ताज़िन्दगी असंतुष्ट रहते है...... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 29 सितंबर 2012

ताज़िन्दगी असंतुष्ट रहते है......


छिद्रान्वेषण करने वाले !!!


मनुष्य विचित्र स्वभाव वाला प्राणी है जिसे जानना और समझना बड़ा ही कठिन है। इन मनुष्यों में भी एक अत्यधिक विचित्र किस्म है उन लोगों की जिनकी आदत ही हो गई है छिद्रान्वेषण की। छिद्रान्वेषी लोग किसी भी बाड़े में हो सकते हैं -  सरकारी,  अद्र्ध सरकारी, गैर सरकारी और (अ) सरकारी। इस तरह के लोग पद वाले भी हो सकते हैं और बिना पद वाले भी,  मंद बुद्धि वाले भी हो सकते हैं या बौद्धिक अजीर्ण वाले भी। इस प्रजाति के लोग सर्वत्र पाए जाते हैं कहीं कम कहीं ज्यादा। ये अपने जीवन में कोई काम सहजता से नहीं कर पाते हैं। हर काम को वे ऎसे सूंघते हैं जैसे सीआईडी सीरियल के जासूस या प्रोफेशनल इन्वेस्टर्स। इन्हें हर काम में नुख़्स कहें या मीन-मेख निकालने की इतनी गहरी आदत होती है कि इन्हें लगता है कि भगवान ने उन्हें यह मनुष्य शरीर एकमात्र इसी कारण से दिया है जिससे कि ये जहां कही रहें, कुछ न कुछ नुख़्स निकालते रहेंं वरना इनकी जिन्दगी का होना या न होना क्या मायने रखता है। जो जिस विद्या में दक्ष है वह अपनी दक्षता दिखाकर लोहा न मनवाए तो फिर इस हुनर का क्या मतलब। छिद्रान्वेषी स्वभाव वाले लोग निरंतर चेतन व जागरूक रहा करते हैं, उनकी दृष्टि भी बाहर की ओर ही टिकी होती है व कान इतने चौकन्ने कि जरा सी आहट पाते ही पूरे खुल जाते हैें।

छिद्र ढूँढ़ने को ही जिन्दगी मान बैठे ये लोग किसी ब्लास्टिंग कंपनी में होते तो पूरी दुनिया को छेद देते। छिद्रान्वेषी लोग हमेशा औराें के छिद्र ढूंढ़ने में ही मशगुल रहते हैं और इस वजह से उनका हृदय भी आम लोगाें के मुकाबले कुछ ज्यादा ही धड़कता है। धड़के भी क्यों न, कितनी मेहनत-मशक्कत करते हैं ये बेचारे छिद्रों की तलाश में। जिन्दगी में एक बार भी किन्हीं दुर्जनों के संग से या दुष्ट लोगों के समूहों का सान्निध्य पाकर छिद्रान्वेषण की आदत पड़ जाये तो फिर यह मौत तक भी नहीं छूटती। मरने के बाद इनकी आत्मा भी यदि अपनी जलती हुई चिता को देखती है तब कह उठती होगी कि लकड़ियां कम हैं या घी डालने में कंजूसी बरती गई है अथवा तुलसी या चंदन भी नहीं डाले। किसी भी मानसिक और शारीरिक बीमारी से भी कहीं ज्यादा घातक है यह असाध्य बीमारी। छिद्रों की तलाशी को ही अपने जीवन का परम ध्येय मान लेने वाले ये लोग कभी अपने मनुष्य होने के सुख प्राप्त नहीं कर सकते। छिद्रान्वेषी स्वभाव इनके पूरे जीवन में हमेशा उद्विग्नता, अंसतोष और चांचल्य इस कदर घोल देता है कि ये न  कभी शांत रह सकते हं, न स्थिर चित्त। घर हो या दफ्तर, व्यवसाय स्थल हो या इनकी उठक-बैठक के डेरे या फिर सायास-अनायास समागम के स्थल। ये कहीं भी खुश नहीं रहते। जहां रहेंगे वहां हमेशा कोई न कोई रोना रोते रहेंगे चाहे इससे उनका दूर का रिश्ता भी न हो। छिद्रान्वेषी लोगाें के बारे में आम लोग कैसी भी टिप्पणी करें। कभी सनकी, सठियाया हुआ, गोबर गणेश या सटके दिमाग का कहें या इनका नाम लेकर गालियों की बौछारें करते रहें, इन लोगो को ऎसी प्रतिक्रियाएं देख-सुन कर लगता है जैसे उनकी हरकतों की तारीफ के पुल बाँधे जा रहे हैं। कभी डिसिप्लिन और स्ट्रांग एडमिनिस्ट्रेशन के नाम पर तो कभी किताबी कीड़े या कायदे-कानूनाों के मास्टर माइंड़ मानकर। ऎसे में ये लोग और भी ज्यादा फूल कर कुप्पा होते रहते हैं।

छिद्रान्वेषण करने वाले लोग न स्वयं प्रसन्न रह सकते हैं न औरों को प्रसन्न रख सकते हैं। हर कहीं छिद्र ढूँढ़ने व बताने की कला तो कोई इनसे ही सीखे, जिन्हें लगता है कि हर छिद्र उनका अपना ही मौलिक आविष्कार है जो उन्हीं के नाम पेटेन्ट होना चाहिए। घर-बाहर सर्वत्र ये छिद्रान्वेषी लोग दिन-रात कहीं न कहीं छिद्र ढूंढ़ने में लगे रहते हैं। बहुधा इन छिद्रान्वेषियों को हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है किन्तु इनकी अपनी ही छिद्रान्वेषी बिरादरी का कोई मिल जाए तो ये राम भरत मिलाप से भी ज्यादा भ्रातृत्व से नहला देते हैं। कई जगह छोटे-बड़े ओहदों पर भी छिद्रान्वेषियों का आवागमन बना रहता है। ऎसे में इनके दफ्तरों में काम की स्पीड भले ही कम हो जाती है, लेकिन छिद्रान्वेषण रफ्तार पा जाता है। फिर हर कागज और फाईल अंदर से बाहर आएगी तो कोई न कोई दाग लगाकर। लकीरें पिटने और खिंचने या चलानें में छिद्रान्वेषियों का बोलबाला रहा है। हर कागज को कैनवास समझ कर लाल-हरी लकीरें ये न घसीटें तो कौन इन्हें योग्यतम व  सफल ओहदेदार मानेगा ? 

छिद्रान्वेषी लोग अपने आपको स्वयंभू मानते हैं व ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का उद्घोष करते रहते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि समाज या आम लोग उन्हें किस दृष्टि से देखते हैं या लोग उनके नाम पर असहनीय गालियां क्यों निकालते हैं। इन्हें हमेशा लगता है कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह उन्हें  लोकप्रियता की ओर ले जा रहा है और वे ही है जो भीड़ से अलग दिखने व होने का माद्दा रखते हैं। अपने क्षेत्रों में भी छिद्रान्वेषियों की खूब फसलें लहलहा रही हैं। आजकल तो छिद्रान्वेषण भी धंधा बन गया है। एक छिद्र ढूँढ़ो और हजारों कमा लो। फिर छिद्रों की भी कमी कहाँ है। ज्यों-ज्यों छिद्र बढें़गे, त्यों-त्यों छिद्रान्वेषियों की संख्या में भी इजाफा होता रहेगा। यह पारस्परिक खाद्य श्रृंखला युगाें से चलती आयी है और चलती रहेगी। 


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

कोई टिप्पणी नहीं: