विरोधियों को खाली होने के मौके दें... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 26 जून 2012

विरोधियों को खाली होने के मौके दें...


वरना भार से दबकर बेहाल हो जाएंगे !!


यों तो विरोधियों का होना बहुत अच्छी बात है क्योंकि ये ही वे लोग हुआ करते हैं जो क्षण-प्रतिक्षण हमारी तमाम गतिविधियों पर पैनी निगाह रखते हुए हमें सतर्क रखा करते हैं और हमें आत्म मूल्यांकन के मौके देते रहते हैं। इन लोगों की वजह से हम जो भी काम करते हैं वह बड़े ही सोच-समझ कर करते हैं और हमेशा हमारा लक्ष्य यही रहता है कि कोई ऐसा काम न हो जिससे इन लोगों को हमारे बारे में किसी भी प्रकार की नकारात्मक टिप्पणी का कोई अवसर मिले। हम हर बार उन लोगों को ही दोष देते हैं जिन्हें हम हमारा विरोधी मान लेते हैं। असल में ये ही लोग हमारे सहज उपलब्ध सरल शुभचिंतक हैं जो दिन-रात हमारी चिन्ता में ही खून जलाये और गले जा रहे हैं। मनुष्य के लिए विरोधियों की कई किस्में हैं। कई लोग स्वभाव से ही विरोधी होते हैं और ये हमेशा ऐसे ही रहते हुए किसी न किसी के विरोधी बने  रहते हैं जबकि कई लोग अपने स्वार्थ पूरे न होने पर विरोधी हो जाते हैं और स्वार्थ पूरे हो जाने पर विरोध छोड़ देते हैं।

कई ऐसे होते हैं जिनका आपसे-हमसे किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं हुआ करता लेकिन ये किसी का अच्छा नहीं देख सकते, इसलिए विरोधी हो जाते हैं और शिकायतों के धंधे में पड़ जाते हैं। इन विरोधी स्वभाव वाले विभिन्न किस्मों के लोगों के समूह भी सभी जगह पाए जाते हैं क्योंकि संसार में होने वाली हर क्रिया का अंत प्रतिक्रिया की तलाश से पूर्ण होता है और इस समूह के लोग पारस्परिक प्रतिक्रिया कर आनंद और उल्लास की कमी को अपने समूह में से ही पूरी कर लेते हैं। ये ही वे समूह हैं जो समाज में विखण्डन और दुराव जैसी स्थितियों के लिए जिम्मेदार होते हैं।  इस किस्म के विरोधी लोगों को असामाजिक कहना भी एक भूल होगी क्योंकि ऐसे कई सारे लोग मिलकर अपना अलग समाज ही बना लेते हैं। जो भी लोग किसी भी कारण से अपने विरोधी हो जाते हैं उनका विरोध करने की बजाय उन्हें सद्बुद्धि प्रदान करने और उनकी दुर्बुद्धि दूर करने के लिए भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसे लोगों पर करुणा और दया का भाव होना चाहिए क्योेंकि कहीं न कहीं ये लोग अपने अप्रत्यक्ष हितैषी ही होते हैंे जिनकी वजह से हमारे कामों में गुणवत्ता और शुचिता बनी रहती है।

यों भी देखा जाए तो अपने किसी काम का विरोध होना ही इस बात की निशानी होता है कि हमारे अस्तित्व और हमारे काम करने के कौशल को कहीं न कहीं मन से स्वीकारा भी जा रहा हैै। विरोध होना दूसरी बात है क्योंकि विरोध करना उनका स्वभाव है, और काम कर दिखाना हमारा अपना। विरोध करने वाले लोगों की कई प्रजातियाँ हैं इनमें बुद्धिजीवी, अतिबुद्धि, अर्धबुद्धि, महाबुद्धि,  मन्दबुद्धि, दुर्बुद्धि, पिशाचबुद्धि, स्वार्थबुद्धि, भ्रष्टबुद्धि, दुराचारी, व्यभिचारी, कमीशनखोर, हरामखोर, पशुबुद्धि, अहंकारी, अंधमोहपाशी, ईर्ष्यालु, नुगरे, नाकारे, कामचोर और भिक्षुक। इन किस्मों में कई पीछे से वार करते हैं, कई दांये-बांये से, कई सामने से और कई दूसरों के कंधों पर  बंदूक रखकर। हमारे पूरे जीवन में इनमें से किसीन किसी से पाला पड़ता रहता है या रह-रहकर सारे लोगों से हम परिचित होते चले जाते हैं। हम बेवजह इनकी हरकतों को विरोध मान बैठते हैं जबकि हमें तहेदिल से यह सोचना चाहिए कि समाज के इस किस्म के लोगों को भी जीने का, पेट और पिटारे भरने का अधिकार है, और ऐसे में ईश्वर द्वारा छोड़ी गई किसी कमी को पूरा करने के लिए ये इनमें से किसी हथकण्डे का सहारा नहीं लेंगे तो और क्या करेंगे?

