बिहार में सीबीसीएस को लेकर छात्रों में असमंजस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 28 जून 2016

बिहार में सीबीसीएस को लेकर छात्रों में असमंजस

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दरभंगा 27 जून, उच्च शिक्षा की एकमात्र नियामक संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देश की उच्च शिक्षा प्रणाली को विश्व स्तरीय बनाने की कवायद प्रारंभ कर दी है जिसमें विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर पर सेमेस्टर प्रणाली और च्वाइस्ड बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) प्रणाली लागू कराना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जहां तक बिहार की बात है तो यूजीसी के खाका पाठ्यक्रम के मूल में बदलाव के साथ जो खाका तैयार कर विश्वविद्यालयों को भेजा गया है , उसके लागू होने से छात्रों को लाभ कम जबकि नुकसान अधिक होता दिख रहा है। आयोग के इस प्रणाली का व्यवहारिक धरातल पर कितना लाभ हो पाएगा, ये तो अभी भविष्य के हाथों में है। वैसे पिछला अनुभव अच्छा नहीं रहा है। देश के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने के लिए यदि सीबीसीएस और सेमेस्टर प्रणाली को लागू कराना है तो इसके लिए सभी को ईमानदारीपूर्वक प्रयास करना होगा। जहां तक बिहार के संदर्भ की बात है तो बिहार के कुलाधिपति कार्यालय से विश्वविद्यालयों को 11 दिसम्बर 2015 को भेजे गये खाका पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पाठ्यक्रम से बहुत भिन्न है। इसके लागू होने से बिहार के छात्र -छात्राओं को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वरिष्ठ शिक्षाविद एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के विदेशी भाषा संस्थान के निदेशक डा. प्रेम मोहन मिश्रा ने राज्य के खाका पाठ्यक्रम को लेकर विशेष बातचीत में कहा , “ वैसे तो इस पाठ्यक्रम में कई खामियां दिखती हैं , जैसे भारत में राष्ट्र भाषा हिंदी को ऐच्छिक विषय बना दिया गया है। यह फैसला देश हित एवं भारतीय संविधान के त्रिभाषा फार्मूला के विरुद्ध है। इस पाठ्यक्रम में जहाँ एक ओर नवोन्मेषी एवं कौशल विकास को प्राथमिकता देने की बात कही गयी है, वहीं दूसरी तरफ नैनोविज्ञान एवं तकनीकी जैसे उभरते हुए विषय को समाहित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था को लागू करने के लिए आयोग ने भारत के सभी विश्वविद्यालय के कुलपतियों को एक दिशा निर्देश के साथ ही एक खाका पाठ्यक्रम भी प्रेषित किया है। ”  श्री मिश्रा ने कहा कि बिहार के विश्वविद्यालयो ने भी वर्तमान सत्र 2016-19 से ही इसे लागू करने का निर्णय कर लिया है। इसके लिए पाठ्यक्रम का प्रारूप भी तैयार कर लिया गया है , लेकिन बिहार का प्रस्तावित पाठ्यक्रम दोषपूर्ण लगता है। इस पाठ्यक्रम के लागू होने से बिहार के छात्रों के साथ कई समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी। उन्होंने कुछ तथ्यों की चर्चा करते हुए कहा कि छात्रों के गतिशीलता के लिए सबसे आवश्यक है कि पूरे देश की पाठ्यक्रम संरचना में एकरूपता हो। 

वरिष्ठ शिक्षाविद ने कहा कि यूजीसी ने च्वाईस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम प्रणाली के माध्यम से वर्तमान की संस्था एवं शिक्षक केन्द्रित प्रणाली से हटकर छात्र केन्द्रित प्रणाली बनाने की चेष्टा की है। प्रणाली के तहत छात्रों को विषय चुनने, उससे पूरा करने के लिए आवश्यक समय चुनने के साथ ही पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए संस्था बदलने की भी आजादी दी गई है। वर्तमान प्रणाली में छात्रों को विज्ञान, मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के भीतर से ही विषयों का चुनाव करना होता है जबकि इस प्रणाली में विज्ञान विषयों के साथ समाजिक विज्ञान या वाणिज्य के विषयों को भी एक साथ पढ़ा जा सकता है।  श्री मिश्रा ने कहा कि इसी तरह प्रणाली के तहत कोई छात्र किसी एक विषय के कोर्स के किसी भाग को एक विश्वविद्यालय में पढ़ कर, उसके बचे हुए भाग को दूसरे विश्वविद्यालय में भी पूरा कर सकता है और पिछले कोर्स का मार्क्स (क्रेडिट) अगले कोर्स में स्थानांतरित हो जाएगा। इस प्रणाली के तहत पूरे देश में शिक्षा एवं परीक्षा व्यवस्था एवं प्रमाण पत्र में एकरूपता रहेगी जिससे नियोक्ता को छात्रों के योग्यता की तुलना करने में आसानी होगी। 

वरिष्ठ शिक्षाविद ने कहा कि यूजीसी ने निर्देश दिया है कि इस प्रणाली को लागू करने के लिए विश्वविद्यालयों को न्यूनतम साझा पाठ्यक्रम लागू करना आवश्यक होगा। मुख्य एवं प्रतिष्ठा विषयों में सभी विश्वविद्यालयों को एक समान संरचना लागू करना बाध्यकारी होगा। यूजीसी के पाठ्यक्रम में कोई भी पेपर चार क्रेडिट से कम का नहीं है, जबकि बिहार के सिलेबस में सारे एबिलिटी इन्हांसमेंट कोर्स , एबिलिटी एन्हांसमेंट कोर्स और स्किल डेवलपमेंट के कोर्स ३ क्रेडिट के ही रखे गए हैं। इस प्रकार यह पाठ्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर खरा नहीं उतर सकता।श्री मिश्रा ने कहा कि बिहार का प्रस्तावित सिलेबस इससे बिलकुल ही भिन्न है। यूजीसी द्वारा भेजे गये पाठ्यक्रम में अंग्रेजी अनिवार्य नहीं है जबकि बिहार के सिलेबस में अंग्रेजी अनिवार्य विषय कर दिया गया है। इन परिस्थितियों में उन ग्रामीण छात्रों जिन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन पूर्व में नही किया है के लिए स्नातक स्तर पर इंग्लिश अनिवार्य करना अनुचित प्रतीत होता है। इस तरह की अनेक विसंगतियां बिहार के प्रस्तावित पाठ्य संरचना एवं विषय वस्तु में देखने को मिलती है। इन बातों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, नहीं तो इस सत्र में नामांकित होने वाले लाखों बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य के लाखों छात्रों के हित को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक पत्र कुलाधिपति सह राज्यपाल को भी लिखा है। 

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