कांग्रेस के लिए दुर्दशा का साल रहा 2014 - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 28 दिसंबर 2014

कांग्रेस के लिए दुर्दशा का साल रहा 2014

2014-worst-year-for-congress-in-india
कांग्रेस के लिए साल 2014 दुर्दशा का वर्ष रहा जिसमें लोकसभा में वह अब तक की सबसे कम सीटों पर सिमट गयी और उसे कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में भी करारी हार झेलनी पड़ी। देश की सबसे पुरानी पार्टी चुनावी इतिहास के अपने सबसे खराब प्रर्दशन के चलते लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर सिमट गयी और उसे सदन में विपक्ष के नेता का र्दजा भी नहीं मिल पाया। इस हार के बाद न केवल पार्टी नेतृत्व पर बल्कि वोट खींचने की नेहरू.गांधी परिवार की क्षमता पर भी सवाल उठे। लोकसभा चुनावों में पार्टी की दुर्दशा का आलम यह रहा कि कई राज्यों में उसका खाता भी नहीं खुल पाया जिनमें राजस्थान. तमिलनाडु. गुजरात. झारखंड़. ओडिशा. हिमाचल प्रदेश. उत्तराखंड तथा दिल्ली प्रमुख हैं। सबसे अधिक सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को छोड़कर पार्टी को कोई सीट नहीं मिली। आम चुनावों के साथ आंध्र प्रदेश. ओडिशा और सिक्किम विधानसभा के चुनावों में भी उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के लिए संतोष की बात सिर्फ यह रही कि अरुणाचल प्रदेश में वह फिर से सत्ता में आइ गई। इसके बाद उसने महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में न सिर्फ सत्ता गंवायी बल्कि वह दोनों राज्यों में तीसरे नंबर पर खिसक गयी। साल जाते..जाते उसे जम्मू.कश्मीर और झारखंड़ में भी भारी हार का सामना करना पडा और इन राज्यों में वह चौथे स्थान पर रही। लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में कुछ नेताों ने नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े किये। पार्टी के भीतर महसूस किया जाने लगा कि उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस की नैया पार लगाने में सक्षम नहीं हैं। कुछ नेताों ने तो उन्हें मीडिया के माध्यम से तरह..तरह की सलाह देना भी शुरू कर दिया।

कुछ स्थानों पर तो पार्टी कार्यर्कताों ने राहुल गांधी की जगह सुश्री प्रियंका गांधी को पार्टी में आगे लाने की मांग कर डाली। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताों ने भी दबे छुपे सुर में प्रियंका को बढ़ाने की वकालत की। इस हार ने पार्टी नेताों को इतना झकझोर दिया कि वे तरह..तरह की बयानबाजी पर उतर आये और इसे रोकने के लिए पार्टी को  निर्देश देने पड़े। कांग्रेस को इस साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले उस समय बडा झटका लगा जब राज्य में सत्ता में लगातार 15 वर्ष से उसकी सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी .राकांपा. ने सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन तोड़ दिया था। इस चुनाव में अकेले उतरी कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता से हटना पड़ा बल्कि वह भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बाद तीसरे स्थान पर रही। इसी दौरान हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को अंतरकलह भारी पड़ी। प्रदेश के कुछ नेताों लोकसभा चुनाव से पहले और कुछ ने विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी से किनारा कर लिया। इसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा चुनावों में चुकाना पड़ा और दस वर्ष सत्तारूढ़ रहने के बाद वह भाजपा और इंडियन नेशनल लोकदल के बाद तीसरे नंबर पर रही। वर्ष बीतते..बीतते पार्टी को जम्मू.कश्मीर और झारखंड में भी बुरी हार का सामना करना पडा। जम्मू.कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ सत्ता में रहने के बाद उसने अंतिम महीनों में उससे नाता तोड दिया और अकेले चुनाव लडा। लेकिन फिर भी वह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी. भाजपा तथा नेशनल कांफ्रेंस के बाद चौथे नंबर पर रही। पार्टी को उसके गढ माने जाने वाले जम्मू क्षेत्र की सीटों पर भाजपा के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी। 

झारखंड़ में भी उसने झारखंड मुक्ति मोर्चा .झामुमो. के साथ सत्ता में रहने के बाद उससे नाता तोडा और राष्ट्रीय जनता दल तथा जनता दल यूनाइटेड के साथ चुनावी गठबंधन बनाया। लेकिन यह गठबंधन बुरी तरह फलाप रहा और कांग्रेस वहां भी चौथे स्थान पर रही। भाजपा और झामुमो के अलावा वह छोटे क्षेत्रीय दल झारखंड विकास मोर्चा से भी पीछे खिसक गयी। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी को नयी दिशा और नया स्वरूप देंने की बात कही थी लेकिन सात महीने बाद भी संगठन में कोई फेरबदल नहीं दिखायी दिया। पार्टी की र्सवोच्च नीति नियामक ईकाई कांग्रेस कार्यसमिति ने लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की हालत सुधारने के लिए पार्टी अध्यक्ष को अधिकृत किया था लेकिन अभी तक उनकी ओर से कोई महत्वपूर्ण कदम सामने नहीं आया है। श्री राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों के बाद देशभर के पार्टी नेताों के साथ विचार विर्मश का सिलसिला शुरू किया और छोटे..छोटे समूहों के साथ बैठकें की लेकिन यह सिलसिला भी लंबा खिंच गया। उन्होंने वर्ष के अंत में पार्टी महासचिवों को  निर्देश दिया है कि वे राज्य और जिला स्तर के नेताों के साथ बातचीत कर पार्टी को मजबूत बनाने. उसकी विचारधारा को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने और पार्टी संगठन के संबंध में उनके विचार जानें। महासचिवों से फरवरी तक इस संबंध में रिपोर्ट साैंपने को कहा गया है। पार्टी ने इस वर्ष अपना सदस्यता अभियान भी चलाया जिसे दिसंबर में समाप्त होना था और उसके बाद संगठन के चुनाव होने थे। लेकिन सदस्यता अभियान की अवधि दो माह के लिए बढ़ा दी गयी है और उसी के अनुरूप अब संगठनात्मक चुनावों के समय में भी फेरबदल किया जाएगा। इस तरह पार्टी भविष्य के लिए कोई ठोस रणनीति बनाने में भी सफल नहीं हो पायी है। 

कोई टिप्पणी नहीं: