अमरेन्द्र सुमन (दुमका), उप राजधानी दुमका से तकरीबन 3 किमी की दूरी पर प्रसिद्ध मयूराक्षी नदी नट पर अवस्थित हिजला ग्राम में पिछले सवा सौ वर्षों से संचालित जनजातीय हिजला मेला इन दिनों पूरे परवान पर है। आदिवासी युवकों द्वारा घड़ा उतारने की प्रक्रिया (अर्थात 17 फरवरी) तक यह मेला संताल परगना सहित सूबे के अन्य जिलों के लिये भी काफी आकर्षक बना रहता है। राजकीय मेला के रुप में इसकी घोषणा के बाद इस मेला को पूरी तरह पारंपरिक बनाए रखने के लिये जिला प्रशासन द्वारा जीतोड़ प्रयास किया गया है। जन्म से ही आदिवासी जानवर प्रेमी होते हैं। जहाँ एक ओर आदिवासी समुदाय पशु-पक्षियों का आखेट कर अपना जीवन निर्वाह किया करते थे, वहीं अब उनके बीच जानवरों को पालने तथा अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रचलन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। आदिवासियों की परंपरागत व्यवस्था में पशु-पक्षियों के महत्व को बनाए रखने व इन्हें पालकर अधिक से अधिक धनोपार्जन के उद्देश्य से पशुपालन विभाग, दुमका द्वारा जीवंत पशुओं की प्रदर्शनी को काफी सराहा जा रहा है। डीसी राहुल कुमार सिन्हा ने जिला पशुपालन पदाधिकारी की इस सोंच की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। जहाँ ओर लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर दुधारु पशुओं सहित अन्य पशु-पक्षियों (बत्तख, कुक्कुट) की पूरी जानकारी भी मेला के दौरान आम नागरिकों को सुलभ करायी जा रही है। हाल ही में दुमका में पदस्थापित कर्मठ जिला पशुपालन पदाधिकारी, दुमका डा0 विजय कुमार सिंह ने उपरोक्त की जानकारी देते हुए कहा कि यह प्रथम अवसर है जब राजकीय जनजातीय मेला में ग्रामीण संस्कृति की झलक दुमका के हिजला में उन्हें देखने को प्राप्त हो रहा है। ए. पी. ओ. डा0 जेड एच हसन, टी. व.ी. ओ डा0 अशोक कुमार दास, अरविंद कुमार सिंह व अन्य पदाधिकारियों-कर्मचारियों की मौजूदगी में जीवंत पशुओं प्रदर्शनी से मेला प्रेमियों को हो रहे लाभ का जिक्र करते हुए जिला पशुपालन पदाधिकारी, दुमका विजय कुमार सिंह ने कहा कि जीवंत जानवरों की प्रदर्शनी, माॅडल व पशुओं की सुरक्षा, उनके लिये दिये जाने वाले भोज्य पदार्थों सहित हरा चारा, पशुपालन कार्यों में प्रयुक्त होने वाले औजार, दवाईयाँ, पशुओं के रख-रखाव व अन्य तरह की जानकारी प्रतिदिन पशुपालकों, मेला प्रेमियों व आम नागरिकों को दी जा रही है। पशुपालकों को जानकारी इस अवसर पर दी जाऐगी। जिला पशुपालन पदाधिकारी, दुमका विजय कुमार सिंह ने कहा कि दुमका जिलान्तर्गत जामा, जरमुण्डी व सरैयाहाट प्रखण्ड में गव्य पालन का कार्य काफी मजबूत स्थिति में है। इस इलाके के किसानों सहित आम नागरिकों को भी गव्य, बकरी, मुर्गी (कुक्कुट) सुअर व अन्य पालतु जानवरों को पालने की जरुरत है ताकि अधिक से अधिक लोग उससे लाभ प्राप्त कर सकंे। बकरी व मुर्गी पालन पर जोर देते हुए कहा कि इनके पालने में कोई खास मेहनत की जरुरत नहीं है, व्यक्ति को सिर्फ थोड़ा सावधान रहने की जरुरत है। जानवरों के लिये दवाईयाँ, भोज्य पदार्थ व साफ-सफाई के साथ उनके रहने के ठिकानों पर निगाह रखी जाए तो फिर जानवर किसानों/ आम नागरिकांे को इतना लाभ अवश्य दे देते है कि उनका घर-परिवार आसानी से चल सके साथ-ही-साथ जानवरों की सेवा भी हो जाऐगी। विदित हो प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी फरवरी महीनें के शुक्लपक्ष में यह मेला कुल आठ दिनों तक के लिये आयेाजित होगा जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों से लोग मेला को उत्सव की तरह मनाने के लिये दुमका आते हैं। कहा जाता है कि संताल जनजातियों की आत्मा है यह मेला। संताल परगना के तत्कालीन जाॅन एस काॅस्टेयर्स ने वर्ष 1892 में हिज लाॅ अर्थात उसका कानून के रुप में मेला की रखी गई थी जो कालांतर में हिजला के रुप मे ंप्रसिद्ध हो गई।
बुधवार, 15 फ़रवरी 2017
हिजला मेला में पशुपालन विभाग के जीवंत जानवरों की प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र
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