अघोरी अब श्मशान में नहीं... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

अघोरी अब श्मशान में नहीं...


हमारे बीच नजर आने लगे हैं !!


वह जमाना बहुत पुराना हो चला है जब गांव से बाहर किसी शिवालय में या श्मशान भूमि पर अघोरियों को अपनी ही मस्ती में घूमते, राख में लौटते हुए तथा भक्ष्य-अभक्ष्य खाते हुए देखा जा सकता था। बात बहुत पुरानी भी नहीं है, पचास के दशक से पहले तक ये नजारे आम हुआ करते थे। बढ़ती जनसंख्या और बस्तियों के श्मशान तक फैलाव ने इन अघोरियों की शांति भंग कर दी व एकांत छिन लिया। अब इक्का-दुक्का शहरों व गांवों के आस-पास ही इन अघोरियों को देखा जा सकता है।इन अघोरियों के तंत्र सिद्ध होने तथा स्वयं शिव के समान सिद्धियों के स्वामी होने तथा इनके चमत्कारों की चर्चाओं को छोड़ भी दिया जाए तो अब इन अघोरियों का रूपान्तरण हो चला  है। हमारे अपने क्षेत्र में तथा आस-पास इतनी बड़ी संख्या में अघोरी अब दिखने लगे हैं जिनके मन में स्वच्छता है न शरीर में। इसीलिए ऎसे  दरिद्री और गंदे लोगों को भी बुजुर्ग अघोरी कह कर पुकारते रहे हैं।

अघोरी रहे नहीं, अब आधुनिक अघोरी हमारे सामने हैं। इनके जीवन का कोई क्रम या मर्यादा निश्चित नहीं है। कई ऎसे हैं जो न रोज या समय पर नहाते हैं, न कपड़ों का ध्यान है न खान-पान का। न कोई जीवन मर्यादा है न अनुशासन। जो जहां से मिला, उसे ग्रहण कर लिया। फिर आजकल थोड़ा बहुत गुर आ जाने पर कहीं भी मुफ्त में माल उड़ाया जा सकता है। इसके लिए न कोई वर्जनाएं हैं न किसी की रोक-टोक। जैसे-तैसे ओरों का माल हजम कर डकार भी न लेने वाले ऎसे लोगों की संख्या आजकल खूब बढ़ती जा रही है।

कईयों की मलीन व दुष्ट मनोवृत्ति ने उनके चेहरे- मोहरे तक को बेड़ौल बदसूरत बना डाला है।  मनोमालिन्य भरे ऎसे कई लोगों के चेहरे ही ऎसे हो गए हैं  जैसे किसी बड़े बूचड़खाने के मालिक या मैनेजर ही हो, जिनके स्वभाव में मनमर्जी से लूट -खसोट और नर पिशाचों सी क्रूरता व हिंसक मनोवृत्ति, शोषण और उन सारी कलाओं में महारत है जो एक आम आदमी पूरी जिंदगी में नहीं कर सकता। इन आधुनिक अघोरियों का पूरा जीवन अश्लील बकवास, षड़यंत्रों व बेईमानी के व्यामोह से घिरा रहता है। इन अघोरियों की दिनचर्या से लेकर इनकी कार्यशैली, व्यवहार तथा इनके चाल-चलन तक में अघोरियों सा व्यवहार झलकता है ही, इनके अपने डेरे भी अघोरियों की तरह हो जाते हैं।

आदमी का मन जैसा होता है वैसा ही वह परिवेश व अपना डेरा देखना चाहता है। जो लोग मन से मलीन हैं उनके कक्ष, उनके पर्दे, उनकी टेबलों की दराजें, उनके बाथरूम तक भी गंदे, सड़ांध मारने वाले तथा बेकार होते हैं।
इनके डेरे किसी कचरा पात्र को ही प्रकटाते हैं। अपने आस-पास देखें और जानें कि गंदे डेरों वाले इन अघोरियों की पूरी जिंदगी सड़ांध मारती है जहां न मानवता की खुशबू है न इनमें किसी भी लिहाज से मानव का स्वरूप।
अपने आस-पास बसने वाले इन अघोरियों की ही तस्वीर हैं कि ये जहां रहते हैं वहाँ श्मशान नहीं तो श्मशान जैसा नकारात्मक माहौल पसर ही जाता है।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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