे रहते हैं दुमों को। दुमछल्लों ने सारे समाज का कबाड़ा कर रखा है, दफ्तरों को अखाड़ा बना डाला है।  चमड़े के सिक्के चलाने की खातिर दुमछल्ले क्या-क्या नहीं कर गुजर रहे हैं यह किसी से छिपा हुआ थोड़े ही है।

दुमछल्लों की करतूतों से दुमों को क्या लेना-देना, ये दुमछल्ले न हों तो उन बेचारों की दुम अनाथ नहीं हो जाएगी? आप भी निगाह दौड़ाएँ अपने आस-पास, दस ढूँढ़ों तो हजार मिल जाएँगे दुमछल्ले। जिनके पास कोई दूसरा हुनर नहीं है, कमाने-खाने का माद्दा नहीं है, जिन्दगी बोझ बनती जा रही है और उच्चाकांक्षाएँ आसमान छूने लगें तो देर किस बात की। किसी दुमछल्ले से ले लो दीक्षा और फिर जुट जाएं किसी दुम की सेवा में। फिर आप भी आ जाएंगे दुमछल्लों की मुख्य धारा में। इस मायावी धंधे में हर मोड पर फायदा ही फायदा है। दुम और दुमछल्लों को एक-दूसरे की तलाश तब तक बनी रहेगी जब तक पॉलिटिक्स और डेमोक्रेसी का कैक्ट्स गार्डन हरा-भरा रहेगा। दुम अमर रहे, दुमछल्ले जिन्दाबाद।

---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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