हिजला मेला में कुछ अलग दिखेगी पशुपालन विभाग के जीवंत जानवरों की प्रदर्शनी-डीएएचओ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

हिजला मेला में कुछ अलग दिखेगी पशुपालन विभाग के जीवंत जानवरों की प्रदर्शनी-डीएएचओ

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अमरेन्द्र सुमन (दुमका),  जिला मुख्यालय दुमका से तकरीबन 3 किमी की दूरी पर प्रसिद्ध मयूराक्षी नदी नट पर अवस्थित हिजला में सवा सौ वर्ष पुराना मेला के स्वरुप को पूरी तरह ग्राम्य बनाने के निमित्त इस वर्ष पशुपालन विभाग की ओर से जीवंत पशुओं की प्रदर्शनी जहाँ ओर लगाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर दुधारु पशुओं सहित अन्य जानवरों/ पशु-पक्षियों (बत्तख, कुक्कुट) की पूरी जानकारी भी पूरे मेला के दौरान आम नागरिकों को दी जाऐगीं जिला पशुपालन पदाधिकारी, दुमका डा0 विजय कुमार सिंह ने उपरोक्त आशय की जानकारी दी। एपीओ डा0 जेड एच हसन, टीवीओ डा0 अशोक कुमार दास, अरविंद कुमार सिंह व अन्य पदाधिकारियों-कर्मचारियों की मौजूदगी में जीवंत पशुओं के शेड निर्माण कार्यों में व्यस्त जिला पशुपालन पदाधिकारी, दुमका विजय कुमार सिंह ने कहा कि जीवंत जानवरों की प्रदर्शनी, माॅडल व पशुओं की सुरक्षा, उनके लिये दिये जाने वाले भोज्य पदार्थों सहित हरा चारा, पशुपालन कार्यों में प्रयुक्त होने वाले औजार, दवाईयाँ, पशुओं के रख-रखाव की पशुपालकों को जानकारी इस अवसर पर दी जाऐगी। जिला पशुपालन पदाधिकारी, दुमका विजय कुमार सिंह ने कहा कि दुमका जिलान्तर्गत जामा, जरमुण्डी व सरैयाहाट प्रखण्ड में गव्य पालन का कार्य काफी मजबूत स्थिति में है। इस इलाके के किसानों सहित आम नागरिकों को भी गव्य, बकरी, मुर्गी (कुक्कुट) सुअर व अन्य पालतु जानवरों को पालने की जरुरत है ताकि अधिक से अधिक लोग उससे लाभ प्राप्त कर सकंे। बकरी व मुर्गी पालन पर जोर देते हुए कहा कि इनके पालने में कोई खास मेहनत की जरुरत नहीं है, व्यक्ति को सिर्फ थोड़ा सावधान रहने की जरुरत है। जानवरों के लिये दवाईयाँ, भोज्य पदार्थ व साफ-सफाई के साथ उनके रहने के ठिकानों पर निगाह रखी जाए तो फिर जानवर किसानों/ आम नागरिकांे को इतना लाभ अवश्य दे देते है कि उनका घर-परिवार आसानी से चल सके साथ-ही-साथ जानवरों की सेवा भी हो जाऐगी। विदित हो प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी फरवरी महीनें के शुक्लपक्ष में यह मेला कुल आठ दिनों तक के लिये आयेाजित होगा जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों से लोग मेला को उत्सव की तरह मनाने के लिये दुमका आते हैं। कहा जाता है कि संताल जनजातियों की आत्मा है यह मेला। संताल परगना के तत्कालीन जाॅन एस काॅस्टेयर्स ने वर्ष 1892 में हिज लाॅ अर्थात उसका कानून के रुप में मेला की रखी गई थी जो कालांतर में हिजला के रुप मे ंप्रसिद्ध हो गई। 

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