पश्चिमी राजस्थान का सरहदी इलाका पुराने जमाने से सिद्ध संत-महात्माओें और मठाधीशों का गढ़ रहा है। इस पूरे रेगिस्तानी इलाके में एक से बढ़ कर एक सिद्ध योगी हुए हैं जिनके चमत्कारों के किस्से आज भी सुने जाते हैं। इन्हीं में एक थे महंत उद्धवदास जिन्होंने बीसवीं सदी में जैसलमेर के पंचमुखी हनुमान मन्दिर में रहकर भगवानश्री हनुमानजी का साक्षात्कार किया और दिव्यत्व प्राप्त किया। महंत उद्धवदास महाराज ने खूब तीर्थाटन किया। इस दौरान कई सिद्ध संतों व दिव्य विभूतियों से उनका साक्षात्कार हुआ।
पंचमुखी हनुमान क्षेत्र का सबसे प्राचीन मन्दिर होने से भक्तों की इसके प्रति अगाध श्रद्धा और आस्था है और यही कारण था कि संत उद्धवदास के समय रोजाना शाम को सत्संग के वक्त काफी संख्या में भक्तों का जमावड़ा रहता। उन्हीं दिनों की बात है। महंत ने अपने साथ घटी एक सत्य घटना का जिक्र किया। इसके अनुसार चार धाम की यात्रा में वे 8-10 संत-महात्माओं व भक्तों के साथ कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए।
उन दिनों भयंकर तूफान आ गया। सारे संगी यात्री इधर-उधर बिखर कर भटक गये, सामान का भी कोई अता-पता नहीं चला, कहाँ गया। ऐसे में नितांत अकेले चलते-चलते बेहाल हो बर्फीले पर्वतों में भटक गए। मौत सामने दीखने लगी मगर महंत न विचलित हुए, न घबराए। उन्होंने अपने आप को ईश्वर के हवालेे कर दिया।
इसी बीच भयंकर बिजली कड़की और रास्ते में विराटकाय पहाड़ में गुफा का द्वार खुला। इसमें से वामन रूप का नन्हा साधु जिसका चेहरा दिव्य ओज से चमक रहा था और दाढ़ी जमीन को छू रही थी, बाहर निकला और महंत का हाथ पकड़ कर फुर्ती से गुफा में खींच ले गया। गुफा का दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
अंदर जाकर जो देखा वह अपने आप में अजूबा था। पूरा का पूरा गांव वहां बसा हुआ था, संतों के आश्रम थे और सैकड़ों साधुओं की जमात अलग-अलग ढंग से तपश्चर्या में लीन थी। महंत उद्धवदास को वहां सुगंधित कुटिया में ठहराया व औषधियों का रस पिलाया। इससे उनमें तुरंत फुर्ती आ गई। वहीं आश्रम में ही उनके खाने-पीने व विश्रामादि की सारी व्यवस्थाएँ चलती रही। वामन वेश वाला साधु वहां उन्हें कहीं नहीं दिखा। चार दिन बाद वह साधु फिर दिखा जो उन्हें गुफा में ले आया था।
उस साधु ने महंत को वापस गुफा के बाहर लाकर छोड़ दिया व हाथ के इशारे से सीधा रास्ता बता दिया। महंत ने वापस मुड़कर देखा तो न गुफा थी, न ही वह साधु। इस अलौकिक घटना ने महंत के मन पर गहरा असर डाला व वे पहले से अधिक भक्तिभाव में रम गए। महंत के महाप्रयाण के बाद उनके अनन्य भक्त बृजमोहन व्यास यदा-कदा मंदिर परिसर में भक्तों को यह किस्सा सुनाते तब बाबा के दिव्यत्व के प्रति श्रृद्धा का ज्वार उमड़ने लगता। महंत उद्धवदास महाराज पर हनुमानजी की पूरी कृपा थी और ऐसे में जब-जब भी कोई संकट आता, हनुमान अपने आप संकट का निवारण कर देते। एक बार की बात है जब महंत को राज-काज से जुड़े लोगों ने परेशान करने व परीक्षा लेने की ठानी। इस पर महंत को बेवजह परेशान करने वाले अफसरों के आवासों पर बंदरों ने हमला बोल दिया व रात भर उत्पात मचाया। सवेरे बाबा से माफी मांगने पर बंदरों के झुण्ड कहीं गायब हो गए।
महंत उद्धवदास इस मंदिर परिसर से बाहर नहीं निकलते। उनके लिए पंचमुखी हनुमान मन्दिर का छोटा सा परिसर ही उनकी दुनिया थी। सन् 1963-64 की बात है जब यहां भयंकर अकाल पड़ा। उस समय धाम पर 400 गायें थी जो दिन भर चराई के बाद जब लौटती तो थकी-हारी व भूखी दिखती थी। कारण पूछने पर ग्वालों ने बताया कि बरसात नहीं हो रही है, न घास है, न पूरा पानी। भीषणतम अकाल पड़ा है, ऐसे में गायों की हालत बहुत खराब है। यह सुनते ही गौभक्त संन्यासी उद्धवदास महाराज अत्यन्त व्यथित हो उठे और इस बात पर गहरा अफसोस जाहिर किया कि गायें भूखी हैं व मैं खा रहा हूँ। उसी क्षण उन्होंने सारे भक्तों को बाहर निकाल कर अन्न व जल त्याग कर भगवान हनुमान जी के समक्ष अनशन शुरू कर दिया।
सच्चे भक्त की करुण पुकार भगवान ने सुनी। उस रात खूब बारिश हुई। बाबा के भक्तों जीवनलाल व्यास व अमृतलाल सेवक ने सवेरे दरवाजा खटखटाया व बताया कि बाहर देखो बरसात हो गई है तब पूरी तरह संतुष्ट हो जाने पर ही बाबा ने अपना अनशन तोड़ा। ऐसे कई किस्से आज भी सुने जाते हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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