छत्तीसगढ़ : ज़हरीला पानी गांव को बना रहा है विकलांग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

छत्तीसगढ़ : ज़हरीला पानी गांव को बना रहा है विकलांग




एक पल के लिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि जो पानी हमें जीवन प्रदान करता है वह कभी किसी को इस तरह असहाय बना दे कि अपनी सारी जिंदगी विकलांग के रूप में काटने को मजबूर हो जाए। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिला स्थित रामानुजनगर विकासखंड़ के हनुमानगढ़ में यही देखने को मिल रहा है। लगभग 1000 की आबादी वाला यह एक ऐसा गांव है जहां के हरिजन मुहल्ले की आधी आबादी विकलांग है। यह विकलांगता न तो पोलियो के कारण हुआ है और न ही कुपोशण इसका जिम्मेदार है। दरअसल हनुमानगढ़ के पानी मंे फ्लोराइड, सल्फर, फास्फोरस और अन्य रासायनिक तत्वों की मात्रा अधिक है। जो यहां के लोगों के लिए जहर का काम कर रहा है। वैसे तो पानी में मौजूद खनिज तत्व (फ्ल¨राइड) हमारे शरीर के लिए नुकसान देय नहीं होता है। लेकिन निर्धारित मात्रा से अधिक होने पर यही फ्ल¨राइड हमारे शरीर के लिए हानिकारक हो जाता है। विकलांगता के कारण का पता नहीं चलने पर समस्या और गंभीर हो जाती है। यही हनुमानगढ़ के लोगों के साथ हुआ जिन्हें दशकों तक यह पता ही नहीं था कि वे अपंग क्यों हो रहे हैं? सरकारीतंत्र इसके लिए कुपोषण को जिम्मेदार समझ रहा था लेकिन जांच की गई तो सबके होश ही उड़ गए।

हनुमानगढ़ में पीने के लिए कुआं, हैण्डपंप, तालाब के अलावा अन्य कोई साधन नहीं है। दिन प्रतिदिन यहां की स्थिति और भयकंर होती जा रही है। ग्रामीणों की मानें तो अविभाजित मध्यप्रदेश क्षेत्रफल में बड़ा होने के कारण शायद उस समय की सरकार का ध्यान इस ओेर नहीं गया होगा, लेकिन 13 साल पहले छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बावजूद शासन द्वारा अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाना चिंता का विशय है। सरकार की ऐसी उदासीनता गांव वालों के लिए किसी मौत की सजा से कम नहीं है। अगर किसी गांव में दो, चार व्यक्ति विकलांग हों तो समझ में आए लेकिन यह अपने आप में एक अनोखा गांव है जहां कि आधी आबादी विकलांगता का दंश झेल रही है। इस हरिजन मुहल्ले में किसी के माता-पिता, बेटा-बेटी, भाई-बहन या किसी का पति विकलांग है तो कई लोग विकलांगता की ओर बढ़ रहे है। गांव में किसी का पैर टेढ़ा है तो किसी का हाथ टेढ़ा हो चुका है। कई ऐसे भी हैं जिनका फ्लोरोसिस के अत्याधिक प्रभाव के कारण कमर की हड्डी ही टेढ़ी हो चुकी है। गांव में लगभग सभी के दांत खराब हो चुके हैं। बच्चों पर तो फ्लोरोसिस का प्रभाव 8 से 14 साल की उम्र मंे ही दिखने लगा है। इस बीमारी के कारण उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। स्कूल में आने वाले अन्य गांव के बच्चे पीडि़त बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना तो दूर, उनकी इस बीमारी के कारण कटे-कटे से रहने लगे हैं। एक तरफ जहां पूरा गांव पानी के दुष्प्रभाव से परेशान है तो वहीं माता-पिता अब अपने बच्चों की शादी नहीं होने से भी चितिंत हैं। गांव के ज्यादातर युवा अब शादी-ब्याह के लायक हो गए हैं फिर भी किसी को दुल्हा तो किसी को दुल्हन नहीं मिल रही है क्योंकि अब इस गांव से कोई स्वस्थ्य परिवार रिश्ता नहीं जोड़ना चाहता। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस गांव के लोग फलोराइड युक्त पानी एक दो वर्षो से नहीं बल्कि विगत 20 वर्षो से उपयोग कर रहे हैं। इतने वर्षो से इस पानी के उपयोग के चलते ग्रामीणों की स्थिति अब यहां तक पहुंच गई है कि वे अपना गुजारा करने के लिए कोई काम भी नहीं कर पा रहे हैं। रोजगार जुटाने के लिए किसी का हाथ सहारा नहीं दे रहा तो किसी का पैर।