किसी भी तरह के विरोधियों या तथाकथित विरोधियों से पाला पड़ने की स्थिति में इनसे घृणा या दूरी का बर्ताव नहीं किया जाकर इनकी मनःस्थिति को समझना जरूरी है। ऐसे लोगों को अपने विरोध का खुलकर मौका दीजियें ताकि वे अपना सारा हुनर और जीवन भर की ऊर्जा उण्डेल सकें। यह बात तय मानकर चलना चाहिए कि जो अपने साथ होना है वह नियति के विधान से निश्चित होकर रहेगा चाहे ये लोग आपके घोर प्रशंसक या मित्र ही क्यों न हो जाएं। फिर विरोध करने वाले लोगों से क्या घबराना या परेशान होना। जितने ज्यादा विरोधी हुआ करते हैं उतना आदमी का कद ऊँचा मानना चाहिए  क्योंकि ये ही तो उनके असली शुभचिन्तक और रायचन्द हैं जो दिन-रात इन्हीं के बारे में सोचते और षड़यंत्र करते रहते हैं। पतितपावन भगवान श्रीराम के उपासक के रूप में हमें संसार में ऐसे गिरे हुए पतितों को ही तो सुधारना है। भगवान ने यह मौका हमें ही दिया है और इसका पूरा उपयोग होना भी चाहिए, इससे स्वयं ईश्वर भी प्रसन्न होते हैं। इन पतितों को सुधरने के भरपूर मौके मिलने चाहिएं।

इसके लिए यह जरूरी है कि जो लोग विरोध करते हैं या करना चाहते हैं उन्हें ऐसे खूब अवसर प्रदान किए जाएं जहाँ कि वे अपने भीतर वर्षों से जमा सारे विरोध के स्वर, दुराग्रह, पूर्वाग्रह आदि बाहर निकाल सकें। लगातार विरेचन की इस प्रक्रिया को अपनाते-अपनाते जिस क्षण उनके मन-मस्तिष्क का सारा विरोध बाहर निकल आएगा, उस दिन वे खाली हो जाएंगे और उनकी यह स्थिति न सिर्फ अपने लिए, बल्कि विरोध करने वाले लोगों के लिए भी नए दिन जैसी होगी। क्योंकि जब व्यक्ति खाली हो जाता है तब कुछ क्षण के लिए सत्य का भान हो ही जाता है। इसके बाद उनमें स्वतः बदलाव आता चला जाएगा और उनमें सुधार का पुण्य हमें भी जरूर मिलेगा। इसलिए जहाँ जो लोग विरोध करें, करने दें, उनकी बकवास, अनर्गल प्रलाप और उन्माद का अंत तभी होगा जब वे पूरी तरह खाली हो जाएंगे। इस किस्म के लोगों को खाली करना ही स्वतः विरोध समाप्त करने का सबसे सरल और सहज तरीका है जिसे आजमाया जाना चाहिए। विरोधियों को खाली होने के मौके दें और उनकी बकवास को उस सीमा तक सुनते रहें जब तक वे शून्य न हो जाएं। उन्हें सुनने और खाली होने के मौके नहीं मिलने पर उनका भार बढ़ता ही चला जाएगा और यह स्थिति न उनके लिए अच्छी होगी, न हमारे या समाज के लिए। ऐसे विरोधियों का पूरा ध्यान रखें और उनका भार हल्का करते हुए उन पर परोपकार पूर्ण दृष्टि डालते हुए तरस खायें, यही आज के जमाने की जरूरत है।


---डॉ दीपक आचार्य---
9413306077

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