इस संबंध में रामनुजनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के बीएमओ (ब्लाक मेडिकल आॅफिसर) के अनुसार यहां विकलांगता चिंता के स्तर पर पहुंच चुकी है। वर्तमान में यहां कोई नए मामले नहीं आए हैं। लेकिन गांव के लोगों द्वारा विगत कई समय से फ्ल¨राइड युक्त पानी के सेवन करने से उनका शरीर पूरी तरह प्रभावित हो चुका है। जिससे उन्हें अब मुक्त नहीं किया जा सकता है। इसके प्रभाव को रोकने के लिए जरूरी है कि फ्ल¨राइड युक्त पानी देने वाले हैंडपंपों को चिन्हित कर उसका उपयोग पूरी तरह बंद कर दिया जाए। जिले के सामाजिक कार्यकर्ता सुनील अग्रवाल का कहना है कि पीएचई विभाग की गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण लोगो की जिन्दगियां बर्बाद हो गई हैं क्योंकि विभाग ने वहां बिना जांच परख के हैण्डपंप लगवाया था। इस संबंध में कई बार प्रषासन को अवगत भी कराया गया लेकिन परिणाम षुन्य ही रहा है। हैरतअंगेज बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग एवं लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की उदासीनता के कारण राज्य के कई क्षेत्र में लोग आज भी फलोराइड युक्त पानी का उपयोग कर विकलांगता की ओर अग्रसर हो रहे हैं और इन विभागों के कान में जूं तक नहीं रंेग रही है। ज्ञात हो कि पिछले साल ही सरगुजा का विभाजन कर सूरजपूर को जिला का दर्जा दिया गया, जहां से हनुमानगढ़ की दूरी मात्र 45 किलोमीटर है तथा प्रषासनिक अधिकारियों का दौरा किसी न किसी कारणवष गांव में होते ही रहता है। फिर भी ग्रामीणों की समस्या जस के तस बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक फ्ल¨र¨सिस प्रभावित क्षेत्रों की बात करें तो बीजापुर, दुर्ग, कोरबा, सूरजपुर, रायगढ़ और बिलासपुर प्रमुख है। हांलाकि राज्य सरकार लोगों के स्वास्थ्य स्तर को बेहतर बनाने के लिए कई योजनओं का संचालन कर रही है। लेकिन इसे विड़ंबना ही कहेंगे कि प्रदेष में स्वास्थ्य की तमाम सुविधाओं के बावजूद हनुमानगढ़ के हरिजन बस्ती के लोग पानी की वजह से विकलांगता का दंष झेल रहे हैं।

यूनीसेफ की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर नजर डाले तो इस समय पूरे भारत के 20 राज्यों के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लाखों लोग फ्ल¨राइड युक्त पानी के सेवन से फ्लोरोसिस के षिकार हैं। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ग्यारहवीं पंचवर्शीय योजना के तहज नेषनल प्रोग्राम फाॅर प्रिवेंषन एडं कंट्रोल आॅफ फ्लोरोसिस के तहत देष के 17 राज्यों के 100 जिलों में एक विषेश योजना चलाई है। जहां इन मामलों पर बारीकियों से नजर रखी जा सके। मंत्रालय के अनुसार इस वक्त देष के 19 राज्यों के करीब 230 जिले इससे प्रभावित हैं जो चिंता की बात है। अच्छा होगा समय रहते इसकी गंभीरता को पहचान लिया जाए। 



सूर्याकांत देवांगन
(चरखा फीचर्स)

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